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11-Jan-2021 09:26 PM
PATNA : चुनाव के दौरान हजारों-लाखों लोगों की ताबड़तोड़ सभायें करने वाली सरकार को ये लग रहा है कि अगर विधानसभा का लंबा सत्र बुलाया को कोरोना फैल जायेगा. सत्ता में बैठी पार्टियां अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं की ताबड़तोड़ बैठक कर रही है लेकिन विधानमंडल के सत्र से डर लग रहा है. लिहाजा सरकार एक महीने तक चलने वाले विधानमंडल के बजट सत्र को तीन दिनों में खत्म करना चाह रही है. हालांकि विपक्षी पार्टियों के मोर्चा खोलने के बाद सरकार की योजना खटाई में पडती दिख रही है. इस बीच सवाल ये उठने लगा है कि क्या नीतीश कुमार तेजस्वी का सामना करने में डरने लगे हैं.
सरकार का हैरान करने वाला फैसला
दरअसल शनिवार को विधानसभा अध्यक्ष ने प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को मिलने के लिए बुलाया. स्पीकर ने तेजस्वी यादव को बताया कि कोरोना वैक्सीनेशन को देखते हुए ये तय किया जा रहा है कि विधानमंडल का बजट सत्र सिर्फ दो-तीन दिनों का हो. विधानसभा अध्यक्ष की तेजस्वी यादव से मीटिंग के बाद सरकार के इरादे सामने आये. दरअसल बिहार में विधानमंडल का बजट सत्र ही एकमात्र मौका होता है जब सदन एक से डेढ़ महीने तक चलता है. विधानसभा और विधान परिषद का मॉनसून और शीतकालीन सत्र भी होता है लेकिन ये सिर्फ तीन-चार दिनों का होता है जिसमें सरकार अपने जरूरी काम निपटा लेती है.
सरकार के फैसले से उठे सवाल
हर साल एक-डेढ़ महीने तक चलने वाले बजट सत्र को इस दफे सिर्फ दो-तीन दिनों में निपटा देने की सरकार के इरादों ने कई सवालों को खड़ा कर दिया है. सरकार कोरोना का कारण बता रही है. लेकिन जब कोरोना का प्रकोप चरम पर था तो बिहार में चुनाव निपटा लिये गये. सैकड़ों चुनावी रैली और सभायें हो गयीं. चुनाव के बाद से बीजेपी और जेडीयू अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ ताबड़तोड़ बैठक कर रही हैं. लेकिन विधानसभा और परिषद के सत्र में परेशानी क्यों नजर आने लगी.
गौर करने वाली बात ये भी है कि बिहार विधानमंडल का नया भवन बनकर तैयार है. नये भवन में सेंट्रल हॉल बनाया गया है जहां पर्याप्त सोशल डिस्टेंसिंग के साथ विधायकों को बिठाने का समुचित इंतजाम किया जा सकता है. इसी सरकार के गठन के बाद नवंबर में वहीं विधानसभा की बैठक हुई. वहीं कम सदस्यों वाले विधान परिषद की बैठक विधानसभा में हुई. लिहाजा सारे विधान पार्षद पर्याप्त दूरी पर बैठे थे.
दिलचस्प बात ये भी है कि कोरोना के इसी दौर में केंद्र सरकार ने संसद का नियमित सत्र बुलाने का फैसला ले लिया गया है. दिल्ली में बिहार की तुलना में कोरोना का कहर ज्यादा है लेकिन केंद्र सरकार इसके बावजूद संसद का लंबा सत्र 29 जनवरी से बुला रही है. रही बात कोरोना के वैक्सीनेशन की तो वैक्सीनेशन की सारी निगरानी केंद्र सरकार को करनी है. इसके बावजूद केंद्र सरकार संसद का सत्र बुला रही है. ऐसे में दो-तीन का विधानसभा सत्र बुलाकर औपचारिकतायें निभा लेने का बिहार सरकार का इरादा सवालों को खड़ा कर रहा है.
क्या तेजस्वी का सामना नहीं करना चाहते नीतीश
बिहार में इस दफे नयी सरकार के गठन के बाद विधानसभा में हुए हंगामे को लोगों ने देखा होगा. तेजस्वी यादव के तीखे आरोपों के बाद नीतीश कुमार ने जिस तरीके से आपा खोया था वैसा लोगों ने पहले कभी नहीं देखा था. तो क्या नीतीश फिर उसी तरह की परिस्थिति का सामना करने से बचना चाहते हैं.
वैसे ये चर्चा आम है कि बिहार सरकार में शामिल पार्टियां जेडीयू और बीजेपी के बीच आंतरिक घमासान चरम पर है. हालत ये है कि मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पा रहा है और नीतीश कुमार इसके लिए बीजेपी को जिम्मेवार करार दे रहे हैं. एक-एक मंत्री के पास 5-6 विभाग हैं. विधानमंडल का सत्र लंबा होगा तो मंत्रियों को हर रोज विधायकों के सवालों का जवाब देना होगा. सरकार जिस तरह से काम कर रही है उसमें विधायकों के सवालों का जवाब देना मुश्किल होगा. लिहाजा सबसे बढिया रास्ता .यही नजर आया कि सत्र को ही छोटा कर दिया जाये.
विपक्ष की घेराबंदी से सरकार फंसी
लेकिन सत्र को छोटा कर निकल जाने के सरकार के इरादे खटाई में पड़ते दिख रहे हैं. दरअसल विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने रविवार को महागठबंधन के तमाम दलों के साथ बैठक कर सरकार की योजना को नकार दिया. विपक्ष ने एलान कर दिया है कि अगर सरकार ने पारंपरिक तौर पर सदन नहीं चलाया तो सारी विपक्षी पार्टियां कार्यवाही का बहिष्कार कर देंगी. इसके अलावा मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम का आवास घेर लिया जायेगा. जाहिर है इससे सरकार की भारी फजीहत हो सकती है. विपक्ष के क़ड़े तेवर के बाद अब सदन को दो-तीन दिन चलाकर काम निकाल लेने की सरकारी योजना में अडंगा लग सकता है.