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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 23 Oct 2025 11:44:53 PM IST
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Bihar politics : राजनीति में कहा जाता है कि यहां कुछ भी संयोगवश नहीं होता। हर कदम, हर बयान और हर गठबंधन के पीछे एक गहरी रणनीति छिपी होती है। खासकर जब बात बिहार की राजनीति की हो, तो यहां की हर हलचल राष्ट्रीय स्तर पर असर डालती है। पिछले साल जब विपक्षी दलों ने मिलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को चुनौती देने के लिए इंडिया ब्लॉक (INDIA Block)** का गठन किया था, तब इसे मोदी सरकार के खिलाफ सबसे बड़ा मोर्चा माना जा रहा था। लेकिन इस गठबंधन से अचानक नीतीश कुमार का अलग होना सबको चौंका गया था। उस समय तमाम तरह की अटकलें लगीं—कहीं यह बात उठी कि उन्हें गठबंधन का प्रमुख नहीं बनाया गया, तो कहीं कहा गया कि वे पीएम पद की दौड़ से बाहर किए जा रहे थे। लेकिन अब इस पूरे मामले से पर्दा उठ चुका है।
दरअसल, नीतीश कुमार के सबसे करीबी माने जाने वाले जेडीयू नेता संजय झा ने एक इंटरव्यू में इस राज का खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि नीतीश कुमार का इंडिया ब्लॉक से अलग होना किसी पद या सम्मान के अभाव की वजह से नहीं था, बल्कि विपक्षी गठबंधन के अंदर की असंगठित राजनीति और गैर-गंभीर रवैये की वजह से था।
विपक्षी एकता की कहानी और दरार की शुरुआत
जब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया ब्लॉक बना, तो उसका उद्देश्य था भाजपा को सत्ता से बाहर करना। इस गठबंधन में कांग्रेस, राजद, जेडीयू, टीएमसी, आम आदमी पार्टी, डीएमके समेत कई दल शामिल हुए थे। शुरूआत में सबकुछ ठीक लग रहा था, मीटिंग्स हो रही थीं, रणनीतियां बन रही थीं, लेकिन जल्द ही मतभेद सामने आने लगे। संजय झा के मुताबिक, “नीतीश कुमार को इंडिया ब्लॉक का ऑब्जर्वर (Observer) बनाए जाने का प्रस्ताव तय था। यह पद विपक्षी गठबंधन के समन्वय और रणनीति बनाने के लिए बेहद अहम था। लेकिन खुद नीतीश कुमार ने इस जिम्मेदारी को लेने से इनकार कर दिया।”
असली वजह क्या थी?
संजय झा ने कहा कि असली वजह यह नहीं थी कि नीतीश कुमार को कोई पद नहीं दिया जा रहा था। असली समस्या यह थी कि विपक्षी पार्टियों के बड़े नेता गठबंधन को लेकर गंभीर नहीं थे। उन्होंने इशारों में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव का जिक्र करते हुए कहा—“जब नीतीश कुमार पूरी गंभीरता से बैठकों में सुझाव दे रहे थे, उस दौरान कई बड़े नेता मोबाइल फोन में व्यस्त रहते थे। वे बैठकों में केवल औपचारिक उपस्थिति दर्ज कराने आते थे। न किसी के पास ठोस योजना थी, न कोई विजन। ऐसे में रणनीति बनाना मुश्किल था।”
उन्होंने आगे कहा कि “बिहार के एक बड़े नेता (तेजस्वी यादव) का भी यही रवैया था। थोड़ी देर चर्चा सुनते और फिर मोबाइल में लग जाते। जब विपक्षी गठबंधन में इस स्तर की असंवेदनशीलता और अनुशासनहीनता हो, तो कोई गंभीर नेता वहां रहकर क्या करेगा?”
नीतीश कुमार का निर्णय
नीतीश कुमार ने यह सब देखकर खुद को पीछे हटाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने करीबी साथियों से कहा कि “यह गठबंधन केवल नाम का है। यहां न कोई साझा नीति है, न विजन, न नेतृत्व की एकता।” नीतीश का मानना था कि जब विपक्षी एकता का उद्देश्य भाजपा को चुनौती देना है, तो उसमें गंभीरता और समर्पण की आवश्यकता है। लेकिन जब शीर्ष स्तर पर ही राजनीति मोबाइल और दिखावे तक सीमित हो गई, तो उससे कुछ सार्थक निकलना मुश्किल है। यही कारण रहा कि उन्होंने इंडिया ब्लॉक से अलग होकर फिर से भाजपा के साथ गठबंधन करने का रास्ता चुना।
2020 की भी नाराजगी रही कारण
संजय झा से जब यह पूछा गया कि 2020 में नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होने का निर्णय क्यों लिया था, तो उन्होंने साफ कहा—“हमारे लिए भाजपा के साथ सरकार चलाने में कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन कुछ भाजपा नेताओं ने चुनाव के दौरान जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ प्रचार किया। इससे जेडीयू की सीटें कम हुईं। इस घटना से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाराज थे और उन्होंने अलग रास्ता अपनाने का फैसला लिया था।”हालांकि, झा ने यह भी स्पष्ट किया कि दोनों दलों के बीच मतभेद वैचारिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति को लेकर थे।
राहुल-तेजस्वी की भूमिका पर सवाल
संजय झा के इस खुलासे के बाद यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या विपक्ष के भीतर एकजुटता की कमी की वजह से ही गठबंधन कमजोर हुआ। नीतीश कुमार जैसे अनुभवी नेता, जिनके पास प्रशासन और गठबंधन राजनीति का 20 साल का अनुभव है, जब ऐसा आरोप लगाते हैं कि “विपक्षी नेता सिर्फ दिखावे की बैठक करते हैं,” तो यह विपक्षी राजनीति की गंभीरता पर सवाल उठाता है।
नीतीश कुमार का इंडिया ब्लॉक से अलग होना केवल एक राजनीतिक फैसला नहीं था, बल्कि यह विपक्षी राजनीति की वर्तमान स्थिति का आईना भी है। जब गठबंधन के शीर्ष नेता खुद एकजुट नहीं हो पाते, जब अनुभव और विचारों की जगह व्यक्तिगत एजेंडा ले लेता है, तो ऐसा टूटना स्वाभाविक है।
नीतीश कुमार ने भले ही भाजपा के साथ फिर से राजनीतिक समीकरण साध लिया हो, लेकिन इस खुलासे ने विपक्षी राजनीति की बुनियादी कमजोरी उजागर कर दी है “एकजुटता का दावा, लेकिन भीतर से बिखराव। अब यही बात बिहार चुनाव में भी देखने को मिला जब कांग्रेस के खिलाफ राजद के कैंडिडेट या वीआईपी के कैंडिडेट मैदान में हैं। ऐसे में नीतीश कुमार के तरफ से उस समय जो बातें कहीं गई थी उस में थोड़ी सच्चाई तो जरूर नजर आती है।
बहरहाल, यह खुलासा आने वाले दिनों में न केवल बिहार बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी बड़ा असर डाल सकता है, क्योंकि अब सवाल यह है कि क्या इंडिया ब्लॉक जैसी कोशिशें भविष्य में एक स्थायी और प्रभावी विपक्ष खड़ा कर पाएंगी या फिर यह भी राजनीतिक दिखावे का हिस्सा बनकर रह जाएंगी।