1st Bihar Published by: SANT SAROJ Updated Sat, 27 Dec 2025 11:43:04 AM IST
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Bihar News: सुपौल जिले के त्रिवेणीगंज अनुमंडलीय अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्थाओं की पोल खुद सत्ताधारी दल की विधायक सोनम रानी ने खोल दी है। शुक्रवार देर रात उन्होंने अस्पताल का औचक निरीक्षण किया, जहां की बदहाल स्थिति देखकर वे स्वयं हैरान रह गईं।
निरीक्षण के दौरान यह सामने आया कि ऑपरेशन के बाद भर्ती मरीजों को न तो कंबल उपलब्ध कराया गया था और न ही साफ बेडशीट। इससे भी गंभीर बात यह थी कि वार्ड में बिछी अधिकांश चादरों पर खून के दाग लगे हुए थे, जिनकी सफाई पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था। विधायक ने इसे मरीजों की सेहत और सम्मान के साथ खिलवाड़ बताते हुए कहा कि यह अस्पताल नहीं, बल्कि कुव्यवस्था का केंद्र बन चुका है। खून से सनी चादरों पर मरीजों को लिटाना अमानवीय है।
विधायक सोनम रानी ने वार्ड, प्रसव कक्ष, आपातकालीन सेवा, शिशु वार्ड समेत मरीजों को दी जा रही सुविधाओं का बारीकी से जायजा लिया। इस दौरान साफ-सफाई, मरीजों की देखभाल और मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी पाई गई। उन्होंने अस्पताल प्रबंधन, चिकित्सकों और प्रभारी की गंभीर लापरवाही पर सवाल उठाते हुए मौके पर मौजूद अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई।
हैरानी की बात यह रही कि विधायक के निरीक्षण से कुछ ही घंटे पहले त्रिवेणीगंज के एसडीओ ने भी अस्पताल का निरीक्षण किया था, इसके बावजूद न तो सफाई व्यवस्था सुधरी और न ही मरीजों को बुनियादी सुविधाएं मिलीं। इससे स्पष्ट होता है कि निरीक्षण का अस्पताल प्रशासन पर कोई असर नहीं पड़ता और व्यवस्थापक पूरी तरह बेपरवाह बने हुए हैं।
निरीक्षण के दौरान विधायक के साथ उनके पति सह जिला बीस सूत्री सदस्य सिकंदर सरदार भी मौजूद रहे। उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि अस्पताल में पर्याप्त संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद मरीजों को उनका लाभ नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पताल प्रबंधन, चिकित्सक और प्रभारी जानबूझकर लापरवाही बरत रहे हैं। साथ ही चेतावनी दी कि यदि जल्द व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो वे खुद सुधार कराने को मजबूर होंगे।
अस्पताल प्रबंधन और प्रभारी ने निरीक्षण के दौरान पाई गई कमियों को स्वीकार करते हुए भविष्य में सुधार का आश्वासन दिया। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि त्रिवेणीगंज जैसे बड़े अनुमंडलीय अस्पताल में मात्र छह चिकित्सकों की तैनाती है और यहां इलाज से ज्यादा मरीजों को रेफर किया जाता है। शिशु वार्ड और शिशु रोग विशेषज्ञ के कक्ष में अक्सर ताला लटका रहता है, जिससे मरीजों और उनके परिजनों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके चलते लोग निजी क्लिनिक और नर्सिंग होम के चक्कर में आर्थिक व मानसिक शोषण का शिकार हो रहे हैं।