1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 15 Dec 2025 12:32:42 PM IST
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MGNREGA replacement bill : केंद्र सरकार ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) को समाप्त कर उसकी जगह एक नया कानून लाने के लिए सरकार ने लोकसभा सदस्यों के बीच एक विधेयक की प्रति प्रसारित की है। प्रस्तावित कानून का नाम ‘विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025’ रखा गया है। इस विधेयक को संसद में पेश कर मनरेगा अधिनियम, 2005 को निरस्त करने की योजना है।
नए विधेयक का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण भारत के लिए एक ऐसा विकास ढांचा तैयार करना है, जो ‘विकसित भारत 2047’ के राष्ट्रीय दृष्टिकोण के अनुरूप हो। इसके तहत हर ग्रामीण परिवार को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 125 दिनों के मजदूरी रोजगार की संवैधानिक गारंटी देने का लक्ष्य रखा गया है। यह गारंटी उन ग्रामीण परिवारों को मिलेगी, जिनके वयस्क सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक श्रम करने के लिए तैयार होंगे। मौजूदा मनरेगा कानून में यह गारंटी 100 दिनों तक सीमित थी।
विधेयक में कहा गया है कि इसका मकसद “एक समृद्ध और लचीले ग्रामीण भारत के लिए सशक्तिकरण, विकास, अभिसरण और संतृप्ति को बढ़ावा देना” है। सरकार का मानना है कि यह नया कानून ग्रामीण रोजगार, आजीविका सुरक्षा और विकास योजनाओं के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करेगा और रोजगार गारंटी को व्यापक विकास लक्ष्यों से जोड़ेगा।
वर्तमान में लागू महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) को 2005 में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। यह एक अधिकार-आधारित कानून है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण नागरिकों को “काम करने के अधिकार” की कानूनी गारंटी देना है। इसके तहत किसी भी ग्रामीण वयस्क को काम मांगने के 15 दिनों के भीतर रोजगार उपलब्ध कराना अनिवार्य है, और ऐसा न होने पर बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है।
मनरेगा को दुनिया के सबसे बड़े वर्क गारंटी कार्यक्रमों में गिना जाता है। वर्ष 2022-23 तक इसके अंतर्गत लगभग 15.4 करोड़ सक्रिय श्रमिक पंजीकृत थे। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण गरीबी के संरचनात्मक कारणों को दूर करना और आय सुरक्षा प्रदान करना रहा है। कानून में यह भी प्रावधान है कि कुल लाभार्थियों में कम से कम एक-तिहाई महिलाएं हों, जिससे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिले।
मनरेगा की एक और महत्वपूर्ण विशेषता इसका विकेंद्रीकृत ढांचा रहा है। कार्यों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को केंद्रीय भूमिका दी गई है। ग्राम सभाओं को यह अधिकार है कि वे अपने क्षेत्र में किए जाने वाले कार्यों की सिफारिश करें, और कम से कम 50 प्रतिशत कार्यों का क्रियान्वयन ग्राम पंचायतों के माध्यम से किया जाना अनिवार्य है।
अब प्रस्तावित नए विधेयक को लेकर यह माना जा रहा है कि यह ग्रामीण रोजगार नीति में एक बड़ा नीतिगत बदलाव साबित हो सकता है। जहां एक ओर रोजगार के दिनों की संख्या बढ़ाकर 125 करने का प्रस्ताव है, वहीं दूसरी ओर इसे व्यापक ग्रामीण विकास और आजीविका मिशन से जोड़ने की कोशिश की जा रही है।
हालांकि, विधेयक संसद में पेश होने और उस पर बहस के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि मनरेगा की मौजूदा गारंटियों और संरचना में क्या-क्या बदलाव किए जाएंगे और उनका ग्रामीण जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा।फिलहाल, लोकसभा सदस्यों के बीच विधेयक के वितरण के साथ ही ग्रामीण रोजगार को लेकर देश की राजनीति और नीति विमर्श में एक नई बहस शुरू हो गई है।