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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 10 Jul 2025 06:09:10 PM IST
आवासीय प्रमाण पत्र वायरल - फ़ोटो SOCIAL MEDIA
MUNGER: बिहार के मुंगेर ज़िले से एक अजीबो-गरीब मामला सामने आया है जिसने ना केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी मज़ाक का विषय बना हुआ है। दरअसल मुंगेर सदर प्रखंड कार्यालय ने एक ऐसा प्रमाण पत्र जारी कर दिया है जिसकी चर्चा अब हो रही है। कार्यालय के द्वारा एक ट्रैक्टर के नाम से एक लड़की का आवासीय प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया है। इस प्रमाण पत्र में ट्रैक्टर का फोटो, नाम, माता-पिता और गांव का नाम तक दर्ज है। मामला सामने आते ही यह सोशल मीडिया पर यह प्रमाण पत्र वायरल हो गया और सरकारी विभागों में लापरवाही का प्रतीक बन गया।
जानिये निवास प्रमाण पत्र में क्या दर्ज है? नाम: सोनालिका कुमारी, पिता का नाम: बेगूसराय चौधरी, माता का नाम: बलिया देवी, गांव: ट्रैक्टरपुर दियारा, पोस्ट ऑफिस: कुत्तापुर, पिन कोड: 811202, थाना: मुफ्फसिल, प्रखंड: सदर मुंगेर, जिला: मुंगेर, इतना ही नहीं, आवेदन में उद्देश्य "खेतीबाड़ी" बताया गया है और प्रमाण पत्र पर आवेदिका की फोटो की जगह एक ट्रैक्टर की तस्वीर लगा दी गयी है।
जैसे ही मामला सामने आया, मुंगेर सदर SDO कुमार अभिषेक ने तत्काल इस पर संज्ञान लेते हुए प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया और जांच के आदेश जारी कर दिए। SDO ने स्पष्ट किया कि यह प्रमाणपत्र यदि शरारत के तहत बनाया गया है तो इसमें शामिल कर्मियों की जवाबदेही तय की जाएगी। बताया जाता है कि 6 जुलाई को ऑनलाइन आवेदन किया गया था। अगले ही दिन राजस्व अधिकारी ने बिना सत्यापन के प्रमाण पत्र जारी कर दिया। यह दर्शाता है कि सरकारी विभागों में डेटा एंट्री वेरिफिकेशन की भारी कमी है।
आवासीय प्रमाण पत्र में यह भी लिखा गया है कि "यह दस्तावेज़ असंपादित है", जिससे संभावना जताई जा रही है कि यह फर्जी भी हो सकता है या फिर सरकारी सिस्टम की कमजोरी की पोल खोलने के लिए किसी ने जानबूझ कर किया गया मज़ाक भी हो सकता है। क्या बिना सत्यापन कोई भी व्यक्ति किसी नाम या वस्तु से आवासीय प्रमाण पत्र बनवा सकता है? क्या सरकारी अधिकारी जांच के बिना दस्तावेज़ जारी कर रहे हैं? क्या इस मामले में जिम्मेदार कर्मचारियों पर कार्रवाई होगी? यह मामला सरकारी सिस्टम में डिजिटल निगरानी की कमी और मानवीय जांच प्रक्रिया की अनदेखी को उजागर करती है। जब तक ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक सरकारी कागजातों की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में बनी रहेगी।