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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 23 Nov 2025 01:18:27 PM IST
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Bihar Politics : बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा कर देने के बाद अब राज्य की सियासत का पूरा फोकस विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) के चुनाव पर आ गया है। एनडीए गठबंधन के भीतर यह पद किसे मिलेगा, इसे लेकर राजनीतिक हलचल तेज़ हो चुकी है। हालाँकि माहौल अभी सतह पर संयमित दिखाई देता है, लेकिन अंदरखाने दोनों प्रमुख दल—बीजेपी और जेडीयू—अपने दावेदारों के पक्ष में रणनीतिक सक्रियता बढ़ा चुके हैं।
नीतीश कुमार की नई सरकार बनने के बाद माना जा रहा है कि जल्द ही राज्य में विशेष विधानसभा सत्र बुलाया जाएगा। इस सत्र में सभी 243 निर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी। परंपरा के अनुसार राज्यपाल पहले ‘प्रोटेम स्पीकर’ नियुक्त करेंगे, जो नए सदस्यों को शपथ दिलाएंगे। इसके बाद ही सदन में औपचारिक रूप से स्पीकर का चुनाव कराया जाएगा। यह प्रक्रिया भले ही नियमित हो, लेकिन इस बार राजनीतिक समीकरणों के कारण विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी असाधारण रूप से महत्वपूर्ण हो गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका सिर्फ सदन की कार्यवाही संचालन तक सीमित नहीं होती, बल्कि गठबंधन सरकारों में यह पद शक्ति-संतुलन का केंद्र भी बन जाता है। ऐसे में यह तय करना कि विधानसभा अध्यक्ष किस दल के खाते में जाए, दोनों सहयोगी दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि एनडीए के भीतर इस पद को लेकर कूटनीतिक मंथन जारी है।
बीजेपी की ओर से सबसे ज़्यादा चर्चा गया टाउन के वरिष्ठ विधायक प्रेम कुमार के नाम की हो रही है। प्रेम कुमार नौवीं बार विधानसभा पहुंचे हैं और वे कई बार मंत्री पद भी संभाल चुके हैं। वरिष्ठता, अनुभव और सदन की प्रक्रियाओं की गहरी समझ के कारण बीजेपी उन्हें एक मजबूत दावेदार के रूप में आगे बढ़ाना चाहती है। पार्टी के भीतर इस बात की राय भी स्पष्ट है कि इतने अनुभवी विधायक को स्पीकर जैसे संवैधानिक पद पर अवसर मिलना चाहिए।
दूसरी ओर जेडीयू भी इस पद को हल्के में लेने के मूड में नहीं है। पार्टी की ओर से झाझा के विधायक दामोदर रावत का नाम प्रमुखता से उभर रहा है। रावत लंबे समय से संगठन और सरकार में सक्रिय रहे हैं। जेडीयू के नेता मानते हैं कि विधानसभा में स्थिरता और अनुभव के लिहाज से वे एक उपयुक्त विकल्प हो सकते हैं। जेडीयू के कुछ वरिष्ठ नेता यह तर्क भी दे रहे हैं कि चूंकि विधान परिषद में सभापति पद बीजेपी के पास है, इसलिए विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी जेडीयू को मिलना गठबंधन संतुलन के हिसाब से उचित होगा।
बीजेपी इस तर्क से पूरी तरह सहमत नहीं दिखती। उनकी ओर से इस बात पर ज़ोर दिया जा रहा है कि स्पीकर का पद वरिष्ठता के आधार पर दिया जाना चाहिए और प्रेम कुमार इसके सबसे योग्य दावेदार हैं। वहीं, जेडीयू यह आँकड़े सामने रख रही है कि पिछली विधानसभा में स्पीकर बीजेपी के नंद किशोर यादव थे और उपाध्यक्ष पद जेडीयू के पास था। इस बार भी दोनों दलों के बीच शक्ति-संतुलन को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिए जाने की उम्मीद है, लेकिन कौन–सी कुर्सी किसे मिलेगी, यह अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।
उधर, नीतीश कुमार का रुख इस मुद्दे पर बेहद निर्णायक माना जा रहा है। मुख्यमंत्री के संकेत और एनडीए की अगली बैठक के निर्णय से ही यह तय होगा कि स्पीकर की कुर्सी पर बीजेपी का दावा मजबूत होता है या जेडीयू को आगे बढ़ाया जाएगा। गठबंधन के भीतर फिलहाल बातचीत और समझौते की प्रक्रिया जारी है, लेकिन दावेदारी को लेकर दोनों दल अपनी-अपनी स्थिति मजबूत करने में लगे हैं।
राजनीति के जानकार बताते हैं कि गवर्नर और कैबिनेट के बीच होने वाली आगामी बैठकों के बाद ही इस बात पर स्पष्टता आएगी कि विधानसभा का विशेष सत्र कब बुलाया जाएगा। इसके साथ ही यह भी तय होगा कि स्पीकर पद के लिए किस नेता की उम्मीदवारी पर अंतिम मुहर लगाई जाएगी। चूंकि यह पद आगामी वर्षों में विधानसभा की कार्यवाही, विधायी निर्णयों और गठबंधन की स्थिरता पर गहरा प्रभाव डाल सकता है, इसलिए दोनों दल किसी प्रकार की जल्दबाजी में नहीं दिख रहे।
नवगठित विधानसभा में सत्ता समीकरण नए ढंग से उभर रहे हैं। ऐसे में अध्यक्ष की भूमिका न केवल कार्यवाही के संचालन तक सीमित रहेगी, बल्कि राजनीतिक घटनाक्रमों के प्रबंधन में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। इसलिए दोनों दल यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यह कुर्सी ऐसे नेता के पास जाए जिस पर पार्टी को भरोसा हो और जो गठबंधन के हितों का संतुलन बनाए रख सके।
फिलहाल इतना तय है कि बिहार की सियासत का अगला सप्ताह पूरी तरह विधानसभा अध्यक्ष की दावेदारी पर केंद्रित रहने वाला है। जैसे-जैसे सत्र बुलाने की तारीख नज़दीक आएगी, राजनीतिक गतिविधियाँ और तेज़ होंगी और यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए अंततः किस नाम पर सहमति बनाता है। स्पीकर पद की यह जंग आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकती है।