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Bihar election 2025 : पहले चरण में जबरदस्त वोटिंग, मोकामा बनी सियासत का अखाड़ा; किसके सिर पर सजेगा ताज

Bihar election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 121 सीटों पर जबरदस्त वोटिंग हुई। मोकामा में 64% मतदान ने सियासी तापमान बढ़ाया। अनंत सिंह, वीणा देवी और पीयूष प्रियदर्शी की साख दांव पर है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 07 Nov 2025 09:54:56 AM IST

Bihar election 2025 : पहले चरण में जबरदस्त वोटिंग, मोकामा बनी सियासत का अखाड़ा; किसके सिर पर सजेगा ताज

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Bihar election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर सोमवार को हुए मतदान ने प्रदेश की राजनीति में नई सरगर्मी पैदा कर दी है। सुबह से ही मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की लंबी कतारें देखने को मिलीं। कई जिलों में दोपहर बाद तक मतदाताओं का उत्साह कम नहीं हुआ। राज्य के कई इलाकों में औसतन 60 प्रतिशत से अधिक मतदान दर्ज किया गया, वहीं मोकामा सीट पर 64 प्रतिशत वोटिंग के साथ चुनावी माहौल चरम पर पहुंच गया।


बूथों पर उमड़ती भीड़ यह संकेत दे रही थी कि इस बार बिहार का मतदाता बदलाव की मनःस्थिति में है। मतदान का रुझान बता रहा है कि जनता न केवल सक्रिय है बल्कि चुप्पी तोड़ते हुए अपनी आवाज़ बुलंद कर रही है। पहले चरण में जिन 121 सीटों पर मतदान हुआ, उनमें कई हाई-प्रोफाइल और चर्चित सीटें शामिल रहीं — खासकर वे जहां बाहुबली उम्मीदवार मैदान में हैं।


बाहुबलियों की सीटों पर टकराव चरम पर

पहले चरण की सबसे चर्चित सीटों में मोकामा, बाढ़, लखीसराय, और बरबीघा शामिल हैं। मोकामा में बाहुबली नेता अनंत सिंह, बाढ़ में रीतलाल यादव, और अन्य जगहों पर सूरजभान सिंह, हुलास पांडेय और ओसामा जैसे नाम सुर्खियों में रहे। इन सभी उम्मीदवारों की साख और प्रभाव को देखते हुए मतदान से पहले ही यह स्पष्ट था कि मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा।


मोकामा सीट इस बार बिहार की राजनीति का केंद्र बन चुकी है। अनंत सिंह, जिनकी गिनती प्रदेश के सबसे प्रभावशाली बाहुबलियों में होती है, इस बार जेल में रहते हुए भी चर्चा में हैं। दुलारचंद यादव की हत्या के बाद से मोकामा का माहौल लगातार गरम है। आरोपों, गिरफ्तारी और न्यायिक प्रक्रिया के बीच अनंत सिंह के समर्थक और विरोधी, दोनों गुट पूरी ताक़त से मैदान में डटे हुए हैं।


मोकामा में सियासी समीकरण बदले

मोकामा के तारतर और आसपास के गांवों में यादव और धानुक जाति का गहरा प्रभाव है। दुलारचंद यादव की हत्या के बाद इन समुदायों में नाराज़गी बढ़ी है, जिसका असर इस बार के मतदान में साफ दिखाई दिया। माना जा रहा है कि यह नाराज़गी अनंत सिंह के लिए चुनौती बन सकती है। वहीं, विरोधी खेमे के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी और वीणा देवी ने भी बाहुबली की पकड़ को तोड़ने के लिए आक्रामक प्रचार किया।


राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मोकामा में इस बार की वोटिंग जातिगत समीकरणों से ऊपर उठकर हो रही है। महिलाओं और युवाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दिखी है। मतदान केंद्रों पर सुबह से ही महिलाओं की लंबी कतारें यह इशारा कर रही थीं कि लोग किसी दबाव या भय में नहीं, बल्कि बदलाव की उम्मीद में वोट डाल रहे हैं।


बदलाव की दस्तक या पुराने किले की मजबूती?

पहले चरण की जबरदस्त वोटिंग के बाद अब राजनीतिक गलियारों में सबसे बड़ा सवाल यही है कि बिहार की जनता क्या पुराने सत्ता समीकरणों को कायम रखेगी या नई इबारत लिखेगी। उच्च मतदान प्रतिशत को लेकर सभी दल अपने-अपने हिसाब से आंकलन कर रहे हैं। एनडीए इसे अपनी नीतियों पर जनता की मुहर बता रहा है, तो महागठबंधन इसे बदलाव का संकेत मान रहा है।


मोकामा जैसी सीटों पर बाहुबलियों का भविष्य भी इसी जनादेश पर टिका है। अनंत सिंह के लिए यह चुनाव सिर्फ सीट बचाने का नहीं, बल्कि अपनी साख कायम रखने का सवाल है। वहीं वीणा देवी और पीयूष प्रियदर्शी जैसे नए चेहरे बाहुबली राजनीति के क़िले को चुनौती देने में जुटे हैं।


मतदान में जनता की भूमिका अहम

इस बार की वोटिंग ने यह साबित कर दिया कि बिहार की जनता अब किसी दबाव या प्रभाव में नहीं है। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी केंद्रों तक मतदाता खुलकर बाहर निकले। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सक्रियता बिहार की राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत हो सकती है — जहां जातीय या आपराधिक प्रभाव से ऊपर उठकर जनता विकास और सुशासन को प्राथमिकता दे रही है।


पहले चरण की मतदान प्रक्रिया शांतिपूर्ण रही, हालांकि कुछ जगहों पर तकनीकी दिक्कतों के चलते मतदान थोड़ी देर के लिए बाधित हुआ। चुनाव आयोग के मुताबिक, कुल मतदान प्रतिशत 60 से 63 के बीच रहने की संभावना है।


14 नवंबर को खुलेगा फैसला

अब सभी की निगाहें 14 नवंबर पर टिकी हैं, जब इन सीटों की ईवीएम खुलेंगी। उस दिन यह तय होगा कि मोकामा का ताज किसे मिलेगा — बाहुबली अनंत सिंह अपनी साख बचा पाएंगे या जनता इस बार नई दिशा चुनेगी।


पहले चरण की वोटिंग ने यह तो साफ कर दिया है कि बिहार की राजनीति में अब चुप्पी नहीं, बल्कि जनमत की ताक़त गूंज रही है। चाहे परिणाम जो भी हो, इस बार के चुनाव ने जनता को सत्ता के समीकरणों में सबसे बड़ी भूमिका दे दी है।