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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 07 May 2025 05:37:03 PM IST
बिहार जमीन सर्वे - फ़ोटो GOOGLE
Bihar Land Survey: बिहार सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए ‘बदलैन’ जमीन को कानूनी मान्यता दे दी है। अब यदि दो किसानों (रैयतों) ने आपसी सहमति से एक-दूसरे की जमीन बदली हो और वर्तमान में दोनों बिना किसी विवाद के अपनी-अपनी बदली हुई जमीन पर शांतिपूर्वक काबिज हों, तो उस जमीन का सर्वे करते हुए वास्तविक दखलकार के नाम पर भू-अधिकार खाता खोला जाएगा। इससे संबंधित आदेश बिहार विशेष सर्वेक्षण एवं बंदोबस्त (संशोधन) नियमावली 2025 के अंतर्गत अधिसूचित किया गया है।
'बदलैन' उस स्थिति को कहा जाता है जब दो या अधिक रैयत आपसी सहमति से अपनी जमीन आपस में बिना रजिस्ट्री या कानूनी दस्तावेज के बदल लेते हैं। पहले यह केवल मौखिक सहमति पर आधारित होता था, जिससे न तो जमीन की खरीद-बिक्री संभव थी, न ही ऋण प्राप्त करने की सुविधा मिलती थी।
कानूनी मान्यता: यदि दोनों पक्ष सर्वेक्षण के समय लिखित सहमति प्रस्तुत करें, तो बदलैन जमीन को वैध मानते हुए उस पर खाता खोला जाएगा।
भू-अधिकार अभिलेख में नाम दर्ज: वास्तविक दखलकार का नाम भू-अधिकार दस्तावेज़ों में शामिल किया जाएगा।
ऋण की सुविधा: अब ऐसी जमीन पर किसान बैंक से कृषि ऋण ले सकेंगे।
खरीद-बिक्री की स्वतंत्रता: वैध कब्जा और अभिलेख में नाम होने से अब जमीन को कानूनी रूप से बेचा या रजिस्टर्ड कराया जा सकेगा।
विवादों का स्थायी समाधान: वर्षों से लंबित कई जमीन विवाद इस नियम के तहत सुलझाए जा सकेंगे।
सर्वेक्षण के समय उपस्थित रहना आवश्यक: दोनों रैयतों को सर्वेक्षण टीम के सामने बदलैन की सहमति लिखित रूप में देनी होगी। दखल का सत्यापन: टीम यह सत्यापित करेगी कि वास्तव में दोनों पक्ष बदली गई जमीन पर काबिज हैं और कोई विवाद नहीं है। खाता खोलना: इसके बाद संबंधित दखलकार के नाम से नया खाता खोला जाएगा और उसे भूमि का वैध स्वामी माना जाएगा।
मौनी बहन, अंचल अधिकारी (सीओ), ने बताया कि इस नई व्यवस्था से स्थानीय प्रशासन को भूमि विवादों के निराकरण में बड़ी सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा, "बदलैन को वैधता मिलने से रैयतों को न केवल उनके अधिकार मिलेंगे, बल्कि सरकार के सर्वेक्षण कार्यों में भी पारदर्शिता आएगी।" मोहनपुर के रैयत उदय शंकर नटवर ने बताया कि पहले लोग रजिस्ट्री ऑफिस के चक्कर और शुल्क से बचने के लिए मौखिक बदलैन करते थे, लेकिन अब वैध मान्यता मिलने से जमीन का सही उपयोग हो सकेगा। इससे किसानों को न सिर्फ सामाजिक सुरक्षा मिलेगी, बल्कि आर्थिक रूप से भी वे सशक्त हो सकेंगे।