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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 14 Nov 2025 10:29:00 AM IST
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Parbatta Election result 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना आज सुबह 8 बजे से शुरू होते ही राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। खगड़िया जिले की चर्चित परबत्ता विधानसभा सीट पर शुरुआत से ही कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। इस सीट पर आरजेडी के उम्मीदवार डॉ. संजीव कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रत्याशी बाबूलाल शौर्य के बीच सीधी लड़ाई है। पहले राउंड की मतगणना के ताजा रुझानों के अनुसार इस सीट पर लोजपा (आरवी) के बाबूलाल शौर्य बढ़त बनाए हुए हैं। शुरुआती आंकड़ों ने यह साफ कर दिया है कि परबत्ता में मुकाबला दिलचस्प होने वाला है और हर राउंड के साथ तस्वीर बदल सकती है।
पहले राउंड में लोजपा (आरवी) उम्मीदवार की बढ़त
ताजा रुझानों के मुताबिक, पहले राउंड की गिनती में लोजपा (रामविलास) के बाबूलाल शौर्य 1693 वोट से आगे चल रहे हैं। उन्हें अब तक कुल 4690 वोट हासिल हुए हैं। वहीं आरजेडी के प्रत्याशी और वर्तमान विधायक डॉ. संजीव कुमार को 2997 वोट मिले हैं। शुरुआती चरण में मिली यह बढ़त एनडीए खेमे के लिए उत्साहजनक मानी जा रही है, क्योंकि एनडीए ने इस सीट को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी।
गौरतलब है कि डॉ. संजीव कुमार ने 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के टिकट पर जीत हासिल की थी। उस समय उन्होंने मात्र 951 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। उनकी यह जीत बेहद संघर्षपूर्ण थी और इस बार वह जेडीयू छोड़कर आरजेडी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे हैं। सीट बदलने और राजनीतिक समीकरणों में बदलाव का असर मतदाताओं पर कितना पड़ा है, यह आने वाले राउंड तय करेंगे।
परबत्ता सीट का राजनीतिक इतिहास: कांग्रेस, जदयू और राजद के बीच खींचतान
परबत्ता विधानसभा सीट का इतिहास बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण माना जाता है। यह सीट 1951 में अस्तित्व में आई थी और 1952 में पहली बार यहां चुनाव हुए थे। शुरुआती वर्षों में यह सीट सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस का गढ़ रही। 1952 के पहले चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के त्रिवेणी सिंह यहां से विजयी बने थे।
1952 से लेकर 1985 तक कांग्रेस ने इस सीट पर मजबूत पकड़ बनाए रखी और इस दौरान 7 बार यहां से जीत हासिल की। यह वह दौर था जब परबत्ता कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता था।
लेकिन 1990 के बाद प्रदेश की राजनीति बदलने लगी और सामाजिक समीकरणों के आधार पर नई पार्टियों का प्रभाव बढ़ा। इसी दौर में जदयू और राजद ने परबत्ता में अपनी पकड़ मजबूत की। 1990 से लेकर 2020 तक यह सीट जदयू और राजद के बीच झूलती रही। इस अवधि में जदयू ने 5 बार और राजद ने 2 बार जीत दर्ज की।
परबत्ता सीट ने राज्य की राजनीति को भी कई महत्वपूर्ण नेता दिए हैं। इनमें सबसे उल्लेखनीय नाम सम्राट चौधरी का है। सम्राट चौधरी 2000 और 2010 में इसी सीट से राजद के टिकट पर विधायक चुने गए थे। बाद में उन्होंने पार्टी बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया। वर्तमान में वह एनडीए सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद संभाल रहे हैं। उनका राजनीतिक सफर भी परबत्ता सीट को चर्चा में बनाए रखता है।
इस बार मुकाबला क्यों है दिलचस्प?
इस बार परबत्ता सीट पर मुकाबला कई वजहों से खास है। पहली वजह है—डॉ. संजीव कुमार का पार्टी परिवर्तन। 2020 में जदयू से चुनाव लड़कर जीतने के बाद इस बार वह आरजेडी के टिकट पर मैदान में हैं। पार्टी बदलने पर जनता का रुझान कैसा रहेगा, यह चुनाव नतीजे स्पष्ट करेंगे।
दूसरी वजह एनडीए की रणनीति है। परबत्ता सीट को जीतने के लिए एनडीए ने लोजपा (रामविलास) के मजबूत उम्मीदवार बाबूलाल शौर्य को उतारा है। लोजपा (आरवी) का खगड़िया क्षेत्र में परंपरागत जनाधार है। यही कारण है कि शुरुआती रुझानों में शौर्य की बढ़त को एनडीए की सोची-समझी रणनीति का नतीजा माना जा रहा है।
तीसरी वजह है—परबत्ता की जातीय और सामाजिक संरचना। यहां कई जातिगत समूह निर्णायक भूमिका निभाते हैं। स्थानीय स्तर पर नेताओं का पकड़, विकास मुद्दे और युवाओं की प्राथमिकताएं भी इस चुनाव को पेचीदा बनाती हैं।
आगे क्या?
हालांकि पहले राउंड में लोजपा (आरवी) के बाबूलाल शौर्य बढ़त बनाए हुए हैं, लेकिन मतगणना के कई राउंड अभी बाकी हैं। परबत्ता ऐसी सीट है जहां हर बार वोटों का अंतर बहुत अधिक नहीं रहा। इसलिए आगे के रुझान तस्वीर बदल सकते हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह सीट अंत तक रोमांच से भरी रहेगी। मतदान के दौरान अच्छी-खासी वोटिंग हुई थी और दोनों दलों ने बूथ स्तर तक अपने कार्यकर्ताओं को तैनात किया था। कुल मिलाकर परबत्ता विधानसभा चुनाव 2025 में शुरुआती बढ़त भले ही लोजपा (आरवी) के पक्ष में गई हो, लेकिन अंतिम नतीजा आने तक यहां की राजनीतिक जंग बेहद दिलचस्प बनी रहने वाली है।