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Bihar Crime News: फिस से फिसड्डी साबित हो गई बिहार पुलिस, लापरवाही के कारण 10 साल से जेल में बंद हार्डकोर नक्सली को मिली बेल

Bihar Crime News: बिहार पुलिस की लापरवाही के कारण 10 साल से जेल में बंद नक्सली कमांडर सुधीर भगत को अभियोजन स्वीकृति लंबित रहने पर पटना हाईकोर्ट से जमानत मिल गई, जिससे पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए हैं।

1st Bihar Published by: FIRST BIHAR Updated Mon, 01 Dec 2025 02:29:49 PM IST

Bihar Crime News

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Bihar Crime News: बिहार की मुजफ्फरपुर पुलिस की गंभीर लापरवाही एक बार फिर सामने आई है। नक्सली वारदातों से जुड़े मामलों में वर्षों तक अभियोजन स्वीकृति लंबित रहने का सीधा लाभ अब गिरफ्तार नक्सलियों को मिलने लगा है। इसी लापरवाही के कारण मुजफ्फरपुर जेल में पिछले 10 वर्षों से बंद नक्सली कमांडर सुधीर भगत को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है। सुधीर के खिलाफ आज तक अभियोजन स्वीकृति नहीं ली गई थी, जिससे पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठ खड़े हुए हैं।


पटना हाईकोर्ट के जस्टिस चंद्रशेखर झा ने सुधीर भगत की जमानत मंजूर करते हुए आदेश में कहा कि ट्रायल कोर्ट से मिली ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार मामला अब भी आरोप गठन की प्रक्रिया में लंबित है। अभियोजन स्वीकृति नहीं होने के कारण आरोप तय नहीं हो सका है, जबकि आरोपी 10 साल से अधिक समय से जेल में बंद है। अदालत ने इसे आरोपी के मौलिक अधिकारों का हनन माना और तत्काल उसे जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया।


सकरा कांड में अन्य सात नक्सलियों—रेणु भारती उर्फ़ भारती, रामू कुमार, रोहित सहनी उर्फ़ सकलू सहनी, रेखा भारती उर्फ़ जानकी, रामप्रवेश बैठा उर्फ़ सतीश जी, रामप्रवेश मिश्रा और राजीव रंजन—के खिलाफ सेशन ट्रायल चल रहा है। इन सभी मामलों में गृह विभाग से अभियोजन स्वीकृति ली गई है, लेकिन सुधीर भगत के मामले में स्वीकृति लेने की प्रक्रिया पुलिस पिछले एक दशक में भी पूरी नहीं कर सकी।


मामला 11 साल पुराना है। सकरा के मिश्रौलिया गांव में 7 अगस्त की रात करीब 12:30 बजे हथियारबंद 30–40 नक्सलियों ने NH-28 निर्माण कार्य कर रही कंपनी के बेस कैंप पर हमला बोला था। नक्सलियों ने कर्मचारियों को बंधक बनाकर वाहनों पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी थी। इस घटना में एक दर्जन से अधिक गाड़ियां और कई उपकरण जलकर नष्ट हो गए थे। माओवादी संगठन ने कंपनी से लेवी की मांग की थी और पैसे नहीं देने पर हमला किया गया था।


अभियोजन स्वीकृति में गंभीर देरी न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है, बल्कि इससे कई नक्सली आरोपियों को कानूनी राहत मिलने की आशंका भी बढ़ गई है।