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Bihar News: बंगाल से आते हैं पुजारी और मूर्तिकार, बिहार में यहां होती है पारंपरिक दुर्गा पूजा; जानिए

Bihar News: मधेपुरा स्थित बांग्ला दुर्गा मंदिर में 1901 से हो रही पारंपरिक दुर्गा पूजा आज भी आस्था का केंद्र बनी हुई है। बंगाली रीति-रिवाजों, संधि पूजा और खिचड़ी भोग की विशेषता के साथ यह मंदिर हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 24 Sep 2025 03:32:20 PM IST

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Bihar News: बिहार के मधेपुरा जिला मुख्यालय के मुख्य बाजार स्थित बांग्ला दुर्गा मंदिर एक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है, जिसकी स्थापना वर्ष 1901 में की गई थी। यह मंदिर शुरुआत में बांस और खरपतवार से बनी एक झोपड़ीनुमा संरचना था, जिसमें स्थानीय बंगाली समाज द्वारा मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती थी। समय के साथ मंदिर का स्वरूप बदला और लोगों के सामूहिक प्रयास से इसे पहले खपड़े का और बाद में वर्ष 2012 में घोष परिवार एवं स्थानीय नागरिकों के सहयोग से भव्य स्वरूप प्रदान किया गया।


मंदिर के इतिहास में कई पीढ़ियों का योगदान रहा है। श्यामापदो घोष और सतीश चंद्र घोष के बाद, चौथी पीढ़ी के परिजनों ने स्थानीय लोगों के सहयोग से एक मजबूत कमेटी का गठन किया। वर्तमान में इस कमेटी में संरक्षक उद्दालक घोष, अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद, सचिव इंद्रनील घोष व त्रिदीप गांगुली (बुबुन दा), संयोजक प्रमोद अग्रवाल और कोषाध्यक्ष राय महेश्वर कुमार जैसे सदस्य शामिल हैं। यह कमेटी आज भी पूजा का सफल संचालन कर रही है। प्रारंभ से ही इस मंदिर में पूजा-पाठ बंगाली समाज द्वारा विधिपूर्वक किया जाता रहा है, लेकिन अब स्थानीय बिहारी समुदाय भी इसमें पूरे श्रद्धा और भाव से सम्मिलित होता है, जिससे यह स्थान सांस्कृतिक एकता और समरसता का प्रतीक बन गया है।


मंदिर की सबसे प्रमुख पूजा ‘संधि पूजा’ के रूप में होती है, जो अष्टमी तिथि को आयोजित की जाती है। इस दिन मां दुर्गा को खिचड़ी का विशेष भोग अर्पित किया जाता है। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और मान्यता है कि इस दिन मां के दरबार में की गई सच्ची याचना अवश्य पूरी होती है। दूर-दराज़ से श्रद्धालु इस विशेष भोग का सेवन करने और मनोकामनाएं लेकर मंदिर पहुंचते हैं।


षष्ठी पूजा के दिन बांग्ला परंपरा के अनुसार कलश स्थापना की जाती है। पूजा की संपूर्ण प्रक्रिया बंगाल के वर्धमान एवं कोलकाता से आए पुरोहितों द्वारा संपन्न कराई जाती है। पूजा के प्रत्येक दिन मां की प्रतिमा में रूप परिवर्तन होता है, जो मूर्तिकार के अद्भुत कलात्मकता का प्रमाण है। मूर्ति निर्माण का कार्य वर्षों से मशहूर मूर्तिकार कार्तिक दास और उनकी पत्नी सेमाली दास करते आ रहे हैं। पूरे नवरात्रि में आरती और अनुष्ठानों में हजारों श्रद्धालु नियमित रूप से भाग लेते हैं। पंडित कल्याण बनर्जी और निखिल भट्टाचार्य, जो बंगाल से विशेष रूप से बुलाए जाते हैं, पूजा को विधिपूर्वक संपन्न कराते हैं।


मंदिर परिसर में प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। सुरक्षा व्यवस्था के लिए स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ पूजा समिति के सदस्य भी सक्रिय रहते हैं। पिछले वर्ष पूजा पर लगभग 5 लाख रुपये का खर्च हुआ था, और इस बार खर्च में और वृद्धि की संभावना है। भव्य पंडाल निर्माण के लिए कारीगरों को कोलकाता व अन्य स्थानों से बुलाया जाता है। बैठक कर जल्द ही इसकी रूपरेखा तय की जाएगी। साथ ही, मंदिर की लाइटिंग व्यवस्था भी आकर्षण का विशेष केंद्र होती है, जो दर्शकों को दूर-दराज से खींच लाती है।


सचिव इंद्रनील घोष ने बताया कि इस मंदिर से लोगों की अटूट श्रद्धा जुड़ी है। मान्यता है कि मां के दरबार में सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यही कारण है कि यह मंदिर सिर्फ पूजा स्थल नहीं, बल्कि लोगों की आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन चुका है।

मधेपुरा से अमन आनंद की रिपोर्ट