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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 23 Nov 2025 08:48:40 AM IST
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Bihar Politics : बिहार की राजनीति एक बार फिर से नए मोड़ पर पहुँच गई है। राज्य के सत्ता गलियारों में बदलाव का एक अहम संकेत तब देखने को मिला जब डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को कानून-व्यवस्था और पुलिस विभाग का पूरा अधिकार सौंपा गया। यह कदम प्रशासनिक ढांचे में सिर्फ बदलाव ही नहीं ला रहा, बल्कि सूबे की राजनीतिक बिसात में नई रणनीति और समीकरणों की ओर इशारा भी कर रहा है।
सम्राट चौधरी को दिए गए अधिकारों के तहत अब भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और बिहार पुलिस सेवा (बीपीएस) के अधिकारियों का ट्रांसफर और पोस्टिंग सीधे उनके निर्देशानुसार किया जाएगा। पुलिस महकमे का यह विशाल नियंत्रण किसी भी नेता को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाता है। कारण स्पष्ट है पुलिस तंत्र ही शासन और सरकार की ज़मीनी ताकत के तौर पर काम करता है। किसी भी राजनीतिक दल या सरकार के लिए पुलिस विभाग पर पकड़, जनता तक अपनी पहुँच और प्रभाव बनाए रखने का सबसे बड़ा औज़ार माना जाता है।
हालांकि, बिहार की राजनीति में सत्ता का असली केंद्र अभी भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथ में सुरक्षित है। सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) अब भी उनके नियंत्रण में है। यह विभाग आईएएस और बिहार प्रशासनिक सेवा (बीएएस) के अफसरों की नियुक्ति, तबादला, प्रमोशन और अनुशासनात्मक मामलों का संचालन करता है। उच्च प्रशासनिक स्तर के फैसले सीधे इस विभाग के माध्यम से ही लागू होते हैं, इसलिए इसका नियंत्रण मुख्यमंत्री के लिए हमेशा से सर्वोपरि रहा है।
परंपरागत रूप से सामान्य प्रशासन विभाग को बिहार की राजनीति का धड़कन माना जाता रहा है। चाहे पुलिस हो या प्रशासन, दोनों ही इसकी रीढ़ पर निर्भर करते हैं। यही कारण है कि यह विभाग कभी भी मुख्यमंत्री के बाहर नहीं गया। इसकी वजह साफ़ है—प्रशासन और पुलिस दोनों के माध्यम से सरकार का प्रभाव और नियंत्रण सुनिश्चित होता है।
लेकिन इस बार बिहार की राजनीतिक बिसात पर बड़ा बदलाव देखने को मिला। दो दशकों में पहली बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सूबे का सबसे शक्तिशाली माना जाने वाला गृह मंत्रालय अपने सहयोगी दल भाजपा के खाते में सौंप दिया। यह ऐतिहासिक निर्णय न केवल सम्राट चौधरी के राजनीतिक कद को बेतहाशा बढ़ाता है, बल्कि भाजपा की सरकार में हिस्सेदारी को भी पहले से अधिक मजबूत बनाता है।
नई कैबिनेट के शपथ ग्रहण के बाद विभागों का बंटवारा हुआ और इसी बंटवारे में यह ऐतिहासिक निर्णय दर्ज हुआ। अब प्रशासनिक सत्ता दो हिस्सों में बंट गई है—एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास उच्च प्रशासनिक नियंत्रण का केंद्र है, और दूसरी ओर सम्राट चौधरी के पास पुलिस महकमे की पूरी सियासी सल्तनत। इस नई ताक़त के बंटवारे ने बिहार की राजनीति के रंग और संभावित टकराव के नए आयाम खोल दिए हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह बदलाव राज्य की सत्ता समीकरण को पूरी तरह बदल सकता है। पुलिस विभाग पर नियंत्रण का मतलब सिर्फ ट्रांसफर और पोस्टिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जमीन स्तर पर सत्ता का प्रभाव बढ़ता है। पुलिस महकमा ही वह तंत्र है, जो अपराध, कानून और व्यवस्था, और राजनीतिक दबाव के मामले में तुरंत प्रभाव डाल सकता है। ऐसे में सम्राट चौधरी का राजनीतिक प्रभाव निश्चित रूप से बढ़ेगा और भाजपा की सरकार में स्थिति पहले से अधिक मजबूत होगी।
वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास उच्च प्रशासनिक ढांचा होने के कारण वे अभी भी राज्य की नीति और प्रशासनिक निर्णयों पर नियंत्रण बनाए रख सकते हैं। यह दोनों शक्तियाँ मिलकर सूबे में सत्ता का संतुलन बनाती हैं, लेकिन भविष्य में इसके टकराव के भी संकेत मिल रहे हैं। दो हिस्सों में बंटा प्रशासन और पुलिस महकमा यह तय करेगा कि सूबे की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है।
राजनीतिक विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह बदलाव केवल वर्तमान कैबिनेट तक ही सीमित नहीं रहेगा। यह अगले विधानसभा चुनाव, दलों के आंतरिक समीकरण और जन समर्थन के लिए भी बड़े मायने रखता है। बिहार की राजनीति में अब सत्ता की पैठ, प्रशासनिक नियंत्रण और पुलिस महकमे की भूमिका पहले से कहीं अधिक अहम हो गई है।
बिहार में यह ऐतिहासिक बदलाव राज्य की राजनीतिक दिशा और सत्ता समीकरण को पुनर्परिभाषित कर रहा है। सम्राट चौधरी का बढ़ता राजनीतिक कद और पुलिस महकमे पर उनका नियंत्रण भाजपा को सत्ता में अधिक प्रभावशाली बनाता है, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथ में उच्च प्रशासनिक ढांचा सूबे की सत्ता का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा। इस नए राजनीतिक समीकरण ने बिहार की सियासत में नए रंग, नए संघर्ष और नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं।