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12-Apr-2024 07:07 AM
By First Bihar
PATNA : सनातन धर्म में चैती छठ का विशेष महत्व है। साल में दो बार छठ व्रत मनाया जाता है। पहला चैत्र मास में और दूसरा कार्तिक में। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के को छठ मनाने की परंपरा है।
इस व्रत का आरंभ नहाय-खाय के साथ होता है और लगातार 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखने के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं। ऐसे में आइए जानते हैं चैती छठ का महत्व और तिथियां...
पंचांग के अनुसार, चैती छठ का पर्व 12 अप्रैल से 15 अप्रैल के बीच मनाया जा रहा। जिसकी शुरुआत शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ हो गई है। उसके बाद 13 अप्रैल (शनिवार) को खरना और फिर 14 अप्रैल (रविवार) को संध्या अर्घ्य और इसके अगले दिन 15 (सोमवार) को प्रातः: अर्घ्य और पारण के साथ यह महापर्व सम्पन्न हो जाएगा।
चैत्र मास की चतुर्थी तिथि से चैती छठ का आरंभ हो जाता है। जिसे नहाय-खाय कहते हैं। इस दिन महिलाएं स्नान आदि करने के बाद भगवान सूर्य की पूजा करती हैं। इस दिन शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है।
चैती छठ के दूसरा दिन को खरना कहते हैं। इस दिन से व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत का आरंभ करते हैं। इसके साथ ही भगवान सूर्य को भोग लगाने के लिए महाप्रसाद तैयार किया जाता है। इस पर्व के तीसरे दिन अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। अर्घ्य देने के लिए जल और दूध दोनों का इस्तेमाल प्रयोग किया जाता हैं।
वहीं, छठ पर्व के अंतिम दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके साथ ही छठ मैया से लोग अपने संतान की रक्षा और घर-परिवार की सुख-शांति की कामना की जाती है। छत व्रती के पारण के साथ यह कठिन व्रत संपन्न हो जाता है।