IAS डॉ वीरेंद्र लिख रहें नई किताब 'झारखंड समग्र', कहा - यह राज्य आश्चर्य से भरा एक अनूठा प्रदेश

IAS डॉ वीरेंद्र लिख रहें नई किताब 'झारखंड समग्र', कहा - यह राज्य आश्चर्य से भरा एक अनूठा प्रदेश

PATNA : झारखंड यानी 'झार' या 'झाड़' जो स्थानीय रूप में वन का पर्याय है. 'खण्ड' यानी टुकड़े से मिलकर बना है. भारत के प्रमुख राज्यों में से एक अपने नामजनजातीय के अनुरुप यह मूलतः एक वन प्रदेश है. यह राज्य अपने सांस्कृतिक, खनिज की उपलबध्ता, भाषा, साहित्य, चित्रकला,सांस्कृतिक करतबों, जनजातियों और उनके रहन-सहन के लिए काफी प्रसिद्ध है. इस अनोखे प्रदेश के गठन के तक़रीबन डेढ़ दशक बीत जाने के बाजवूद भी इस राज्य को साहित्य के क्षेत्र में एक उचित पहचान नहीं मिली. झारखंड के इतिहास को समेटते हुए भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ वीरेंद्र एक नई किताब 'झारखंड समग्र' को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं.


2004 बैच के IAS अफसर डॉ वीरेंद्र अपनी नई रचना 'झारखंड समग्र' पर लगातार काम कर रहे हैं. अपनी इस अनोखी कृति के माध्यम से डॉ वीरेंद्र न सिर्फ यह बताने जा रहे हैं कि झारखंड के सामाजिक-सांस्कृतिक, भौगोलिक,आर्थिक एवं ऐतिहासिक सरोकारों पर संपूर्ण ज्ञान है, बल्कि यह पुस्तक प्रदेश का परिचय है. किताब के लोकार्पण पर डॉ वीरेंद्र ने बताया कि शीघ्र ही यह पुस्तक पाठकों के लिए उपलब्ध होगी. इस किताब को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी पढ़ा जा सकता है.


आईएएस डॉ वीरेंद्र बताते हैं कि इस पुस्तक में झारखंड राज्य से जुड़े तमाम मूलभूत विषयों पर ज्यादा जोर दिया गया है. झारखंड का शाब्दिक अर्थ जंगल झाड़ वाला क्षेत्र है. जिसे मुगल काल में 'कुकरा' नाम से जाना जाता था. यह प्रदेश ब्रिटिश काल में 'झारखंड' नाम से जाना जाने लगा. झारखंडी ऐतिहासिक क्षेत्र के रूप में मध्ययुग में उभरकर सामने आया और झारखंड का पहला उल्लेख 12 वीं शताब्दी के नरसिंह देव यानी गंगराज के राजा के शिलालेख में मिलता है. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड की जनजातियों कीअहम भूमिका रही है, क्योंकि1857 में प्रथम संग्राम के करीब 26 वर्ष पहले झारखंड की जनजातियों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह किया था. भौगोलिक दृष्टिकोण से झारखंड जितना मनोरम है, उतना ही सुख समृद्धि के संसाधनों से भी परिपूर्ण है. यहां के भू-भाग पर नदियां, जलप्रपात, झील, खनिज तथा यहां के प्राकृतिक सौंदर्य विस्मय से अभिभूत करने वाले हैं. साथ ही परिवहन एवं संचार-व्यवस्था की काफी सुढृण है.



झारखंड में प्रत्येक उप जाति और जनजाति के समूह में अनूठी परंपरा के लोग हैं. उरांव कंघा काटकर चित्रों से प्राचीन काल के समय का पता लगाया जा सकता है. झारखंड के लोगो ने पीढ़ियों से बेहतरीन कारीगरों को बनाया है और कला में उत्कृष्ट कार्य सिद्ध किया है और यह प्राकृतिक संसाधनों का अनूठा प्रदेश है. डॉ वीरेंद्र चर्चा के दौरान यह बताते हैं कि झारखंड आश्चर्य से भरा है. झारखंड संगीत और लोक नृत्य के क्षेत्र में संपन्न है. झारखंड के लोगों द्वारा गायन और नृत्य में संगीत और बजाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरणों का उपयोग किया जाता है. नगाडा, पशु और लकड़ी के हाथ से बने सहजन की कलि से खेला जाता है. दिलचस्प बात यह है कि नगाडा की ध्वनि ग्रीष्मकाल में सर्वश्रेष्ठ, ठंड के मौसम में वो अपने जीवंत को खो देता है. बेलनाकार मांदर हाथ से बजाई जाती है.



इस परदेश की भाषा और साहित्य को लेकर लेखक कहते हैं कि झारखंड की सांस्कृतिक क्षेत्र अपने-अपने भाषाई क्षेत्रों से जुड़े हैं. हिन्दी, संथाली, मुंडा, हो, कुडुख, मैथिली, माल्तो, कुरमाली, खोरठा और उर्दू भाषाएँ यहाँ पर बोली जाती हैं. भोजपुरी बोली का लिखित साहित्य न होने के बावजूद इसका उल्लेखनीय मौखिक लोक साहित्य है. मगही की भी समृद्ध लोक परम्परा है. लोक संगीत और नृत्य झारखंड की संस्कृति का हिस्सा और पार्सल हैं. आदिवासी समुदायों के सरल और विनम्र आबादी विभिन्न सामाजिक समस्याओं और कठिनाइयों से ग्रस्त हैं जो उनके `देसी-संगीत शैलियों में एक अभिव्यक्ति पाते हैं.


भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि इस पुस्तक में झारखंड के लोक-साहित्य का विस्तार से वर्णन किया गया है. यहां की विविध लोक-भाषाओ, साहित्य एवं कलाओं का विश्लेषण तथा परिचयात्मक अध्ययन सहज-सरल भाषा में प्रस्तुत है. झारखंड के सामाजिक-सांस्कृतिक, भौगोलिक,आर्थिक एवं ऐतिहासिक सरोकारों पर संपूर्ण पुस्तक, जो पाठकों की दृस्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रुचिकर होगी. झारखंड के लोगों की जीवनशैली एक जरूरी है. लेखक झारखंड की संस्कृति के बारे में चर्चा करना चाहते थे. उन्होंने आगे कहा कि झारखंड की संस्कृति भारतीय समाज के आदिवासी समाज की परंपरा का पता लगाती है, आधुनिकीकरण के रुझानों से भी बेपरवाह है. बल्कि यह इसकी मौलिकता और जातीयता पर जोर देता है और ऐसा करना जारी रखता है.


लेखक परिचय - 
इस पुस्तक के लेखक डॉ वीरेंद्र भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं. बहुमुखी प्रतिभाओं से संपन्न डॉ वीरेंद्र का जन्म बिहार के जमुई जिले में हुआ था. जिन्होंने साल 2004 में आईएएस ज्वाइन किया. इन्होंने चिकित्सा विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की. दूरस्थ शिक्षा के द्वारा अर्थशास्त्र एवं वित्तीय प्रबंधन में स्नातकोत्तर उत्तीर्णता के बाद डॉ वीरेन्द्र ने देश की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिता परीक्षा साल 2004 में पास कर  भारतीय प्रशासनिक सेवा में अपना योगदान दिया. ये फिलहाल बिहार सरकार के पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग, कल्याण विभाग, पटना में अपनी सेवा दे रहे हैं.