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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 15 Nov 2025 10:22:55 AM IST
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 - फ़ोटो GOOGLE
Muslim MLAs Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, जबकि महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव के नतीजों ने राज्य के मुस्लिम विधायकों के प्रतिनिधित्व पर भी महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत दिए हैं। 1990 के बाद पहली बार बिहार विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या केवल 10 पर सिमट गई है। यह लगातार आठ चुनावों में सबसे कम प्रतिनिधित्व माना जा रहा है।
राज्य में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी कुल आबादी का 17.7% है (राज्य जाति सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार), लेकिन इस बार न तो महागठबंधन और न ही एनडीए ने 2020 की तुलना में अधिक मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। जेडीयू ने चार मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिनमें से केवल मोहम्मद जमा खान चैंपुर (कैमूर) से जीतने में सफल रहे। चैंपुर मुस्लिम बहुल सीट नहीं है, इसलिए बीजेपी ने हिंदू वोटरों को साधने के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया।
एलजेपी (रामविलास) का दांव किशनगंज में असफल रहा। मोहम्मद कलीमुद्दीन को टिकट दिया गया, लेकिन वे तीसरे स्थान पर रहे। AIMIM के मोहम्मद तौसीफ आलम ने यहां 28,700 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही।
आरजेडी के दो चेहरे असिफ अहमद और ओसामा साहब जीतने में सफल रहे। असिफ अहमद बिस्फी से जीतकर आए, जबकि बाहुबली शाहाबुद्दीन के बेटे ओसामा साहब रघुनाथपुर से विजयी हुए। यह शाहाबुद्दीन परिवार की 21 साल बाद पहली चुनावी जीत है। आरजेडी ने यादव, मुस्लिम, ईबीसी, दलित और सवर्ण वोटों के समीकरण को ध्यान में रखते हुए ओसामा को टिकट दिया था।
कांग्रेस ने सीमांचल में दो सीटें बरकरार रखीं, किशनगंज से मोहम्मद कमरुल होदा और अररिया से अब्दुर रहमान विजयी रहे। हालांकि कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान को जेडीयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी ने 18,368 वोटों से हराया।
इतिहास पर नजर डालें तो, वर्ष 2010 में बिहार विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या 19 थी, जो कुल सदस्यों का 7.81% था। 2015 में यह संख्या 24 तक पहुंच गई थी (9.87%)। 2020 में यह घटकर 19 रह गई, और अब 2025 में केवल 10 मुस्लिम विधायक ही चुने गए हैं। इस बार जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और एलजेपी समेत अन्य दलों के मुस्लिम उम्मीदवारों का प्रदर्शन बहुत कम रहा। यह बिहार विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व का 1990 के बाद का सबसे कम स्तर है।