ARRAH: कोइलवर में डेंगू-मलेरिया से बचाव के लिए अनोखी पहल, उद्योगपति अजय सिंह और देवनारायण ब्रह्मचारी जी महाराज रहे मौजूद जब नीतीश के गांव में जाने की नहीं मिली इजाजत, तब बिहारशरीफ में गरजे प्रशांत किशोर, कहा..आज भ्रष्टाचार की कलई खुल जाती Ara News: बीरमपुर क्रिकेट टूर्नामेंट (सीजन 7) का भव्य समापन, बीजेपी नेता अजय सिंह ने विजेता टीम को किया सम्मानित Ara News: बीरमपुर क्रिकेट टूर्नामेंट (सीजन 7) का भव्य समापन, बीजेपी नेता अजय सिंह ने विजेता टीम को किया सम्मानित BIHAR: कार साइड लगाने को लेकर बारात में बवाल, दो पक्षों के बीच जमकर मारपीट-फायरिंग Life Style: पिंक सॉल्ट सफेद नमक से कैसे है अलग, शरीर के लिए कौन है अधिक फायदेमंद? Bihar School News: कैसे पढ़-लिखकर होशियार बनेंगे बिहार के बच्चे? हेडमास्टर ने नदी में फेंक दी किताबें Bihar News: JCB से टक्कर के बाद बाइक में लगी आग, झुलसने से युवक की दर्दनाक मौत Bihar News: सड़क हादसे में BPSC टीचर और उसके नवजात बच्चे की मौत, पांच शिक्षकों की हालत नाजुक Bihar News: सड़क हादसे में BPSC टीचर और उसके नवजात बच्चे की मौत, पांच शिक्षकों की हालत नाजुक
1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 15 Aug 2023 07:22:53 PM IST
- फ़ोटो
PATNA: सुलभ शौचालय को इंटरनेशनल ब्रांड बनाने वाले बिंदेश्वर पाठक का आज दिल्ली में निधन हो गया. बिहार के वैशाली के मूल निवासी बिंदेश्वर पाठक ने होश संभालने के बाद ही भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाने की मुहिम चलायी थी. ब्राह्ण परिवार में जन्मे एक युवक ने जब ये मुहिम छेड़ी थी तो सबसे पहले अपने घर के लोगों का ही विरोध झेलना पड़ा. पिता हमेशा नाराज रहे तो ससुर ने यहां तक कह दिया कि अपना चेहरा मत दिखाना. लेकिन महात्मा गांधी से प्रभावित बिंदेश्वर पाठक का हौंसला कम नहीं हुआ. अपनी दृढ़ निश्चय से उन्होंने सस्ती शौचालय की तकनीक विकसित की और सुलभ शौचालय को अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड बना दिया.
घर से मिली प्रेरणा
1943 में बिहार के वैशाली जिले के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे बिंदेश्वर पाठक को अपने घर से ही शौचालय के लिए काम करने की प्रेरणा मिली. वैसे वे महात्मा गांधी के विचारों से भी प्रभावित थे, जो खुले में शौच के विरोधी थे. दरअसल, बिंदेश्वर पाठक का पैतृक घर बहुत बड़ा था और उसमें 10 कमरे थे. पूरा संयुक्त परिवार वहां रहता था लेकिन घर में शौचालय नहीं था. पुरूष हों या महिला शौच के लिए खेतों में जाया करते थे. लेकिन महिलाओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था. अपने घर की महिलाओं का हाल देखकर ही बिंदेश्वर पाठक ने ये प्रण लिया कि उन्हें शौचालय के क्षेत्र में काम करना है.
26 साल की उम्र में बिंदेश्वर पाठक गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति से जुड़ गये. 1968-69 में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी के मौके पर बिहार में कई तरह के काम किये जा रहे थे. समारोह समिति ने बिंदेश्वर पाठक को ये काम सौंपा कि वे ऐसे शौचालय की तकनीक डेवलप करें, जो न केवल सुरक्षित हो बल्कि आम आदमी भी उसका खर्च वहन कर सके. बिंदेश्वर पाठक ने इस काम को ही अपना मिशन बना लिया. इसके बाद उन्होंने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल संस्था की स्थापना की. इसी संस्था ने दो गड्ढे वाले फ्लश टॉयलेट विकसित किये. सुलभ इंटरनेशल का काम जैसे जैसे बढ़ता गया, वैसे वैसे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बिंदेश्वर पाठक की पहचान मजबूत होती गयी. उन्होंने शौचालय को सस्ता औऱ सेफ बनाने के साथ साथ कम से कम पानी खर्च करने की लगातार नयी तकनीक विकसित की.
ससुर ने कहा-चेहरा मत दिखाना
लेकिन बिंदेश्वर पाठक की इस मुहिम का सबसे ज्यादा विरोध उनके घर में ही हुआ. उनके पिता को शौचालय का काम पूरी तरह से नापसंद था. पिता ने बेटे बिंदेश्वर से बात करना भी बंद कर दिया था. वहीं, बिंदेश्वर पाठक के ससुर ने तो यहां तक कह दिया था कि अपना चेहरा मत दिखाना. ससुर का कहना था कि जब लोग पूछेंगे कि दामाद क्या काम करता है तो क्या बतायेंगे. लेकिन परिवार के तमाम विरोध के बावजूद बिंदेश्वर पाठक सुलभ शौचालय के काम में लगे.