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20-Jun-2022 07:20 PM
PATNA: RSS यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में छपे एक लेख ने बिहार में सियासी पारे को फिर से गर्म कर दिया है। ऑर्गेनाइजर में छपे इस लेख में आंकड़ों के सहारे ये बताया गया है कि नीतीश कुमार के शासनकाल में बिहार देश में सबसे फिसड्डी राज्य बन गया है। इस लेख में दावा में ये भी कहा गया है कि नीतीश कुमार का शासन और नीति समाज से कट गया है। ताबडतोड़ बढ़ते अपराध से जंगलराज की वापसी होती दिख रही है।
क्या लिखा है ऑर्गेनाइजर ने?
RSS के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में ये लेख सामाजिक शोध करने वाले दो विशेषज्ञों ने लिखा है। लेख में कहा गया है कि पहले नीतीश कुमार को एक अच्छा सामाजिक गठबंधन बनाने का श्रेय दिया जाता था। लेकिन आज की स्थिति ये है कि नीतीश सरकार की नीतियों और शासन दोनों से सामाज का अलगाव हो गया है। जेडीयू में फिलहाल राजनीतिक अहंकार' और राजनीतिक अज्ञानता सभी नेताओं के फैसले पर भारी पड़ रही है, ये नेतृत्व और पार्टी दोनों के लिए घातक साबित होने वाली है। जदयू अपने चुनावी भविष्य को खोने की ओर बढ़ रहा है। नीतीश कुमार के दौर के बाद जेडीयू का भविष्य अंधकारमय है। लेख में कहा गया है कि जदयू ने कभी भी भविष्य के लिए तैयारी करने या युवा नेतृत्व तैयार करने का लक्ष्य रखा ही नहीं। जेडीयू अपनी पार्टी के सदस्यों के प्रति भी सही रवैया नहीं अपना रहा है।
सुशासन का दावा पूरी तरह फेल
ऑर्गेनाइजर में छपे लेख के मुताबिक नीतीश कुमार के सुशासन की छत्रछाया में पिछले 17 सालों में शिक्षा और सरकारी नौकरी देने में कोई सुधार नहीं दिखा है. सरकार की संरचनात्मक और नीतिगत सोंच में कमी ने बिहार के लोगों के लिए राज्य के लोगों को काफी नुकसान पहुंचाया है. नीतीश कुमार की सरकार स्कूली शिक्षा और प्राथमिक शिक्षकों के मुद्दे को हल करने में विफल रही है. शिक्षा के क्षेत्र में नीतीश की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी साफ दिख रही है. लेख में ये बताया गया है कि कैसे बिहार शिक्षा के क्षेत्र में फिसड्डी हो गया है. नवंबर 2021 में जारी ASER की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के स्कूल में जो छात्र पढ़ते हैं उनमें से लगभग 74 प्रतिशत छात्रों को अलग से ट्यूशन लेना पड़ता है. ये देश में सबसे ज्यादा है. जाहिर है सरकारी स्कूलों में शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है. बिहार की हालत ऐसी है कि 6 से 14 साल के बच्चों में काफी तादाद में बच्चों का स्कूल में एडमिशन नहीं हो पाता. बिहार के बच्चों को डिजिटल शिक्षा देने की स्थिति बेहद खराब है। बिहार में सिर्फ 10 प्रतिशत छात्रों को ही डिजिटल शिक्षा नहीं मिल सकता है।
नीतीश राज में शिक्षा औऱ नौकरी में धोखाधड़ी, जालसाजी, पेपर लीक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के लगातार मामले आये हैं जिससे ये साफ पता चलता है कि बिहार अपने अतीत से बाहर निकलने में सफल नहीं हो पाया है. केंद्र सरकार की प्रदर्शन ग्रेडिंग इंडेक्स के मुताबिक बिहार शिक्षा का बुनियादी ढांचा तैयार करने में देश में सबसे पीछे है. उच्च शिक्षा में नामांकन की स्थिति ये है कि बिहार देश के राज्यों में 33वें स्थान पर है. इसी तरह, सरकारी स्कूलों में लड़कियों का शौचालय उपलब्ध कराने में देश भर में बिहार की स्थिति सबसे बदतर है. देश के 35 राज्य इस मामले में बिहार से बेहतर हैं. बिहार में अभी भी कम से कम 10 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय उपलब्ध नहीं है. बिहार में बेरोजगारी की स्थिति भी बेहद खराब है. आंकड़ों के मुताबिक बेरोजगारी दर 17.23 प्रतिशत है लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति बेहद खराब है।
