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17-Oct-2025 08:33 AM
By First Bihar
IAS Sanjeev Hans : मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में फंसे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी संजीव हंस को पटना हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। गुरुवार को जस्टिस चंद्र प्रकाश सिंह की एकलपीठ ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग केस में उन्हें सशर्त जमानत दे दी। कोर्ट ने साफ किया कि हंस देश नहीं छोड़ सकते और केस की सुनवाई के दौरान उन्हें अदालत में उपस्थित रहना होगा। इस आदेश के बाद जेल में बंद आईएएस अधिकारी के बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है।
कोर्ट ने माना – मामले में कई खामियां
संजीव हंस के वकील डॉ. फारुख खान ने बताया कि अदालत ने माना कि ईडी द्वारा दर्ज मामला कई कानूनी कमियों से भरा है। कोर्ट ने कहा कि जिस रूपसपुर थाना कांड संख्या 18/2023 के आधार पर ईडी ने ईसीआईआर (ECIR) दर्ज की थी, उसे अगस्त 2024 में अदालत पहले ही रद्द कर चुकी थी। इसके बाद ईडी का मामला केवल विजिलेंस की प्राथमिकी पर आधारित रह गया था, जो अब भी प्रारंभिक जांच के चरण में है।
न्यायालय ने कहा कि अब तक ऐसा कोई ठोस साक्ष्य (evidence) प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह साबित हो कि किसी प्रकार का वित्तीय लेनदेन हुआ था या किसी अपराध से अर्जित धन का उपयोग किया गया था। कोर्ट ने इस आधार पर माना कि हंस को हिरासत में रखना न्यायसंगत नहीं है।
एक साल से जेल में थे आईएएस हंस
बिहार कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संजीव हंस को ईडी ने अक्टूबर 2024 में मनी लॉन्ड्रिंग और आय से अधिक संपत्ति (Disproportionate Assets) के मामले में गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद उन्हें पटना की बेऊर जेल में न्यायिक हिरासत में भेजा गया था। पिछले लगभग एक वर्ष से वे जेल में बंद थे।
हंस पर आरोप था कि उन्होंने बिहार सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए काली कमाई के जरिए अकूत संपत्ति अर्जित की। ईडी की जांच में यह भी सामने आया था कि उनके परिजनों और करीबी लोगों के नाम पर भी बड़ी मात्रा में अचल संपत्ति खरीदी गई थी।
विजिलेंस और ईडी की कार्रवाई
बिहार विजिलेंस विभाग ने पहले इस मामले में प्राथमिकी (FIR) दर्ज की थी, जिसके आधार पर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस शुरू किया। ईडी ने आरोप लगाया कि सरकारी पदों पर रहते हुए हंस ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अवैध तरीके से सरकारी ठेकों और परियोजनाओं में आर्थिक लाभ प्राप्त किया। हालांकि, हंस के वकील का कहना था कि ईडी की कार्रवाई राजनीतिक दबाव में की गई थी और उनके खिलाफ पेश किए गए दस्तावेजों में स्पष्टता और ठोस साक्ष्य की कमी है।
कोर्ट ने कहा – जांच अधूरी, हिरासत अनुचित
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ईडी यह साबित नहीं कर सका कि संजीव हंस ने किसी भी अपराध से अर्जित धन का इस्तेमाल किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब मूल प्राथमिकी (रूपसपुर थाना कांड) ही रद्द हो चुकी है, तो उसके आधार पर दर्ज ईडी का मामला कानूनी रूप से कमजोर हो जाता है। इसलिए, हंस को जमानत देने में कोई बाधा नहीं है।
गुलाब यादव को भी मिली थी राहत
इस मामले में पहले पूर्व विधायक गुलाब यादव को भी ईडी ने गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने हंस के साथ मिलकर अवैध संपत्ति अर्जित करने में मदद की थी। उन्हें भी पिछले महीने पटना हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी है।
जमानत की शर्तें
कोर्ट ने जमानत देते हुए कुछ सख्त शर्तें लगाई हैं। संजीव हंस देश छोड़कर नहीं जा सकेंगे। उन्हें सुनवाई के हर चरण में अदालत के समक्ष उपस्थित रहना होगा। जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग करना होगा और गवाहों या सबूतों को प्रभावित नहीं करना होगा।
बहरहाल, अब देखना होगा कि ईडी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है या नहीं। फिलहाल पटना हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद आईएएस अधिकारी संजीव हंस के लिए यह एक बड़ी कानूनी राहत मानी जा रही है।