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13-Aug-2024 08:36 PM
By First Bihar
PATNA: पटना के जगदेव पथ इलाके में सांप के काटने से 8 साल की बच्ची गुनगुन की मौत हो गयी। सांप काटने के बाद परिजन उसे पीएमसीएच ले गये थे लेकिन इमरजेंसी वार्ड से यह कहकर लौटा दिया गया कि यहां बच्चों का इलाज नहीं होता है इसे बच्चा वार्ड ले जाए। परिजन बच्ची को लेकर पीएमसीएच के टाटा वार्ड गये जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
परिजनों का आरोप है कि इलाज में देरी होने कारण बच्ची की पीएमसीएच में मौत हो गयी। यदि समय पर इलाज शुरू किया जाता तो शायद बच्ची जिंदा रहती। बच्ची की मौत के बाद परिजन उसे लेकर श्मशान घाट ले गये जहां केले के पेड़ से नाव बना शव को गंगा नदी में प्रवाहित किया गया। घटना के संबंध में मृत बच्ची के मौसा ने बताया कि बच्ची गया की रहने वाली है। उसकी मां पटना में अपना आंख दिखाने आई थी। अपनी 8 साल की बच्ची को लेकर वो उनके घर भिखना पहाड़ी आई थी।
पटना के जगदेव पथ में मां-बेटी जमीन पर सोई हुई थी। तभी रात के करीब 12.30 बजे उठी और कहने लगी की गर्दन के पास दर्द कर रहा है। जिसके बाद बच्ची की तबीयत बिगड़ गयी। बच्ची छटपटाने लगी मुंह से आवाज निकलना बंद हो गया। वो बार-बार उल्टी कर रही थी। बच्ची ने इशारा करके बताया कि उसे सांप ने काट लिया है। जिसके बाद बच्ची को पीएमसीएच के इमरजेंसी वार्ड ले जाया गया लेकिन वहां उसे ना तो एडमिट किया गया और ना ही इलाज शुरू किया गया।
इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर और कर्मियों ने कहा कि इसे बच्चा वार्ड ले जाइए। यहां बच्चों का इलाज नहीं होता है। जब परिजन बच्ची को टाटा वार्ड ले गये तो वहां तैनात डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया। परिजनों का आरोप है कि इलाज में देरी होने के कारण बच्ची की मौत हो गयी। यदि पीएमसीएच के इमरजेंसी वार्ड में ही बच्ची का इलाज शुरू किया जाता तो शायद आज वो जीवित रहती लेकिन इलाज के बजाय उसे वहां से बच्चा वार्ड में ले जाने को कहा गया जिससे उसकी मौत हो गयी।
सांप के काटने से बच्ची की मौत के बाद परिजनों ने गायघाट स्थित गंगा नदी में शव को बहा दिया। ऐसी मान्यता है कि सांप काटने से अगर किसी की मौत होती है तो शव को जलाया नहीं जाता, बल्कि इस उम्मीद से उसे गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है कि एक दिन वो जरूर वापस आएगी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल पटना के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच की कार्यशैली पर उठ रहा है। जहां इमरजेंसी वार्ड में गंभीर रूप से आने वाले मरीजों का इलाज शुरू करने के बजाय दूसरे वार्ड में जाने को कहना कहां तक उचित है। पहले इलाज शुरू किया जाता फिर बच्ची को चाइल्ड हॉस्पिटल भेजा जाता। परिजनों के मन में एक सवाल आज भी उठ रहा है वो यह कि यदि समय पर इलाज शुरू किया जाता तो बच्ची शायद आज जीवित रहती।