Bihar Politics: SIR के मुद्दे पर तेजस्वी के साथ खडे हुए JDU सांसद, निर्वाचन आयोग के फैसले को बताया तुगलकी फरमान Bihar Politics: SIR के मुद्दे पर तेजस्वी के साथ खडे हुए JDU सांसद, निर्वाचन आयोग के फैसले को बताया तुगलकी फरमान बेगूसराय में 22 वर्षीया विवाहिता ने फांसी लगाकर की आत्महत्या, कुछ महीने पहले यूपी में हुई थी शादी Bihar News: मोतिहारी में नदी से अज्ञात महिला का शव बरामद, गाँव में मचा हड़कंप Bihar Assembly Monsoon session: पूर्व विधायक मिश्रीलाल यादव ने स्पीकर को लिखा पत्र, विधानसभा सदस्यता बहाल करने की मांग Bihar Assembly Monsoon session: पूर्व विधायक मिश्रीलाल यादव ने स्पीकर को लिखा पत्र, विधानसभा सदस्यता बहाल करने की मांग Bihar News: तकरार के बाद प्यार ! विधान सभा में विपक्ष से भिड़ंत के बाद मैदान में साथ उतरे 'विजय' व 'अशोक' Bihar Crime News: भागलपुर में चचेरे भाइयों को चाकू से गोदा, आरोपी गिरफ्तार Bihar News: बिहार में 7.92 लाख छात्रों को इस तारीख तक मिलेंगी किताबें, शिक्षा मंत्री ने दी जानकारी Bihar Crime News: मर्डर केस में लापरवाही पड़ी भारी, बिहार के थानेदार समेत दो पुलिसकर्मियों पर गिरी गाज
1st Bihar Published by: Updated Sun, 21 Jun 2020 06:26:02 PM IST
- फ़ोटो
PATNA : कोविड-19 ने मनुष्य को अंतरात्मा की आवाज सुनने पर मजबूर कर दिया है। यह बदलाव मनुष्य को अपनी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित कर रहा है। इस नए बदलाव से सांस्कृतिक, सामाजिक , राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में बदलाव देखने को मिल रहा है। यह बदलाव सबसे ज्यादा उन प्रदेशों में दिखेगा जहां मूलभूत ढांचा, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार का अभाव है, जिसके कारण मजबूरन पलायन करना पड़ता है। ऐसा ही एक प्रदेश बिहार है, जहां पलायन एक संस्कृति बन गई है। उसके घर वाले, गांव वाले और खुद भी मानसिक तौर पर इसकी तैयारी बचपन से ही कर लेते हैं।
जब 1991, में नई आर्थिक नीति लागू हुआ तब उन्हीं राज्यों में निवेश दिखा जिन राज्यों में इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षा था। बिहार को नई आर्थिक नीति का फायदा नहीं मिला क्योंकि मार्केट को आकर्षित करने वाले वाली संस्थाएं बिहार में नहीं थी। इसका नतीजा यह हुआ कि लोग रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए पलायन करने लगे। पिछले 30 सालों में बिहार जहां खड़ा था, वहां आज भी खड़ा है। ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (विकास सूचकांक) गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, न्याय सूचकांक, शिशु मृत्यु दर, पुलिस बर्बरता, पलायन में पिछले 30 सालों से बिहार निचले स्थान पर पड़ा है। वहीं दूसरी तरफ 1991 से 2019 तक बिहार का प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का सिर्फ 40% रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि बिहार 1991 से लेकर आज तक राष्ट्रीय औसत की तुलना में जहां था, वहीं है।
