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1st Bihar Published by: Updated Sun, 10 Jan 2021 09:25:12 PM IST
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PATNA : बिहार बीजेपी के सुपर बॉस माने जा रहे भूपेंद्र यादव ने रविवार को ये कहकर सियासी हलचल पैदा कर दिया कि खरमास के बाद आरजेडी में टूट होने वाली है. भूपेंद्र यादव कोई सामान्य नेता नहीं है लिहाजा उनका बयान मायने रखता है. लिहाजा सवाल ये उठता है कि क्या वाकई आरजेडी विधायकों में टूट होने वाली है. फर्स्ट बिहार ने इस दावे की पड़ताल की, जिसमें भूपेंद्र यादव का दावा सच होता नहीं दिख रहा है.
भूपेंद्र यादव ने क्या कहा
बीजेपी की बैठक में रविवार को भूपेंद्र यादव ने कहा कि RJD वाले इनदिनों बहुत नासमझी वाली बातें कर रहे हैं. मैं स्पष्ट तौर पर कह रहा हूं कि आरजेडी में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो वहां घुट रहे हैं. वे महसूस कर रहे हैं कि परिवारवाद से मुक्ति मिलनी चाहिये. खरमास खत्म होने का इंतजार कीजिये. परिवारवाद की राजनीति से उब चुके लोग सामने आयेंगे. आरजेडी अपनी पार्टी बचा ले. बाकी सब हम देख लेंगे. भूपेंद्र यादव ने कहा कि संक्रांति आ रही है इसलिए वे फिलहाल चुप हैं. साफ है भूपेंद्र यादव ने संकेत दिया कि संक्राति के बाद आरजेडी में टूट होगी.
भूपेंद्र यादव के दावों में कितना दम
फर्स्ट बिहार ने बीजेपी नेता भूपेंद्र यादव के दावों की पड़ताल की. क्या वाकई आरजेडी में ऐसी स्थिति है कि खरमास के बाद पार्टी में टूट हो जायेगी. अब आंकड़ों और तथ्यों के सहारे भूपेंद्र यादव के दावों की हकीकत को समझिये.
देश में दलबदल कानून लागू है. किसी भी पार्टी में टूट के लिए उसके विधायकों या सांसदों की कुल संख्या का दो-तिहाई का टूटना जरूरी है. बिहार में आरजेडी के 75 विधायक हैं. दलबदल कानून के तहत उसके दो तिहाई यानि 50 विधायक टूटेंगे तभी उसे सही माना जायेगा. इससे कम संख्या में विधायक अगर पार्टी से अलग होते हैं तो उनकी विधायिकी रद्द हो जायेगी.
अब सवाल ये उठता है कि क्या वाकई में आरजेडी में इतना भारी विद्रोह की स्थिति है कि 50 विधायक विद्रोह करके पार्टी तोड़ देंगे. 50 विधायक नाराज हैं और उनकी कोई नाराजगी अब तक सामने नहीं आयी है. ये हैरानी वाली बात है. सियासत में कहीं आग लगती है तो धुआं जरूर उठता है. लेकिन आरजेडी में फिलहाल कोई धुआं उठता नजर नहीं आ रहा है. पार्टी के किसी विधायक ने शायद ही नेतृत्व पर कोई सवाल उठाया है.
वैसे किसी पार्टी में टूट का एक दूसरा रास्ता भी बचता है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस को इसी तरह से नुकसान पहुंचाया गया था. बीजेपी ने कांग्रेसी विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा कर उनसे इस्तीफा करा दिया. क्या बीजेपी आरजेडी को तोड़ने के लिए बिहार में इस तरह का रास्ता अपना सकती है. हकीकत ये है कि आरजेडी के विधायक दो महीने पहले चुनाव लड़ कर आये हैं. चुनाव लड़ने में किसी नेता की जो फजीहत होती है वो सर्वविदित है. अहम बात ये भी है कि आरजेडी के जो भी विधायक चुनाव जीते हैं वो पार्टी के समीकरणों के बल पर जीते हैं. अगर वे बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने जायेंगे जो पहले का जीताऊ समीकरण उनके खिलाफ मुखर हो कर खड़ा रहेगा. क्या बीजेपी में जाने के लिए विधायक अपने जीताऊ समीकरण को छोड़ कर हारने वाले समीकरण को अपनायेगा.
सवाल ये भी उठता है कि दलबदल करने वाले नेताओं को पाला बदलने के बाद हासिल क्या होगा. बिहार में मंत्रिमडल में मुख्यमंत्री समेत 37 मंत्री बनाये जा सकते हैं. 14 पहले से मंत्री हैं. जिसमें बीजेपी के हिस्से पहले से 7 मंत्री है. नीतीश कुमार का जो रवैया है उसमें बीजेपी बमुश्किल 11 से 12 और मंत्री पद हासिल कर सकता है. अगर बीजेपी इन तमाम मंत्री पद को आरजेडी के बागी विधायकों को दे भी दे तो भी 11-12 विधायक ही एडजस्ट हो पायेंगे. फिर बाकी विधायक क्या करेंगे.
दिलचस्प बात ये भी है कि बिहार की सभी पार्टियों के विधायक नीतीश कुमार के कामकाज की शैली भी जानते हैं. वे जानते हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी खासकर बीजेपी का कोई विधायक अपने क्षेत्र में थानेदार तक की पोस्टिंग नहीं करा पाता है. सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक की मजबूरी होती है कि वह प्रशासनिक तंत्र के खिलाफ बोल पाने की स्थिति में भी नहीं होता. कमोबेश उससे बेहतर स्थिति विपक्षी विधायकों की होती है जो पुलिस या प्रशासन के खिलाफ आवाज तो उठा सकता है.
ऐसी तमाम परिस्थितियों के बावजूद भूपेंद्र यादव खरमास बाद राजद में टूट का दावा कर रहे हैं. सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या इसी उम्मीद में बीजेपी ने अब तक मंत्रिमंडल के विस्तार को रोक रखा है. फिलहाल आरजेडी में टूट के दावे में बहुत दम नजर नहीं आता लेकिन आगे क्या होता है ये देखना दिलचस्प होगा.