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1st Bihar Published by: Updated Mon, 07 Nov 2022 11:12:03 AM IST
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DESK : सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता में सोमवार को पांच सदस्यीय बेंच की तरफ से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था पर फैसला सुनाया गया। जिसमें पांच जजों में से चार जजों ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन किया है। जिसके बाद देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने के फैसले को हरी झंडी दे दी है। इस पांच सदस्यीय बेंच में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पार्डीवाला शामिल थे।
वहीं, इसको लेकर जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि आर्थिक आरक्षण संविधान के मौलिक ढांचे के खिलाफ नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि 103वां संशोधन वैध है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी इस फैसले पर सहमति जताई है। उन्होंने कहा कि मैं जस्टिस माहेश्वरी के निष्कर्ष से सहमत हूं। उन्होंने कहा कि एससी/एसटी/ओबीसी को पहले से आरक्षण मिला हुआ है, इसलिए उसे सामान्य वर्ग के साथ शामिल नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने आरक्षण सीमित समय के लिए रखने की बात कही थी, लेकिन 75 साल बाद भी यह जारी है। इधर, इसके जस्टिस रविन्द्र भट ने इसको लेकर अपनी असहमति जताई है।
वहीं, इस पुरे मामले को लेकर केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा। उन्होंने कहा था- 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है।
बता दें कि, ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने के खिलाफ 30 से ज्यादा याचिकाएं दाखिल की गई थी। 27 सितंबर को हुई पिछली सुनवाई में अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। जानकारी हो कि, ईडब्ल्यूएस को शिक्षा और नौकरी में 10 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था है। केंद्र सरकार ने 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए इसकी व्यवस्था की थी।