PATNA : बिहार में इन दिनों राजभवन और सरकार के बीच बीच विवाद गहरा गया है। जहां सरकार के शिक्षा विभाग के अधिकारी विश्वविद्यालय के वीसी पर एक्शन ले रहे हैं तो राजभवन इस आदेश को रद्द कर रहा है। इतना ही नहीं राज्य सरकार अब अपने स्तर से वीसी की नियुक्ति की बात कर रहा है। ऐसे में इस गहराते हुए विवाद को लेकर बीते शाम खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजभवन भी पहुंचे। इस बीच अब जो एक ताजा जानकारी निकल कर सामने आ रही है। उसके मुताबिक आर्यभट्ट नॉलेज विश्वविद्यालय में बड़ा खेल हुआ है। जहां फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर 6 साल तक उच्च पद पर एक अधिकारी काम करते रहे। इनपर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद फर्जीवाड़ा करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही नहीं हो पाई है।
दरअसल, बिहार में आर्यभट्ट नॉलेज विश्वविद्यालय की स्थापना तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना साल 2010 में की गई थी। राजधानी पटना के मीठापुर इलाके में विश्वविद्यालय के लिए परिसर का निर्माण कराया गया था। इसके बाद 19 अगस्त 2011 को आर्यभट्ट नॉलेज विश्वविद्यालय की ओर से इंस्पेक्टर ऑफ कॉलेज पद के लिए एक विज्ञापन निकाला गया। जहां डॉ अजय प्रताप ने आवेदन दिया और इसके बाद 16 दिसंबर 2013 को अजय प्रताप आर्यभट्ट नॉलेज विश्वविद्यालय में इंस्पेक्टर आफ कॉलेज पद पर नियुक्त किए गए।
अजय प्रताप ने एमटेक इन इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी डिग्री सिक्किम मणिपाल विश्वविद्यालय से हासिल की थी और गणित विषय में एमएससी की डिग्री मगध विश्वविद्यालय से हासिल किया था। इन्हीं दोनों डिग्री के आधार पर अजय प्रताप का चयन हुआ था। लेकिन,अब अजय प्रताप की डिग्री की जांच हुई तो चौंका देने वाले तथ्य सामने आए। सिक्किम मणिपाल विश्वविद्यालय से जब पुष्टि के लिए पत्र लिखा गया तो विश्वविद्यालय ने डिग्री को फर्जी करार दिया। इतना ही नहीं मगध विश्वविद्यालय ने भी एमएससी की डिग्री को फर्जी करार दिया।
जिसके बाद यह मामला पटना हाई कोर्ट पहुंचा और न्यायालय ने 9 दिसंबर 2019 को अजय प्रताप को पद से हटाने के लिए आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि गलत डिग्री के आधार पर अजय प्रताप पद पर काबिज हुए थे। इसे सारे काम वापस ले लिए जाएं। लेकिन, अजय प्रताप का रसूख ऐसा था कि न्यायालय के आदेश के बावजूद उन्हें पद से हटाने में 2 साल लग गए। अजय प्रताप का टर्मिनेशन 29 नवंबर 2021 को हुआ इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि गलत डिग्री के आधार पर अजय प्रताप पद पर काबिज हुए थे। अजय प्रताप को पद से हटाने में 2 साल लग गए।
इधर, इस मामले में शिकायत दर्ज करवाने वाले एक्टिविस्ट संतोष कुमार ने कहा कि, हमने इस मामले को जोर-जोर से उठाया। न्यायालय में भी अपना पक्ष रखा और आखिरकार अजय प्रताप पद से हटाए गए। संतोष कुमार ने कहा कि अजय प्रताप के रसूख के चलते पुलिसिया कार्रवाई नहीं हो पाई है। 19 जुलाई 2018 को एफआईआर दर्ज किया गया था, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हो सका है। अजय प्रताप लगभग 5 साल तक विश्वविद्यालय के आंख में धूल झोंकते रहे और नियम कानून को ताक पर रख कई फैसले लिए।