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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 02 Aug 2025 08:45:11 AM IST
प्रतीकात्मक - फ़ोटो Meta
Parenting Tips: बच्चों की परवरिश माता-पिता के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी है और हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा सफल, खुशहाल और आत्मनिर्भर बने, लेकिन अनजाने में की गई कुछ गलतियाँ बच्चे के भविष्य पर गहरा असर डाल सकती हैं। ऐसे में माता-पिता को इन सामान्य गलतियों से बचना जरूरी है। आज हम यहाँ तीन ऐसी गलतियों के बारे में बात करने जा रहे जो बच्चों के विकास को नुकसान पहुँचा सकती हैं और इनसे माता-पिता को बचना चाहिए।
पहली गलती है बच्चों को बिना वजह ज्यादा डांटना और अनुशासन के नाम पर दबाव डालना। कई परिवारों में माता-पिता सख्ती को अनुशासन का पर्याय मानते हैं। पढ़ाई में अच्छे अंक न लाने पर बच्चों को डाँटना या शारीरिक दंड देना आम है। यह बच्चों में डर और तनाव पैदा करता है, जिससे उनकी मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इससे बच्चे आत्मविश्वास खो सकते हैं और खुद को कमजोर समझने लगते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार प्यार और समझदारी से बच्चों को गलतियों का अहसास कराने से वे अधिक आत्मविश्वास और जिम्मेदार बनते हैं।
दूसरी गलती है बच्चों को पर्याप्त आजादी न देना। कई माता-पिता बच्चों के हर फैसले पर नियंत्रण रखते हैं, जैसे दोस्त चुनना, खेलने का समय या शौक। यह बच्चों को निर्भर और असहज बनाता है। एक सर्वे में पाया गया है कि 60% किशोर अपनी स्वतंत्रता की कमी से निराश हैं। बच्चों को सीमित आजादी देना, छोटे फैसले लेने की छूट उनकी सोचने-समझने की क्षमता को बढ़ाता है। इससे वे भविष्य में आत्मनिर्भर बनते हैं और प्रतिस्पर्धी माहौल में बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को सुरक्षित माहौल में गलतियाँ करने और उनसे सीखने का मौका दें।
तीसरी गलती है बच्चों की भावनाओं को नजरअंदाज करना। बिहार में सामाजिक दबाव और आर्थिक तनाव आम हैं, माता-पिता अक्सर बच्चों की भावनात्मक जरूरतों पर ध्यान नहीं दे पाते। बच्चे अपनी चिंताएँ व्यक्त करना चाहते हैं, लेकिन अगर उनकी बात अनसुनी की जाती है तो वे अंदर से टूट सकते हैं। बिहार के स्कूलों में 30% छात्र डिप्रेशन या चिंता से जूझ रहे हैं क्योंकि उनकी भावनाओं को समझने की कमी है। बच्चों की बात ध्यान से सुनना, उनकी भावनाओं को महत्व देना और खुलकर बातचीत करना रिश्ते को मजबूत करता है। इससे बच्चे मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं और भविष्य में चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार होते हैं।
माता-पिता को बच्चों की तुलना दूसरों से करने से भी बचना चाहिए। क्योंकि तुलना से बच्चे खुद को कमतर महसूस करते हैं और उनका आत्मविश्वास टूटता है। प्रत्येक बच्चे की खासियत को पहचानना और उसका समर्थन करना जरूरी है। माता-पिता को चाहिए कि वे स्थानीय स्कूलों या सामुदायिक केंद्रों में पेरेंटिंग कार्यशालाओं में हिस्सा लें।