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Bihar Election : अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद मोकामा में कितना बदल सकता है समीकरण, क्या इस बार खतरे में छोटे सरकार का किला ?

मोकामा विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 2.90 लाख है। इस इलाके में जातिगत समीकरण बेहद निर्णायक हैं। भूमिहार, जो यहां निर्णायक वोटर्स माने जाते हैं, कुल मतदाताओं का लगभग 30 प्रतिशत हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 02 Nov 2025 12:06:26 PM IST

Bihar Election : अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद मोकामा में कितना बदल सकता है समीकरण, क्या इस बार खतरे में छोटे सरकार का किला ?

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Bihar Election : बिहार की राजनीति में मोकामा विधानसभा क्षेत्र हमेशा से ही सुर्खियों में रहा है। इसकी वजह केवल राजनीतिक महत्व नहीं, बल्कि यहाँ की जटिल जातिगत संरचना और बाहुबली राजनीति भी है। इस बार मोकामा में हलचल तब बढ़ गई, जब पूर्व विधायक और जदयू के कैंडिडेट अनंत सिंह को एक हत्याकांड के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उनके गिरफ्तारी ने न केवल इलाके के राजनीतिक समीकरण को बदल दिया है, बल्कि छोटे सरकार के ‘किले’ पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।


मोकामा विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 2.90 लाख है। इस इलाके में जातिगत समीकरण बेहद निर्णायक हैं। भूमिहार, जो यहां निर्णायक वोटर्स माने जाते हैं, कुल मतदाताओं का लगभग 30 प्रतिशत हैं। यदि इन भूमिहार वोटर्स के साथ ब्राह्मण और राजपूत को जोड़ा जाए तो सवर्ण वोटर्स की कुल संख्या लगभग 40 प्रतिशत के करीब हो जाती है। ये सवर्ण वोटर पिछले कई चुनावों में एनडीए के मजबूत स्तंभ रहे हैं।


भूमिहार और सवर्ण वोटर्स के बाद पिछड़ा वर्ग सबसे बड़ा वोट बैंक है। इसमें लगभग 22-25 प्रतिशत यादव और 20-22 प्रतिशत धानुक वोटर शामिल हैं। इसके अलावा दलित, पासवान और मुस्लिम मतदाता मिलाकर लगभग 30 प्रतिशत आबादी बनाते हैं। यह विविध और जटिल जातिगत मिश्रण मोकामा को हमेशा से ही राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता रहा है।


अनंत सिंह की पकड़ पहले से ही इस क्षेत्र में काफी मजबूत थी। उनकी लोकप्रियता और बाहुबली छवि ने एनडीए को कई चुनावों में लाभ पहुंचाया। विशेषकर भूमिहार और धानुक वोट बैंक पर उनका प्रभाव निर्णायक रहा है। लेकिन पिछले लोकसभा चुनावों में देखा गया कि राजद ने मोकामा क्षेत्र में यादव और धानुक वोटर्स के बीच तेजी से सेंधमारी शुरू कर दी थी।


2024 लोकसभा चुनाव का प्रभाव

2024 में मोकामा मुंगेर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था। उस समय लालू प्रसाद यादव ने पहली बार पिछड़ा वर्ग का उम्मीदवार मैदान में उतारा। जदयू के ललन सिंह के मुकाबले राजद ने धानुक समाज से आने वाली अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी को कैंडिडेट बनाया। इस चुनाव में अनंत सिंह ने अपने राजनीतिक अनुभव और जनसंपर्क के जरिए ललन सिंह का समर्थन किया।


हालांकि, इस लोकसभा चुनाव में भी अनंत सिंह की मौजूदगी निर्णायक साबित हुई। उनके प्रयासों के बावजूद, कुछ क्षेत्रों में राजद ने मजबूत पकड़ बनाई। मोकामा के 290 बूथों में से 126 बूथ पर ललन सिंह पिछड़े हुए। शिवनार टोला, हाथीदह, गोसाइ गांव, ममरखाबाद, लेमुआबाद, मेकरा, कन्हायपुर, मोर और पंचमहला जैसे इलाकों में जदयू के उम्मीदवार ने काफी कम अंतर से हार का सामना किया।


