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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 05 Nov 2025 09:41:59 AM IST
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Anant Singh Arrest : बिहार की सियासत में मोकामा के बाहुबली नेता और पूर्व विधायक अनंत सिंह की भूमिका हमेशा से चर्चा का केंद्र रही है। उनके खिलाफ कार्रवाई, कानूनी लड़ाइयां और आरोपों की लंबी सूची के बीच एक बार फिर उनकी गिरफ्तारी ने चुनावी माहौल में ताज़ा हलचल पैदा कर दी है। यह गिरफ्तारी सिर्फ कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक गणित और सामाजिक समीकरणों को बदलने वाला कदम माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद जो संदेश जनता के बीच जा रहा है, वही चुनावी परिणामों में बड़ा फैक्टर बनने वाला है। इससे पहले जब दुलारचंद यादव की हत्या और पियूष प्रियदर्शी के साथ झड़प हुई थी तो यह मुद्दा तूल पकड़ा था, तब धानुक समाज में यह नाराजगी तेजी से फैल रही थी कि सरकार ईबीसी वर्ग के लोगों को दबा रही है और भूमिहार समुदाय के अनंत सिंह को संरक्षण मिल रहा है। यह धारणा लगातार विपक्ष के लिए एक बड़ा हथियार बन रही थी।
ध्यान देने वाली बात यह भी है मोकामा में हुई हत्या के बाद कुर्मी-कोइरी और धानुक समुदाय समेत ईबीसी में यह संदेश तेजी से फैल रहा था कि सरकार उनके प्रतिनिधियों को निशाने पर ले रही है। वहीं दूसरी ओर अनंत सिंह को राजनीतिक और जातीय आधार पर सुरक्षा मिल रही है। यदि यह नाराजगी बढ़ती, तो एनडीए की स्थिति खासतौर पर मध्य बिहार की उन सीटों पर कमजोर पड़ सकती थी जहां ईबीसी वोट निर्णायक भूमिका में है।
लेकिन अब परिस्थितियाँ बदलती दिख रही हैं। अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद यह संदेश दिया जा रहा है कि सरकार कानून के मामले में किसी के साथ भी पक्षपात नहीं कर रही है। चाहे वह भूमिहार समाज से आने वाला बड़ा नेता ही क्यों न हो, अपराध पर कार्रवाई हर हाल में होगी। यह संदेश एनडीए के लिए काफी मायने रखता है, क्योंकि बिहार की सियासत में ईबीसी वर्ग—खासकर धानुक और कोइरी-कुर्मी समाज—नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक माना जाता है।
विशेषकर धानुक समाज का वोट कई सीटों पर किंगमेकर की भूमिका निभाता है। पिछले कुछ दिनों में बनी राजनीतिक धारणा यह दिखा रही थी कि एनडीए से इन समुदायों का मोहभंग होने लगा है। ऐसे में अनंत सिंह की गिरफ्तारी नाराजगी कम करने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है।
किन विधानसभा क्षेत्रों पर असर?
अनंत सिंह की राजनीति का प्रभाव सिर्फ मोकामा तक सीमित नहीं रहा है। उनका नेटवर्क और सामाजिक पकड़ बाढ़, मुंगेर से लेकर पटना और लखीसराय तक देखने को मिलती है। यही वजह है कि राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इस कार्रवाई का असर सीधे-सीधे इन सीटों पर दिखेगा—
मोकामा
बाढ़
मुंगेर
तारापुर
जमालपुर
शेखपुरा
बरबीघा
लखीसराय
सूर्यगढ़ा
इन क्षेत्रों में धानुक मतदाता संख्या के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं। कई सीटों पर 10 से 18 प्रतिशत तक ईबीसी वोटरों में धानुकों का दबदबा है, जो किसी भी दल की जीत-हार तय कर सकते हैं।
NDA के लिए राहत?
राजनीति के जानकारों का मानना है कि यदि सरकार की कार्रवाई पर धानुक समाज को निष्पक्षता का विश्वास मिला, तो उनकी नाराजगी काफी हद तक कम हो सकती है। इससे एनडीए बड़े पैमाने पर वोटों के छिटकने से बच सकता है।
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा को देखें तो 2005 से ही उन्होंने ईबीसी वर्ग को अपने साथ जोड़कर सत्ता हासिल की है। अगर यह समर्थन कमजोर होता, तो एनडीए मुश्किल में पड़ सकता था। इसलिए यह गिरफ्तारी सिर्फ कानूनी मामला न होकर भाजपा-जेडीयू गठबंधन की रणनीतिक जीत भी मानी जा रही है।
विपक्ष की चाल पर ब्रेक?
विपक्ष लगातार यह नैरेटिव बना रहा था कि एनडीए सरकार विशेष जातियों के साथ पक्षपात कर रही है। अगर यह धारणा और गहरी होती, तो उसका सीधा लाभ महागठबंधन को मिलता। लेकिन अब विपक्ष के इस तेवर को कमजोर होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
हालांकि, समीकरण इतने सरल भी नहीं हैं। अनंत सिंह का एक अलग राजनीतिक प्रभाव है। मोकामा और बाढ़ में व्यक्तिगत समर्थन के चलते उनका एक वोट बैंक मौजूद है। ऐसे में गिरफ्तारी से उनके समर्थकों में नाराजगी भी बढ़ सकती है। इसका कुछ नुकसान एनडीए को झेलना पड़ सकता है।
आगे का राजनीतिक माहौल
विशेषज्ञ कहते हैं कि आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार के दौरान धानुक समाज की प्रतिक्रिया साफ करेगी कि यह गिरफ्तारी एनडीए के लिए कितनी फायदेमंद रही। अगर ईबीसी वर्ग इसे न्याय और निष्पक्षता की जीत के रूप में देखता है → एनडीए मजबूत, यदि इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई माना गया → स्थानीय स्तर पर नुकसान संभव फिलहाल तो माहौल यह संकेत दे रहा है कि सरकार की सख्त कार्यवाही की छवि स्थापित होने लगी है, और यही छवि NDA की चुनावी रणनीति का मुख्य आधार भी बन सकती है।