PATNA : बिहार में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है। सरकार ने आरक्षण कानून में संशोधन को खारिज करने संबंधी पटना हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। सितंबर महीने में इस मामले पर सुनवाई हो सकती है। हालांकि, पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है।
दरअसल, आरक्षण को लेकर संशोधित कानून के तहत नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रावधान किया था। इसके बाद पटना उच्च न्यायालय ने 20 जून के अपने फैसले में कहा था कि पिछले साल नवंबर में राज्य विधानमंडल में सर्वसम्मति से पारित किए गए संशोधन संविधान के खिलाफ है। ये समानता के (मूल) अधिकार का हनन करता है। उसके बाद कोर्ट ने आरक्षण बढ़ाने पर रोक लगा दिया।
उसके बाद अब पटना हाईकोर्ट की एक पीठ ने बिहार में सरकारी नौकरियों में रिक्तियों में आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को मंजूर कर लिया था। कोर्ट ने 87 पन्नों के विस्तृत आदेश में स्पष्ट किया कि उसे 'कोई भी ऐसी परिस्थिति नजर नहीं आती जो राज्य को इंदिरा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करने में सक्षम बनाती हो।
आपको बताते चलें कि, बिहार में आरक्षण को लेकर संशोधन जातिगत सर्वेक्षण के बाद किए गए थे, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी को राज्य की कुल जनसंख्या का 63 प्रतिशत बताया गया था, जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत से अधिक बताई गई थी। इसके बाद राज्य सरकार के तरफ से आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया गया था। लेकिन, पटना हाई कोर्ट ने इसे उचित नहीं मानते हुए इस पर रोक लगा दिया था।