RANCHI : झारखंड में क्षेत्रीयता को लेकर वोट बैंक की सियासत ने पूरी रफ्तार पकड़ ली है। पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान वहां के मुख्यमंत्री चन्नी की तरफ से बिहारियों को लेकर दिया गया बयान और उसे लेकर शुरू हुआ विवाद अभी ठंडा भी नहीं हुआ कि झारखंड की हेमंत सरकार में बिहारियों के साथ नया खेल कर दिया है। झारखंड में क्षेत्रीय भाषाओं की लिस्ट से भोजपुरी और मगही को बाहर कर दिया गया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस से इस मामले को लेकर क्षेत्रीय राजनीति कर रही है। और इन्हीं दोनों पार्टियों के दबाव के बाद भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषा की लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। झारखंड की सरकार ने राज्य कर्मचारी आयोग की तरफ से ली जाने वाली मैट्रिक और इंटर स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षाओं में इन दोनों भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा की लिस्ट से बाहर कर दिया है। पहले धनबाद और बोकारो में भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषा की सूची में रखा गया था। इस मामले को लेकर लगातार झारखंड में विवाद देखने को मिल रहा था। शुक्रवार की देर रात कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग ने इस फैसले से जुड़ी अधिसूचना जारी कर दी। राज्य के बाकी 22 जिलों में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
आपको बता दें कि इस शुक्रवार की शाम कई दलों के नेताओं ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की थी। नेताओं का कहना था कि रांची और जमशेदपुर में भोजपुरी और मगही बोलने वाले लोग हैं लेकिन यहां क्षेत्रीय भाषाओं की लिस्ट में भोजपुरी और मगही को नहीं रखा गया है। धनबाद और बोकारो में इसे शामिल करने पर विवाद बढ़ रहा है, इसपर तत्काल रोक लगनी चाहिए। अब भोजपुरी और मगही को लेकर झारखंड में नए सिरे से विवाद गहरा सकता है। बस विवाद को लेकर पूरा के वोट बैंक की राजनीति से जुड़ा हुआ है। वही झारखंड में नेता इसका विरोध कर रहे हैं जिन्हें पता है कि दोनों भाषा बोलने वाले लोगों का वोट उन्हें या उनकी पार्टी को नहीं मिलता।