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08-Apr-2022 06:58 PM
PATNA: क्या नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग ने बिहार में विधान परिषद के 24 सीटों के लिए हुए चुनाव में उनके आधार वोट माने जाने वाले लव-कुश का पत्ता साफ कर दिया है? सोशल मीडिया पर जेडीयू समर्थकों ने तूफान मचा रखा है. इस चुनाव में ना किसी कुर्मी उम्मीदवार की जीत हुई और ना ही किसी कुशवाहा की. जेडीयू समर्थक ही सवाल पूछ रहे हैं कि इसके लिए जिम्मेवार कौन है.
दरअसल इस बार का विधान परिषद चुनाव का जातीय समीकरण दिलचस्प है. फेसबुक पर जेडीयू के एक नेता का एक पोस्ट का मजमून देखिये
राजपूत-06
भूमिहार-06
ब्राह्मण-01
बनिया-06
यादव-05
लव+कुश-?
ये सिर्फ एक पोस्ट है. फेसबुक से लेकर सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफार्म जेडीयू औऱ नीतीश समर्थक कई लोग ऐसे सवाल उठा रहे हैं. वे पूछ रहे हैं कि इसके लिए जिम्मेवार कौन है. आखिरकार क्यों बिहार विधान परिषद के चुनाव में कुर्मी या कुशवाहा जाति के नेताओं को एक भी सीट नहीं मिली. इस पर तरह के कमेंट भी हो रहे हैं जो बेहद दिलचस्प है. जेडीयू के एक और नेता ने लिखा-अगर इसी तरह से खोते रहे तो सब समाप्त हो जायेगा.
पटना-नालंदा सीट को लेकर ज्यादा दर्द
जेडीयू के आधार वोट माने जानी वाली एक जाति के कई नेताओं को सबसे ज्यादा दर्द पटना औऱ नालंदा सीट को लेकर है. दरअसल पटना में जेडीयू ने बाल्मिकी सिंह को मैदान में उतारा था जो कुर्मी जाति से आते हैं. बाल्मिकी सिंह एक बार पटना से एमएलसी रह चुके हैं. इस चुनाव में तीसरे नंबर पर चले गये. वह भी तब हुआ जब विधान परिषद चुनाव के दौरान खुद नीतीश कुमार पटना जिले के बड़े हिस्से में घूम रहे थे. हालांकि उनका कहना था कि वे अपने पुराने संसदीय क्षेत्र बाढ के लोगों से मिल रहे हैं लेकिन नीतीश कुमार के भ्रमण को विधान परिषद चुनाव से ही जोड़ा गया. इसी चुनाव के दौरान उन्होंने बाढ को जिला बनाने का भी एलान कर दिया, इसे भी विधान परिषद चुनाव से जोड़ा गया. फिर भी जेडीयू उम्मीदवार की जबरदस्त हार हुई.
दर्द नालंदा सीट को लेकर भी है. नीतीश खुद नालंदा से आते हैं. बिहार में कुर्मी जाति के लोगों की सबसे बड़ी आबादी इसी जिले में है. लेकिन नीतीश कुमार की पार्टी ने भी वहां से यादव उम्मीदवार को मैदान में उतारा. जेडीयू के एक समर्थक ने फेसबुक पर लिखा-नालंदा की जीत राजू यादव और राजद की जीत है. जेडीयू वाला बेमतलब के फुदक रहा है. नीतीश के कई समर्थकों ने ही सवाल उठाया कि आखिरकार नालंदा से भी किसी कुर्मी को क्यों नहीं मैदान में उतारा गया.
सोशल मीडिया पर ऐसी तमाम चर्चायें हो रही हैं. सवाल पूछा जा रहा है कि क्या नीतीश कुमार के सीएम बनने का यही फल मिला. जेडीयू के एक समर्थक ने लिखा- “क्या फायदा जब कुर्मी का काम ही नहीं हो सीएम के रहने के बावजूद. उससे बढिया तो पहले ही था जब कुर्मी समाज के 30 विधायक हुआ करते थे और वे हमारे हक के लिए सड़कों पर नजर आते थे.”
हालांकि सोशल मीडिया पर कुर्मी जाति के कई ऐसे लोग भी हैं तो राजा को देख रहे हैं. वे लिख भी रहे हैं कि जब राजा ही हमारा है तो फिर दूसरे की फिक्र क्यों करें.