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1st Bihar Published by: Updated Tue, 26 May 2020 01:07:12 PM IST
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DESK : कोरोना वायरस से इस वक़्त पूरी दुनिया त्रस्त है. दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाली संस्थाओं पर इस महामारी के कारण उनकी क्षमता से कहीं ज्यादा दबाव है. इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की जितनी भी सराहना की जाये वो कम है. पर इस बात को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है की कोरोना के कारण अन्य स्वास्थय सेवाओं पर बुरा असर पड़ा है.
इस महामारी से दुनियाभर में करीब दो अरब बच्चों की ज़िन्दगी पर भारी संकट मंडरा रहा है. कोरोना का जानलेवा वायरस इनके लिए खतरा तो है ही, साथ ही इनके जैसे दूसरे जीवाणु और विषाणु भी बच्चों पर कभी भी घात लगा सकते हैं. विश्व के दो शीर्ष स्वास्थ्य संगठनों (WHO और UNICEF) के मुताबिक कोरोना की वजह से बच्चों का टीकाकरण कार्यक्रम बुरी तरह प्रभावित हुआ है जो इनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है.
जैसा की आप जानते हैं कि छोटे बच्चों को polio, measles, mumps, rubella, chickenpox, pneumonia, influenza, cholera, Japanese encephalitis और hepatitis जैसी महामारी से बचाने के लिए टीका दिया जाता है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से इन बीमारियों का टीका बच्चों तक नहीं पहुंच रहा है. साथ ही माता-पिता बच्चों को अस्पताल और क्लिनिक ले जाने से भी कतरा रहे हैं कि कहीं उनके छोटे बच्चे को संक्रमण न हो जाये. WHO के मुताबिक इस वक़्त कोरोना की वजह से कम से कम 68 देशों में नियमित टीकाकरण काफी हद तक बाधित हुई है और इन देशों में 1 साल से कम आयु के लगभग 8 करोड़ बच्चों के प्रभावित होने की संभावना है.
विश्व स्वास्थय संगठन की माने तो खसरा और पोलियो के खिलाफ टीकाकरण बुरी तरह से प्रभावित है. खसरा टीकाकरण अभियान 27 देशों में निलंबित कर दिया है, जबकि 38 देशों में पोलियो के टीकाकरण को होल्ड पर रखा गया है.
किसी बीमारी के ख़िलाफ़ बच्चे के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए उसे वैक्सीन दी जाती है. नवजात शिशु का शरीर वातावरण में मौजूद वायरस, बैक्टीरिया के हमले से अनजान होता है.ऐसे में बच्चे में कुछ ख़तरनाक बीमारियों के ख़िलाफ़ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जाती है ताकि उस वायरस का हमला होने पर बच्चे का शरीर उससे लड़ सके. हर देश अपनी जनसंख्या और वहां मौजूद बीमारी के हिसाब से बच्चों के लिए टीके की श्रेणी बनाता है. जो टीके भारत में लगाए जाते हैं ज़रूरी नहीं कि वो दूसरे देशों में भी दिए जाते हों.
मैक्स अस्पताल में बालरोग विभाग की प्रमुख डॉक्टर बबीता जैन बताती हैं, बच्चे के जन्म के पहले साल में लगने वाले टीके बहुत अहम होते हैं. ये टीके समय से दिए जाने बहुत ज़रूरी हैं. इनमें देरी होना किसी बीमारी को न्योता दे सकता है. पहले साल में लगने वाले टीकों को जितना हो सके समय से ही लगवाना चाहिए. पर अभी परिस्थिति काफी अलग है. देश में लॉक डाउन भी बढ़ते जा रहा है ऐसे में माता-पिता को अब और इंतजार नहीं करना चाहिए. टिका लगने में एक-दो हफ़्ते की देरी चल सकती है पर उससे ज्यादा देर करना टीक नहीं है. बच्चों को लगने वाले टीके में पोलियो और खसरे का टीका बहुत ही ज़रूरी होता है. 15 महीने के बाद पड़ने वाले टीके में थोड़ी देर होने पर कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि इन में ज़्यादातर टीके बूस्टर्स होते हैं यानी वो पहले से मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता को और बढ़ाते हैं. ये वैक्सीन अगर एक-दो महीने देरी से भी लगाई जाएं तो कोई परेशानी नहीं है.