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Krishna Janmashtami 2025: बिहार में हर वर्ष जन्माष्टमी की प्रतीक्षा करते हैं यहां के मुस्लिम, कन्हैया की बांसुरी पर ही निर्भर है इनका परिवार

Krishna Janmashtami 2025: बिहार के इस गांव में 80 मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से हर साल जन्माष्टमी की प्रतीक्षा करती है। ऐसा कहा जा सकता है कि श्री कृष्ण की बांसुरी से ही उनकी रोजी रोटी चलती है और वे आर्थिक रूप से लाभ पाते हैं..

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 16 Aug 2025 01:36:16 PM IST

Krishna Janmashtami 2025

जन्माष्टमी 2025 - फ़ोटो Meta

Krishna Janmashtami 2025: 16 अगस्त को पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को धूमधाम से मनाया जा रहा है। ऐसे में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सुमेरा पंचायत के मुर्गियाचक गांव में यह त्योहार हर साल और भी विशेष उत्साह लेकर आता है। क्योंकि इस गांव के करीब 80 मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से बांसुरी बनाने के खानदानी पेशे से ही जुड़े हैं। कुढ़नी प्रखंड के बड़ा सुमेरा में बसा यह गांव बांसुरी कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। 40 साल से यह काम कर रहे हैं स्थानीय कारीगर मोहम्मद आलम बताते हैं कि उनके पिता ने एक बाहरी कारीगर से यह कला सीखी थी। हर वर्ष जन्माष्टमी के दौरान बांसुरी की डिमांड बढ़ने से इन परिवारों में खुशी की लहर रहती है।


इन कारीगरों के लिए जन्माष्टमी केवल धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि आजीविका का स्रोत भी है। पहले मेले और बाजारों में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक बांसुरी खरीदते थे, जिससे अच्छी कमाई होती थी। मोहम्मद आलम और अजी मोहमद जैसे कारीगर बताते हैं कि अब प्लास्टिक के खिलौनों और आधुनिक मनोरंजन ने बांसुरी की मांग को काफी कम कर दिया है। फिर भी ये परिवार अपने खानदानी पेशे को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इस बार जन्माष्टमी के लिए मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों से बांसुरी की अच्छी मांग आई है, जिसे पूरा करने के लिए यहाँ के कारीगर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। अंदाजन एक परिवार रोजाना 100-200 बांसुरी बनाता है, जिनकी कीमत 10 रुपये से 300 रुपये तक के बीच होती है।


यहाँ बांसुरी निर्माण की प्रक्रिया में नरकट (रीड) का उपयोग होता है, जिसे जंगल से लाकर उसकी बारीक छीलाई की जाती है और फिर कारीगरी के बाद उसे बांसुरी का आकार दिया जाता है। इस गांव के लोग नरकट की खेती भी करते हैं, जिससे उनकी आत्मनिर्भरता बढ़ती है। कारीगरों का कहना है कि जन्माष्टमी और दशहरा जैसे मेलों में बांसुरी की बिक्री सबसे अधिक होती है, लेकिन यह भी सच है कि इसमें मुनाफा अब पहले जैसा नहीं रहा। नई पीढ़ी भी इस पेशे से दूरी बना रही है क्योंकि यह आर्थिक रूप से ज्यादा लाभकारी नहीं रह गया है। फिर भी कारीगरों का जुनून बरकरार है क्योंकि यह सिर्फ पेशा ही नहीं बल्कि उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का हिस्सा भी है।


जन्माष्टमी पर बांसुरी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान कृष्ण के प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। मान्यता है कि बांसुरी अर्पित करने से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों के दुख को दूर करते हैं। मुर्गियाचक के कारीगरों की बांसुरी न केवल स्थानीय बाजारों बल्कि बिहार और पड़ोसी राज्यों तक भी पहुंचती है। यह गांव धार्मिक सद्भाव का प्रतीक है, जहां मुस्लिम परिवार कृष्ण भक्ति से जुड़े इस पेशे को गर्व से निभाते हैं।