स्वास्थ्य व्यवस्था बेहद खराब
ऑर्गेनाइजर में छपे लेख के मुताबिक नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार को 19 बड़े राज्यों में स्वास्थ्य सुविधायों को लेकर 18वां स्थान मिला है. लोगों को सरकारी डॉक्टर की सुविधा उपलब्ध कराने के मामले में भी बिहार सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है. शिशु मृत्यु दर के मामले में बिहार का स्थान नीचे से चौथा है. लोकनीति संस्था ने बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले सर्वेक्षण किया था. इसमें सिर्फ एक-तिहाई लोगों का मानना था कि सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार हुआ है. ज्यादातर लोगों का मानना है कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था और बिगड़ गयी है. इसी सर्वे में लगभग 42% लोगों ने ये कहा कि बिहार में सरकारी स्कूलों की स्थिति में काफी गिरावट आई है।
इस लेख में ये कहा गया है कि विकास को लेकर देश भर के आंकड़ों को देखें तो बिहार सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले पांच राज्यों में से एक है. केंद्र सरकार ने देश के विकास के लिए 16 लक्ष्य तय कर रखे हैं. इनमें से शिक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु, पर्यावरण, आर्थिक विकास, लिंग जैसे लक्ष्यों में आश्चर्यजनक तरीके से बिहार किसी में भी दिखाई नहीं दे रहा है. इसी तरह मानव विकास में भी बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब है. मानव विकास के लिए तीन मानक हैं स्वस्थ जीवन, साक्षरता और जीवन स्तर. इन सभी मानकों में बिहार की स्थिति बेहद निराशाजनक है. राज्य की कम से कम 33.7 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है औऱ देश के 29 राज्य बिहार से बेहतर स्थिति में हैं।
बिहार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब, जंगलराज की वापसी
ऑर्गेनाइजर में छपे लेख के मुताबिक बिहार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है. बिहार में बड़े औऱ छोटे उद्योग लगाने में ठहराव की स्थिति है. विदेशी निवेश के मामले में बिहार कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, राजस्थान, यूपी या बंगाल जैसे राज्यों से काफी पीछे है. हालांकि इसी लेख में बिहार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन की तारीफ करते हुए लिखा गया है कि वे एक अलग नजरिये से काम कर रहे हैं और इथेनॉल उद्योग के क्षेत्र में एक अलग इतिहास लिख रहे हैं. ऑर्गेनाइजर के लेख के मुताबिक किसी राज्य में पूंजी निवेश सीधे तौर पर कानून-व्यवस्था से जुड़ा रहता है।
बिहार में दिनदहाड़े हत्या और लूट की घटनाओं में भारी इजाफे से ये साफ है कि वह जंगल राज के दौर में वापस जा रहा है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक 2020 में बिहार में हत्या और दहेज से मामलों में भारी इजाफा हुआ. बिहार में जमीन और संपत्ति से संबंधित विवादों की सबसे अधिक संख्या है. देश भर में पुलिस और सरकारी अधिकारियों पर हमले, एटीएम धोखाधड़ी, हत्या के प्रयास, एस.सी. के खिलाफ अत्याचार और दंगा के मामले में बिहार दूसरे नंबर का राज्य है. जबकि महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर्ज घटनाओं में बिहार देश भर में नौवें स्थान पर था. बिहार में नीतीश के शासन में आने से पहले 2004 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की संख्या 8,091 थी. 2019 में ये बढ़कर 18,587 हो गया. देश भर में होने वाले कुल अपराध में 5.2 प्रतिशत आपराधिक घटनायें बिहार में होती हैं।