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maha kumbh 2025 : जानिए नागा साधुओं को क्यों नहीं दी जाती मुखाग्नि, क्या है इसके पीछे की वजह और कैसे होता है अंतिम संस्कार

maha kumbh 2025 : नागा साधु जीवित रहते ही खुद अपना पिंडदान और अंतिम संस्कार कर चुके होते हैं, ऐसे में उनकी अंत्येष्टि को लेकर भी कई सवाल होते आए हैं। हिन्दू धर्म के मुताबिक

maha kumbh 2025 :

maha kumbh 2025 : प्रयागराज के महाकुंभ 2025 में आस्था का मेला लग चुका है। यहां रोज करोड़ों की तादाद में श्रद्धालु आस्था के संगम में डुबकी लगा रहे हैं। लेकिन सबसे पहले मंगलवार को अखाड़ों ने अमृत स्नान में हिस्सा लिया और इसके बाद साधु-संतों से लेकर आमजन संगम में पवित्र स्नान कर चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस महाकुंभ में नागा साधुओं का भी जमावड़ा देखा गया है। ऐसे में आज हम आपको नागा साधुओं के बारे में एक रहस्य वाली बात बताने वाले हैं। यह बात कुछ ऐसी है कि है कोई यह जानना चाहता है कि इन नागा साधुओं का मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है? तो आइए जानते हैं इसका जवाब। 


दरअसल, नागा साधु जीवित रहते ही खुद अपना पिंडदान और अंतिम संस्कार कर चुके होते हैं। लेकिन,सवाल यह है कि हिन्दू धर्म के मुताबिक जन्म से लेकर मृत्यु तक संस्कारों का पालन किया जाता है और इनमें अंतिम संस्कार भी प्रमुख है। ऐसे में आम लोगों की अंत्येष्टि दाह संस्कार कर की जाती है। लेकिन नागा साधु तो खुद ही अपना पिंड दान कर चुके होते हैं तो उनका अंतिम संस्कार कैसे होता है? 


इसको लेकर जान हमने कुछ जगहों पर पढ़ा और कुछ धर्मगुरों की बातें सुनी तो इसका जवाब समझ में आ गया है। ऐसे में आज हम आपको इस सवाल का जवाब जूना अखाड़ा के कोतवाल अखंडानंद महाराज द्वारा कही गई बातों के जरिए बतलाते हैं। अखंडानंद महाराज बताते हैं कि नागा साधुओं का अंत्येष्टि दाह संस्कार नहीं किया जाता है बल्कि इनकी मृत्यु के बाद समाधि लगाई जाती है। वह चाहे जल समाधि हो या फिर भू-समाधि, उनका दाह संस्कार नहीं किया जाता। 


अखंडानंद महाराज कहते हैं कि नागा की चिता को आग नहीं दी जाती और ऐसा करने पर बहुत दोष लगता है। इसकी वजह बताते हुए महाराज ने कहा कि नागा साधु पहले ही अपने जीवन को नष्ट कर चुका होता है और पिंडदान कर चुका होता है, तब जाकर ही वह नागा साधु बन पाता है। आम व्यक्ति से अलग नागा साधु बनने के बाद अंतिम संस्कार में पिंडदान और दाह संस्कार की प्रक्रिया लागू नहीं होती। इसी वजह से नागा को अग्नि को समर्पित न करके, जल या फिर भू-समाधि दी जाती है। 


उन्होंने बताया कि, नागाओं को सिद्ध योग मुद्रा में बैठाकर भू-समाधि दी जाती है। इसकी वजह है कि भू-समाधि पाकर नागा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति पा जाते हैं। इस समाधि से पहले हिन्दू धर्म के अनुसार उनके शव को स्नान कराया जाता है और फिर मंत्रोच्चण के साथ भू-समाधि दे दी जाती है। 


मृत्यु के बाद नागा साधु के शव पर भगवा वस्त्र डाले जाते हैं और भस्म लगाया जाता है जो उनकी आध्यात्मिक साधना का प्रतीक है। उनके मुंह में गंगाजल और तुलसी की पत्तियां भी रखी जाती हैं। इसके बाद ही भू-समाधि दी जाती है, साथ ही उस समाधि स्थल पर एक सनातनी निशान बना दिया जाता है ताकि कोई उस जगह को गंदा न कर सके। नागा साधुओं को धर्म रक्षक भी माना गया है, यही वजह है कि एक योद्धा की तरह पूरे मान-सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी जाती है।