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Bihar Election 2025 : नीतीश और मोदी का विकास या तेजस्वी और राहुल का MY समीकरण, बिहार चुनाव के दूसरे चरण में अबतक का क्या रहा है इतिहास

Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण का प्रचार थम गया है। अब 20 जिलों की 122 सीटों पर 3.7 करोड़ से ज्यादा मतदाता तय करेंगे कि सत्ता में एनडीए की वापसी होगी या महागठबंधन की जीत।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 10 Nov 2025 09:09:51 AM IST

Bihar Election 2025 : नीतीश और मोदी का विकास या तेजस्वी और राहुल का MY समीकरण, बिहार चुनाव के दूसरे चरण में अबतक का क्या रहा है इतिहास

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Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण का प्रचार रविवार शाम थम गया है। अब मंगलवार को 20 जिलों की 122 सीटों पर 3.70 करोड़ से ज्यादा मतदाता 1302 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे। यह चरण सबसे अहम माना जा रहा है, क्योंकि इसी के साथ बिहार की नई सरकार का रास्ता तय होगा। 14 नवंबर को नतीजे आएंगे और यह साफ हो जाएगा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला एनडीए सत्ता में वापसी करेगा या तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन फिर से काबिज होगा।


इस चुनाव में एनडीए अपने ‘सुशासन’ और विकास के एजेंडे पर जनता के बीच है, तो महागठबंधन बेरोजगारी, सामाजिक न्याय और जातीय संतुलन के मुद्दों पर सियासी जमीन मजबूत करने में जुटा है। आइए जानते हैं कि दूसरे चरण में दोनों गठबंधनों की ताकत, कमजोरी, अवसर और खतरे (SWOT Analysis) क्या हैं —


🔹 एनडीए की STRENGTH (ताकत)

1. नीतीश कुमार का नेतृत्व:

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में एनडीए की सबसे बड़ी ताकत हैं। वे दो दशकों से बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं और ‘सुशासन बाबू’ की छवि अब भी एक वर्ग के मतदाताओं में प्रभावी है। कानून-व्यवस्था, महिला सशक्तिकरण और बुनियादी ढांचे में उनके काम को लेकर एनडीए जनता के बीच भरोसे की अपील कर रहा है।


2. संगठित कार्यकर्ता नेटवर्क:

बीजेपी और जेडीयू दोनों के पास मज़बूत संगठनात्मक ढांचा है। आरएसएस, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भाजपा के बूथ स्तर के कार्यकर्ता मतदाताओं से सीधे संवाद बनाए हुए हैं। यही एनडीए का सबसे मज़बूत चुनावी हथियार है।


3. कल्याणकारी योजनाओं की पकड़:

एनडीए सरकार ने चुनाव से पहले कई लोक-लुभावन योजनाओं का ऐलान किया—महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता, वृद्धजन पेंशन, छात्रवृत्ति योजनाएं और सड़क-बिजली-पानी जैसी आधारभूत परियोजनाएं। पीएम मोदी की छवि और केंद्र की परियोजनाएं भी मतदाताओं को प्रभावित कर सकती हैं।


🔸 एनडीए की WEAKNESS (कमजोरी)

1. सत्ता-विरोधी लहर (Anti-Incumbency):

लगातार 20 वर्षों से सत्ता में रहने के कारण नीतीश सरकार के प्रति एक वर्ग में असंतोष है। नौकरियों, भ्रष्टाचार और शराबबंदी नीति जैसे मुद्दों पर जनता का एक हिस्सा नाराज़ दिख रहा है।


2. बीजेपी की सवर्ण छवि:

बिहार की सामाजिक संरचना में ओबीसी, दलित और अति पिछड़े वर्ग का अनुपात करीब 85% है। ऐसे में बीजेपी की ‘सवर्ण पार्टी’ छवि उसके लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है, खासकर उन इलाकों में जहां मंडल राजनीति का असर गहरा है।


🔹 एनडीए के लिए OPPORTUNITIES (अवसर)

1. विकास का एजेंडा:

पीएम नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले बिहार को कई विकास परियोजनाओं की सौगात दी है—हाईवे, पुल, मेडिकल कॉलेज और रोजगार से जुड़ी योजनाएं। इनसे एनडीए को फायदा हो सकता है।


2. मतों का एकीकरण:

एनडीए अपने पारंपरिक वोट बैंक—उच्च जाति, अति पिछड़े और महिलाओं के बीच मजबूत एकजुटता बनाने में जुटा है। नीतीश कुमार के महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों का असर महिला मतदाताओं में दिख सकता है।


