PATNA : क्या किसी जिलाधिकारी को ये बताने के लिए कि वे अपना काम ठीक से कर रहे हैं, धान पीटने की जरूरत है. जहानाबाद में नीतीश सरकार के डीएम साहब जब गांव का निरीक्षण करने गये तो धान पीटने लगे. ये अलग बात है कि डीएम साहब के धान पीटने की सिर्फ तस्वीर खींची गयी, काम तो किसान को ही करना पड़ा. सवाल ये उठ रहा है कि क्या ऐसी ही तस्वीरों से सुशासन की इमेज बनायी जा रही है.
धान पीटने वाले डीएम
दरअसल जहानाबाद के जिलाधिकारी नवीन कुमार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सात निश्चय योजना का ग्राउंड रिपोर्ट लेने निकले थे. वे घोषी प्रखंड के कुर्रे गांव में निरीक्षण कर रहे थे. वहां खलिहान में धान की दौनी करते किसान दिखे. डीएम साहब खलिहान में पहुंचे और किसान के हाथों से धान का बोझा लेकर दौनी करने लगे. साथ में अधिकारियों का दस्ता था. निचले अधिकारियों ने देखा कि डीएम साहब धान की दौनी कर रहे हैं. वे भी धान के पौधे लेकर दौनी करने वाली मशीन के पास पहुंच गये. जहानाबाद के डीडीसी मुकुल गुप्ता से लेकर दूसरे अधिकारी इसी होड़ में शामिल हो गये. ये अलग बात है कि धान की दौनी करने वाले अधिकारियों ने सिर्फ तस्वीर खिंचवायी और निकल गये. काम तो किसान को ही करना पड़ा.
एक डीएम ने की थी सिलाई
बुधवार को ही सारण के जिलाधिकारी रेडीमेड वस्त्र निर्माण सेंटर पहुंचे थे. वहां डीएम साहब खुद सिलाई मशीन पर बैठ गये थे और सिलाई करने की कोशिश की. हालांकि इस चक्कर में कपड़ा भी खराब हो गया. डीएम साहब ने टेढ़ी सिलाई कर दी थी.
क्या ऐसे ही आयेगा सुशासन
दरअसल, विधानसभा चुनाव में चोट खाये नीतीश कुमार अपने जिलाधिकारियों को बार-बार एक्शन में आने की नसीहत दे रहे हैं. राज्य सरकार की ओर से जिलाधिकारियों को बार-बार ये निर्देश दिया जा रहा है कि वे फील्ड में जायें. अब फील्ड में जा रहे डीएम कहीं किसान बनकर फोटो खिंचवा रहे हैं तो कहीं दर्जी बनकर. हालांकि सरकार के निर्देश का मतलब ये है कि फील्ड में जाकर डीएम ये जानें कि सरकारी योजनाओं की वास्तविक स्थिति क्या है. लेकिन क्या इसके लिए किसान और दर्जी बनकर फोटो खिंचवाने की जरूरत है?
राज्य सरकार के एक आलाधिकारी ने बताया कि फोटो खिंचवा रहे जिलाधिकारी जानते हैं कि उनकी तस्वीरें बड़े साहबों के पास भी पहुंचेगी. उन्हें लग रहा है कि इससे साहब खुश होंगे. सरकारी योजनाओं का हाल जानने के लिए किसान या दर्जी बनने की जरूरत नहीं है. डीएम ग्राउंड पर जाकर लोगों से बात कर लें तो हकीकत खुद ब खुद सामने आ जायेगी. वैसे अगर डीएम अगर पेयजल योजना की जांच करने गये थे तो उन्हें गांवों में सरकार द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे पानी को खुद पीकर देखना चाहिये था. इससे लोगों के बीच उनकी इमेज भी ज्यादा सही होती. वहीं, सरकारी पेयजल योजना की वास्तविकता का भी अंदाजा हो जाता.