कोविड-19 ने बिहार के सिविल सोसायटी (नागरिक समाज) राजनैतिक पारखियों को सोचने पर मजबूर किया है कि एक नीतिगत बदलाव बिहार की आवश्यकता है ताकि मजबूरन पलायन को रोका जा सके। इसके लिए अल्पकालिक नीतियों और दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता है। भारत में संविधान और अंतरराष्ट्रीय कानून में भी मजदूर वर्ग को सम्मान से जीने के लिए कहा गया है। अंतरराष्ट्रीय कानून आयोग 2001 के ड्राफ्ट आर्टिकल ऑन प्रिवेंशन ऑफ ट्रांस बाउंड्री हॉर्म (DAPTH) में प्रावधान है कि कोई भी कानून या नीति एपिडेमिक और पैनडेमिक सर्वव्यापी महामारी के रोकथाम करने की प्रक्रिया में माइग्रेंट वर्कर्स (प्रवासी कामगार) के अधिकारों का हनन नहीं कर सकता। इन बातों को ध्यान में रखते हुए बिहार को तुरंत अल्पकालिक नीति बनानी चाहिए। कोविड-19 के महामारी ने प्रवासी कामगारों को मूल्य राज्य और प्रवास वाले राज्यों का अंतर समझ में आ गया है। वह वापस नहीं जाना चाहते हैं।
ज्यादातर प्रवासी कामगार निर्माण , कृषि और उद्योग में काम करते हैं। इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार को श्रमिक बैंक बनाना चाहिए और वर्कर्स प्रोफाइल तैयार कर जॉब कार्ड मुहैया कराना चाहिए ताकि प्रवासी कामगारों को काम मिले और दूसरे प्रदेशों में जाए तो सम्मान भी मिले। अल्पकालिक नीति के तहत मनरेगा में जो काम मिलता है उसके अंतर्गत ऐसे प्रावधान बनाए ताकि प्रवासी कामगारों के लिए वरदान साबित हो और उन्हें सम्मान से जीवन जीने का अवसर प्रदान हो सके। बिहार सरकार अपने विभागों में अवसर तैयार करें ताकि ज्यादा से ज्यादा प्रवासी कामगार को काम मिल सके जब आपूर्ति के क्षेत्र में तालाबों का जीर्णोद्धार, नाला जीर्णोद्धार और सोख्ता गड्ढा कार्य। ठीक इसी प्रकार शहरी विकास विभाग में स्कूलों की मरम्मत, रंग पोतन, शौचालय निर्माण, बागवानी, पौधारोपण और घेराबंदी के कार्य में कामगारों को लगाया जाए। इसके अलावा प्रत्येक ग्राम पंचायत में अनेकों निर्माण के कार्य के साथ-साथ ग्रामीण सड़कों के निर्माण, लूस बोल्डर स्ट्रक्चर का कार्य ,टड की मेडबंदी का कार्य, बाढ़ नियंत्रण के लिए बांधों का मरम्मत और उत्तर बिहार में अनेकों लैगून, झील और पोखर की ड्रैगिंग करवाकर मछली उत्पादन के क्षेत्र में आगे कदम बढ़ाना । जो लोग supply-chain के कार्य में बड़े शहरों में काम कर रहे थे उनके लिए निजी डिपार्टमेंटल स्टोर के साथ मिलकर सरकारी सप्लाई चेन शुरू करें।
सरकार के ऑनलाइन से सामान खरीदने में सब्सिडी मिले। बिहार वापस आ रहे प्रवासी मजदूरों में बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं जो घरेलू कामकाज शहरों में करती हैं, ऐसे में उन्हें प्राइमरी हेल्थ सेंटर क्वॉरेंटाइन सेंटर कम्युनिटी हेल्थ सेंटर पंचायत भवन और पंचायत प्रखंड स्तर पर साफ सफाई के कामों में लगाया जाए। जो मजदूर शहरों में गार्ड या सिक्योरिटी का काम करते थे उन्हें हाईवे गार्ड्स , ट्रैफिक संचालन , पर्यटन स्थलों का देखरेख के साथ-साथ क्वॉरेंटाइन सेंटर का भी देखभाल करें। इसके साथ-साथ बिहार में लगभग 95 बाजार समितियां हैं, इन सभी को शुरू करके फल फूल, सब्जी और अन्य वस्तुओं से संबंधित कामों में प्रवासी कामगारों को लगाया जाए। कुटीर उद्योग, लघु उद्योग, मध्यम उद्योग में भी कामगारो को काम मिल सकता है, जैसे कि चमड़ा उद्योग, पावरलूम उद्योग, रेशम केंद्र, शहद की खेती, बांस आधारित कुटीर उद्योग और डेयरी उद्योगों में हजारों प्रवासी कामगार को काम मिल सकता है।
