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21-Aug-2025 02:43 PM
By First Bihar
Premanand Maharaj: प्रेमानंद महाराज के सत्संग आज लाखों लोगों के जीवन को दिशा दे रहे हैं। उनके प्रवचन जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं, जिससे व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलकर न केवल आत्मिक शांति पा सकता है, बल्कि जीवन की जटिलताओं से भी सहजता से पार पा सकता है। अपने हालिया सत्संग में प्रेमानंद जी ने कुछ ऐसी आम लेकिन गंभीर गलतियों के बारे में बताया, जिन्हें अगर व्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में करता है, तो उसकी सुख-शांति धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।
1. लालच करना
महाराज जी ने कहा कि लालच जीवन के विनाश की जड़ है। उन्होंने स्पष्ट रूप से समझाया कि जीवन उन्हीं वस्तुओं से चलाना चाहिए जो धर्म के मार्ग से अर्जित हों। ऐसे धन में स्थायित्व होता है और वह परिवार की भलाई का कारण बनता है। जबकि, लालच में कमाया गया धन हाइड्रोजन गैस की तरह होता है, जो अचानक आता है और फिर अंधकार छोड़ जाता है।
2. अपमान सहने की शक्ति
प्रेमानंद जी के अनुसार, जो व्यक्ति जरा-से अपमान में क्रोधित होकर बदले की भावना रखता है, वह स्वयं अपने पतन की राह पर चल पड़ता है। उन्होंने बताया कि यदि कोई आपको अपमानित करता है, तो उसे सहन करने से आपके पाप नष्ट होते हैं और वह पाप करने वाले पर चले जाते हैं। यह सहिष्णुता आत्मिक शांति की ओर पहला कदम है।
3. द्वेष और शत्रु की सोच में खोए रहना
जो लोग हर समय अपने विरोधियों और आलोचकों के बारे में सोचते रहते हैं, वे भीतर ही भीतर नकारात्मकता से भर जाते हैं। महाराज ने कहा कि क्रोध क्षणिक होता है, लेकिन अगर उसे दिल में बिठा लिया जाए, तो यह आपके स्वास्थ्य, मानसिक स्थिति और कार्यक्षमता तीनों को प्रभावित करता है। इसलिए, क्षमा करना और आगे बढ़ना ही बुद्धिमानी है।
4. आश्रित की रक्षा न करना
अगर कोई प्राणी चाहे वो पशु हो, पक्षी हो या मनुष्य आपकी शरण में आता है, तो उसका संरक्षण करना आपका धर्म है। महाराजजी ने कहा कि ऐसे आश्रित की रक्षा न करना या उसे हानि पहुँचाना, न केवल अधर्म है, बल्कि यह आपकी आत्मिक ऊर्जा को भी दूषित करता है और जीवन में दुखों को बुलावा देता है।
5. निडर होकर पाप करना
कुछ लोग बिना किसी पछतावे के पाप कर्म करते हैं। महाराज का मानना है कि ऐसा करना व्यक्ति को अंदर से खोखला कर देता है और धीरे-धीरे उसकी शांति समाप्त हो जाती है। उन्होंने कहा कि आत्म-चिंतन और पश्चाताप व्यक्ति को सुधार की ओर ले जाता है, जो अत्यंत आवश्यक है।
6. अपनी तारीफ स्वयं करना
महाराज जी ने एक और बड़ी गलती की ओर ध्यान दिलाया अपनी ही बड़ाई करना। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और वह निर्णय लेने में चूकने लगता है।
7. असहाय या निर्दोष के साथ गलत व्यवहार
प्रेमानंदजी ने अंत में कहा कि कोई भी व्यक्ति अगर महिला, बच्चे, पागल या असहाय के साथ बुरा व्यवहार करता है, तो उसका जीवन धीरे-धीरे सुख और शांति से वंचित हो जाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर आपकी पत्नी या पति से मनमुटाव है, तो समझिए कि ईश्वर ने आपके पूर्व के कर्मों के कारण उन्हें आपके जीवन में भेजा है। ऐसे में प्रताड़ना की जगह सहानुभूति और सहयोग का भाव रखें।
प्रेमानंद महाराज के इन विचारों से यह स्पष्ट होता है कि यदि व्यक्ति छोटी-छोटी गलतियों से बचे और आत्मविश्लेषण करते हुए धार्मिक मार्ग पर चले, तो जीवन में स्थायी सुख और शांति प्राप्त की जा सकती है। उनके द्वारा बताए गए ये सात सूत्र आत्मिक विकास के साथ-साथ सामाजिक और पारिवारिक संतुलन के लिए भी अत्यंत उपयोगी हैं।