यह स्थिति दर्शाती है कि राजद की रणनीति  यादव और धानुक वोट बैंक में सेंध लगाना है और धीरे-धीरे काम कर रही है। अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद यह सेंध और भी प्रभावशाली हो सकती है। यदि एनडीए इस क्षेत्र में अपने पुराने वोट बैंक को फिर से जोड़ने में असफल रहा, तो मोकामा का समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।


जातिगत समीकरण और उनकी भूमिका

मोकामा में चुनावी परिणाम केवल राजनीतिक दलों की रणनीति पर निर्भर नहीं करते, बल्कि जातिगत समीकरण अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 


भूमिहार और सवर्ण वोटर्स: ये अब भी एनडीए के मजबूत स्तंभ हैं। अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद यह देखना होगा कि क्या वे ललन सिंह या किसी अन्य जदयू कैंडिडेट के प्रति वफादार रहेंगे या उनके वोट में कमी आएगी।


पिछड़ा वर्ग: यादव और धानुक वोटर्स पर राजद की पकड़ बढ़ती जा रही है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो एनडीए के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है।


दलित और मुस्लिम वोटर्स: ये वोटर अक्सर मुद्दों और स्थानीय विकास पर आधारित वोटिंग करते हैं। अनंत सिंह की गैरमौजूदगी में ये वोटर्स किस दिशा में झुकेंगे, यह बड़े पैमाने पर चुनावी परिणाम तय कर सकता है।


अनंत सिंह की गैरमौजूदगी का प्रभाव

अनंत सिंह की गिरफ्तारी का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि जदयू और एनडीए अब मोकामा में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए वैकल्पिक रणनीति अपनाना होगा। अनंत सिंह की लोकप्रियता और बाहुबली छवि ने कई बार चुनावों में विरोधियों को कमजोर किया। उनकी अनुपस्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह है कि एनडीए की चुनावी तैयारी कितनी कठिन होगी। ऐसे में यह राजद के लिए मौका बढ़ सकता है। ऐसे में स्थानीय नेताओं और समुदायों के बीच गठबंधन और वोट बैंक की राजनीति अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी।


छोटे सरकार का किला – खतरे में?

छोटे सरकार यानी अनंत सिंह और जदयू की नींव को मोकामा विधानसभा क्षेत्र में अब चुनौती मिल सकती है। अगर राजद और उनके गठबंधन इस अवसर का सही फायदा उठाते हैं और पिछड़ा वर्ग व सवर्ण वोटर्स के बीच मत विभाजन करवा देते हैं, तो एनडीए का किला कमजोर पड़ सकता है।


हालांकि, एनडीए के पास अब भी मजबूत सवर्ण वोट बैंक और स्थानीय नेताओं की मदद से मुकाबला करने की संभावना है। लेकिन अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने उनके रणनीतिक विकल्पों को सीमित कर दिया है। मोकामा का यह चुनाव केवल वोटर्स की संख्या और जातिगत समीकरण तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह अब राजनीतिक ताकत और रणनीति की परीक्षा बन गया है।


यदि एनडीए अपने पुराने वोट बैंक को मजबूत बनाए रखता है और नए गठबंधनों के जरिए पिछड़ा वर्ग वोटर्स को जोड़ लेता है, तो यह मोकामा में जीत हासिल कर सकता है। राजद पिछड़ा वर्ग और सवर्ण वोटर्स में सेंध लगाकर सत्ता में बढ़त हासिल कर सकता है। अगर दोनों पक्ष अपने वोट बैंक को समान रूप से मजबूत रखते हैं, तो चुनाव बेहद संकीर्ण अंतर से समाप्त हो सकता है।


मोकामा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति हमेशा ही बाहुबली प्रभाव और जातिगत समीकरण से प्रभावित रही है। अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने इस क्षेत्र में राजनीतिक उत्सुकता और अनिश्चितता बढ़ा दी है। एनडीए और जदयू की चुनौती अब यह है कि वे अपने पुराने वोट बैंक को मजबूत रखें और राजद की तेजी से बढ़ती पकड़ को रोकें।


मोकामा में चुनाव का परिणाम न केवल इस विधानसभा क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि पूरे बिहार की राजनीति पर भी असर डाल सकता है। यह चुनाव छोटे सरकार के लिए परीक्षण की तरह है – क्या वह अपने किले को बनाए रख पाएगी या मोकामा का समीकरण बदलकर सत्ता की दिशा ही बदल जाएगा।