बिहार सरकार को अल्पकालिक नीति के साथ-साथ दीर्घकालीन नीति भी बनानी होगी। सभी विद्यालयों और विश्वविद्यालयों को बड़े पैमाने पर कार्यकलाप करना होगा ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लेने विद्यार्थी पलायन ना करें। ठीक इसी प्रकार गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा के लिए लोग शहरों में जाते हैं। इसका कारण है बिहार में स्वास्थ्य संस्थाएं और डॉक्टर्स की कमी। बिहार में लगभग 800 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए पर है मात्र 148, 622 रेफरल अस्पताल होने चाहिए पर है सिर्फ 70, 212 स्पेशलिस्ट सब डिविजनल अस्पताल होने चाहिए लेकिन मात्र 44 है। राज्य में कम से कम 40 मेडिकल कॉलेज होने चाहिए लेकिन है सिर्फ 9, और 2700 डॉक्टर्स पदस्थापित हैं। ठीक इसी प्रकार सुनवाई (सुशासन) का है, जिसके कारण माइग्रेशन के लिए एक फर्टाइल ग्राउंड बिहार बना हुआ है। पिछले 5 साल में ही देखें तो पाते हैं कि 2014 में बिहार में लगभग 195024 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2019 में लगभग 270000 मामले हो गए। हत्या के मामले 2016 में 2581 थे जो बढ़कर 2019 में लगभग 3000 हो गए। इसी प्रकार डकैती के केस 2016 में 2947 थे जो 2019 में 3200 हो गए। बलात्कार के 2014 में 1127 मामले दर्ज किए गए जबकि 2019 में 1500 के आसपास के मामले दर्ज हुए। ठीक इसी प्रकार अपहरण का केस 2014 में 6570 थे जो 2019 में लगभग 10,000 हो गए। प्रदेश में लगातार बढ़ रहे अपराध से लोगों में भय का माहौल बना हुआ है और लोग पलायन कर रहे हैं। ठीक इसी प्रकार सिंचाई के मजदूरों का पलायन देखने को मिलता है। बिहार ने कृषि रोड मैप बनाया ताकि बिहार को कुपोषण से निकाला जाए और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक वृद्धि के लक्ष्य हासिल किए जा सके पर सिंचाई क्षेत्र में भी विफलता के अंबार के सामने पलायन ही एक रास्ता है।
भूमंडलीकरण के दौर में बिहार को बुनियादी समस्याओं से निजात पाए और चहुमुखी विकास करें तभी पलायन थम सकती है। इशे पढ़ाई दवाई सिचाई और सुनवाई के खस्ताहाल को देखकर कोई भी इन्वेस्टर बिहार में काम करने के लिए राजी नहीं है, जिसका कारण बिहार अपने लक्ष्य को पाने में पिछड़ा रहता है और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मापदंड पर निचले स्थान पर रहता है। इस कारण बिहार में बेरोजगारी चरम पर है जिसके कारण बिहार में पलायन सबसे ज्यादा है। भयावह बेरोजगारी से मानसिक दबाव झेलना पड़ता है बल्कि और भी अनेकों कठिनाइयों के साथ जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ता है और अंत में पलायन ही एकमात्र रास्ता बचता है। इसका खात्मा शार्ट टर्म और लांग टर्म नीति बनाकर किया जा सकता है।
कोविड-19 में बिहार को एक मौका दिया है जहां जनता भी आने वाले विधानसभा चुनाव में उसे वोट करें जो पढ़ाई दवाई सिंचाई और सुनवाई के मुद्दे जनता के सामने रखें। यह दूरगामी नीति बिहार को गरीबी, कुपोषण, भूख, बीमारी, बेरोजगारी के साथ-साथ पलायन और बोझ बन चुके संस्थानों से निजात मिल सकेगा।