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17-Nov-2025 09:24 AM
By First Bihar
Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में करारी हार के बाद अब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) गहरे मंथन के दौर से गुजर रही है। महागठबंधन की बड़ी पराजय के बाद जहां राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इतनी बड़ी हार की वजहें क्या रहीं, वहीं पार्टी के अंदर भी नेतृत्व और रणनीति पर चिंतन की सुगबुगाहट दिखाई दे रही है। इसी बीच नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने पटना में पार्टी के विधायकों और हारे हुए प्रत्याशियों की अहम बैठक बुलाई है, जिसने कई तरह की राजनीतिक बहसों को जन्म दे दिया है।
तेजस्वी ने बुलाई बैठक, लेकिन अध्यक्ष क्यों नहीं?
सोमवार को दोपहर दो बजे तेजस्वी यादव ने अपने 1, पोलो रोड आवास पर सभी उम्मीदवारों और निर्वाचित विधायकों की बैठक तय की है। यह बैठक इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि आमतौर पर ऐसी महत्वपूर्ण मीटिंग पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से बुलाई जानी चाहिए, लेकिन इस बार पहल तेजस्वी यादव ने की है। पार्टी के अंदर यह प्रश्न जोर पकड़ रहा है कि लालू प्रसाद यादव सक्रिय रूप से बैठक क्यों नहीं बुला रहे या नेतृत्व की भूमिका में उतनी रुचि क्यों नहीं दिखा रहे।
जानकारों का कहना है कि हाल ही में हुई कार्यकारिणी की बैठक में तेजस्वी को कई महत्वपूर्ण फैसलों के लिए अधिकृत कर दिया गया था। ऐसे में माना जा रहा है कि तेजस्वी अब पार्टी की कमान औपचारिक रूप से नहीं, लेकिन व्यावहारिक रूप से संभालते हुए दिख रहे हैं। यह भी संकेत है कि 2025 के चुनाव परिणामों के बाद पार्टी नेतृत्व में बदलाव या सशक्तीकरण की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
2025 के चुनावों में आरजेडी का ऐतिहासिक पतन
इस बार के चुनावों में आरजेडी की सीटें घटकर 75 से सिर्फ 24 पर आ गईं। यह पिछली बार की तुलना में 51 सीटों की भारी गिरावट है, जिसने पार्टी के भारी जनाधार और पारंपरिक वोट बैंक पर सवाल खड़े कर दिए हैं। महागठबंधन कुल मिलाकर सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया, जबकि 2020 में यह आंकड़ा 110 था। इसमें राजद को 25, कांग्रेस को 6, भाकपा (माले) को 2 और इंडियन इन्क्लूसिव पार्टी को 1 सीट मिली है।
अर्थात, महागठबंधन ने पिछले चुनाव की तुलना में पूरे 75 सीटें कम जीतीं, जो इसके वोटरों में भारी गिरावट व रणनीतिक चूक को दर्शाता है। एनडीए की '200 पार' जीत ने राजनीति की दिशा बदली राजग ने इस चुनाव में ऐतिहासिक सफलता हासिल की। भाजपा और जदयू दोनों ने अपनी 101 सीटों में से लगभग 85% सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुमत के साथ सत्ता पर फिर से कब्जा जमाया।
243 सदस्यीय विधानसभा में 200 से अधिक सीटें जीतना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, नीतीश कुमार की संगठनात्मक पकड़ और एनडीए की संयुक्त रणनीति का परिणाम बताया जा रहा है। भाजपा इस बार राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जिसने बिहार की राजनीति को कई वर्षों बाद नई दिशा दी है। वहीं जदयू की मजबूती ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक प्रासंगिकता को फिर से साबित किया है।
एआईएमआईएम का सीमांचल में प्रभाव बढ़ा
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सीमांचल क्षेत्र में एक बार फिर मजबूत पैठ दिखाते हुए पांच सीटें जीतीं। मुस्लिम बहुल इलाकों में इसका जनाधार बढ़ना आरजेडी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि यह क्षेत्र लंबे समय से उसका पारंपरिक वोट बैंक रहा है।इसके अलावा बसपा को भी एक महत्वपूर्ण जीत मिली। रामगढ़ सीट पर बसपा प्रत्याशी सतीश कुमार सिंह यादव ने भाजपा के अशोक कुमार सिंह को सिर्फ 30 वोटों से हराकर महत्वपूर्ण संदेश दिया कि छोटे दल भी कुछ क्षेत्रों में निर्णायक साबित हो रहे हैं।
आरजेडी में उठ रहे बड़े सवाल — नेतृत्व, रणनीति और भविष्य पार्टी में अब सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि जहां एक ओर संगठन लगातार कमजोर होता जा रहा है, वहीं हाईकमान में सक्रिय भूमिका कौन निभाएगा? क्या लालू प्रसाद यादव पारंपरिक नेतृत्व को वापस संभालेंगे या तेजस्वी यादव को पूरी तरह से कमान सौंप देंगे? तेजस्वी की बुलाई गई बैठक से संकेत मिल रहा है कि पार्टी में अब बड़े स्तर पर बदलाव, समीक्षा और रणनीति निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने वाली है।
आगे की राह — नुकसान की भरपाई कैसे?
आरजेडी को अब तीन बड़े मुद्दों पर तुरंत काम करना होगा जिसमें संगठनात्मक ढांचे को पुनर्गठित करना, युवाओं और महिलाओं के वोट बैंक को वापस जोड़ना, सीमांचल क्षेत्र में एआईएमआईएम के प्रभाव को रोकना इन सबके बीच सोमवार की बैठक बेहद अहम मानी जा रही है, क्योंकि इसमें हार के कारणों की खुली समीक्षा, सीट-दर-सीट विश्लेषण और भविष्य की दिशा तय की जानी है।
दूसरी ओर राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यदि नेतृत्व की अस्पष्टता और आपसी मतभेद दूर नहीं हुए, तो पार्टी को अगले कुछ वर्षों में और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। करारी हार के बाद आरजेडी बड़े बदलावों की दहलीज पर खड़ी है — और तेजस्वी की यह बैठक आने वाले दिनों की राजनीति की दिशा तय कर सकती है।