🔸 एनडीए के लिए THREATS (खतरे)

1. इंडिया ब्लॉक का एकजुट अभियान:

आरजेडी और कांग्रेस के नेतृत्व वाला इंडिया ब्लॉक बेरोजगारी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे स्थानीय मुद्दों को लेकर आक्रामक तरीके से मैदान में है। यह एनडीए की स्थिति को कमजोर कर सकता है।


2. प्रशांत किशोर फैक्टर:

जनसुराज अभियान के तहत चुनावी मैदान में उतरे प्रशांत किशोर युवा वोटरों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। उनका एजेंडा ‘रोजगार और पलायन रोकने’ पर केंद्रित है, जो एनडीए के लिए नए सिरे से चुनौती बन सकता है।


🟢 महागठबंधन की STRENGTH (ताकत)

1. मजबूत एम-वाई समीकरण:

महागठबंधन की रीढ़ उसका पारंपरिक एम-वाई (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक है। बिहार की आबादी में इन दोनों समुदायों का संयुक्त वोट शेयर लगभग 32% है। यह समीकरण आरजेडी को स्थायी आधार प्रदान करता है।


2. युवाओं में तेजस्वी की लोकप्रियता:

तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी और प्रवासी मजदूरों की समस्या को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया है। उनकी सादगी और युवाओं से जुड़ाव का अंदाज महागठबंधन के लिए बड़ी ताकत बन गया है।


🔴 महागठबंधन की WEAKNESS (कमजोरी)

1. आंतरिक कलह और समन्वय की कमी:

सीट बंटवारे और उम्मीदवार चयन के दौरान आरजेडी और कांग्रेस के बीच कई मतभेद उभरकर आए। इससे गठबंधन के अंदर समन्वय की कमी दिखी।


2. कांग्रेस की कमजोर लीडरशिप:

बिहार में कांग्रेस के पास कोई प्रभावशाली राज्यस्तरीय चेहरा नहीं है। उसकी राजनीतिक पहचान अब आरजेडी के सहयोगी दल तक सीमित हो गई है।


3. संगठनात्मक ढांचे की कमजोरी:

महागठबंधन के भीतर बूथ स्तर पर संगठनात्मक मजबूती की कमी है, जिससे एनडीए के संगठित नेटवर्क के सामने उनकी पकड़ ढीली पड़ती है।


🟠 महागठबंधन के लिए OPPORTUNITIES (अवसर)

1. सामाजिक न्याय और जाति सर्वेक्षण:

आरजेडी जाति आधारित जनगणना को प्रमुख चुनावी मुद्दा बना चुकी है। यह कदम पिछड़े और वंचित तबकों के बीच बड़ी राजनीतिक सहानुभूति पैदा कर सकता है।


2. युवा जुड़ाव और रोजगार का मुद्दा:

कांग्रेस और आरजेडी दोनों बेरोजगारी और परीक्षा प्रणाली में सुधार को लेकर युवाओं के बीच सीधा संवाद कर रहे हैं। यह नई पीढ़ी के मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है।


🔻 महागठबंधन के लिए THREATS (खतरे)

1. एनडीए का मजबूत तंत्र:

एनडीए का बूथ प्रबंधन, संसाधन और प्रचार नेटवर्क महागठबंधन से कहीं अधिक प्रभावशाली है। ग्रामीण इलाकों में यह फर्क साफ देखा जा सकता है।


2. AIMIM का असर:

सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम मुस्लिम वोटों में सेंध लगा सकती है। इस क्षेत्र में दूसरे चरण की कई अहम सीटें हैं, जिससे महागठबंधन का गणित बिगड़ सकता है।


3. प्रशांत किशोर का उभार:

प्रशांत किशोर का अभियान खासकर युवा और शिक्षित मतदाताओं के बीच प्रभाव छोड़ रहा है। इससे महागठबंधन के वोट शेयर में कमी आ सकती है।


बहरहाल, बिहार चुनाव 2025 का दूसरा चरण राजनीतिक रूप से निर्णायक साबित होगा। एनडीए अपने विकास और स्थिरता के एजेंडे पर भरोसा कर रहा है, जबकि महागठबंधन रोजगार, सामाजिक न्याय और युवा शक्ति को केंद्र में रखकर जनता को लुभाने की कोशिश में है। दोनों गठबंधनों की ताकत और कमजोरी स्पष्ट है, लेकिन असली फैसला 3.7 करोड़ मतदाता करेंगे — जो तय करेंगे कि बिहार में ‘सुशासन’ की सरकार कायम रहेगी या बदलाव की हवा चलेगी।