गोडसे से लेकर निर्भया के हत्यारों तक-140 साल से भारत में सिर्फ बक्सर जेल में ही बनते हैं फांसी के फंदे

गोडसे से लेकर निर्भया के हत्यारों तक-140 साल से भारत में सिर्फ बक्सर जेल में ही बनते हैं फांसी के फंदे

PATNA: दिल्ली की एक कोर्ट ने निर्भया कांड के 4 आरोपियों को फांसी पर लटकाने के लिए डेथ वारंट जारी कर दिया है. डेथ वारंट वो कागज होता है जो जेल के अधिकारियों को फांसी की सजा को तामिल करने की इजाजत दे देता है. दिन और समय मुकर्रर कर दिया गया है-22 जनवरी की सुबह 7 बजे निर्भया कांड के चारों दोषियों को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाया जायेगा जब तक उनकी जान न चली जाये. फांसी का ये फंदा बिहार के बक्सर जेल में बना हुआ है. पिछले महीने ही इसे बक्सर से दिल्ली भेजा जा चुका है. 



नाथू राम गोडसे से लेकर अब तक फांसी के फंदे का सफर

देश में अब अगर कहीं भी फांसी की सजा का जिक्र होता है तो बक्सर जेल का नाम सामने जरूर आता है. बक्सर का सेंट्रल जेल देश का एकमात्र ऐसा जेल है जहां फांसी के फंदे तैयार किये जाते हैं. 1948 में महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को जब नवंबर 1949 में फांसी की सजा दी गयी थी तब भी वो मौत का फंदा बक्सर जेल में ही तैयार हुआ था. संसद पर हमला करने वाला अफजल गुरू, 1993 बम ब्लास्ट करने वाला याकूब मेमन, और 26/11के मुंबई आतंकी हमले के आरोपी अजमल कसाब को भी बक्सर जेल में बने फांसी के फंदे पर ही लटकाया गया था. 


क्यों सिर्फ बक्सर जेल में ही बनते हैं फांसी के फंदे?

बक्सर जेल में फांसी के फंदे बनने की कहानी पुरानी है. 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने जब बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश तक अपना राज कायम कर लिया तो 1880 में बक्सर जेल बनाया गया था. अंग्रेजों के राज में विरोध का स्वर उठाने वालों को फांसी देने की सजा आम बात थी. 1884 तक अपने विरोधियों को फांसी की सजा देने के लिए अंग्रेज फिलीपिंस के मनीला से फांसी के फंदे मंगवाते थे. पानी के जहाज से विदेश से फांसी के फंदे को आने में कई दफे देर भी हो जाती थी. तब ब्रिटानी हकूमत ने बक्सर जेल में फांसी के फंदे तैयार करने का फैसला लिया. 1884 में बक्सर जेल में फांसी का फंदा तैयार करने की मशीन लगायी गयी. ब्रिटिश सरकार ने इंडिया फैक्ट्री एक्ट में सिर्फ बक्सर जेल को ही फांसी का फंदा बनाने का अधिकार दिया. दूसरे किसी को फांसी का फंदा बनाने की अनुमति नहीं दी गयी. 


फांसी के फंदों के लिए अनुकूल था बक्सर का मौसम

फांसी के फंदे की रस्सी दूसरी रस्सियों से अलग होता है. ये मुलायम तो होता है लेकिन बेहद मजबूत भी होता है. बक्सर का मौसम और बक्सर जेल के नजदीक बहने वाली गंगा नदी से पानी की पर्याप्त उपलब्धता से ब्रिटिश सरकार को फैसला लेने में मदद मिली. वैसे, बक्सर देश का एकमात्र ऐसा जेल है जिसमें जेल के भीतर कुआं है. दूसरी किसी जेल में कुआं नहीं होता. इसके पीछे ये आशंका होती है कि जेल में बंद कैदी कुएं में कूदकर जान दे सकते हैं. 


खास धागे से बनता है फांसी का फंदा

एक खास प्रकार का धागा जिसे J-34 के नाम से जाना जाता है, फांसी का फंदा बनाने में प्रयोग किया जाता है. इस धागे के लिए कपास पंजाब में उगायी जाती है और फिर उसे बक्सर जेल पहुंचाया जाता है. जेल में फांसी का फंदा तैयार करने का खास फार्मूला है, जिसे इसके एक्सपर्ट्स ही जानते हैं. बक्सर जेल में फांसी का फंदा तैयार करने के लिए 4-5 कर्मचारी नियुक्त किये जाते हैं. वे जेल में सजा काट रहे कैदियों से भी इस काम में मदद लेते हैं. 


बक्सर में बने फांसी के फंदे की खासियत

J-34 फायबर को पहले धागे में बदला जाता है, फिर 154 धागों को गूंथकर 154 रस्सियां तैयार की जाती हैं. फिर ऐसी 6 रस्सियों की गांठें तैयार कर फांसी का फंदा बनाया जाता है. इस दौरान ढ़ेर सारे पानी से धागों को लगतारा भिगोया जाता है ताकि फांसी के फंदे मुलायम बने रहे. बक्सर में बने फांसी के फंदे की खासियत होती है कि जिसे सजा दी जाती है उसकी जान तो चली जाती है लेकिन उसके गले को नुकसान नहीं पहुंचता. बक्सर जेल में बने फांसी के फंदे को कई बार उपयोग किया जा सकता है. लेकिन एक बार प्रयोग किये गये फंदे को दुबारा उपयोग में अब तक नहीं लाया गया है.