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15-Nov-2025 03:37 PM
By First Bihar
Election Commission Bihar : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 संपन्न हो चुके हैं। एनडीए ने एक बार फिर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है, जबकि महागठबंधन का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। चुनावी नतीजों और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के बीच अब वोटर लिस्ट को लेकर नया विवाद सामने आया है। कांग्रेस ने दावा किया है कि बिहार की अंतिम मतदाता सूची में अचानक 3 लाख नए वोटर बढ़ गए, जबकि चुनाव आयोग के पहले जारी आंकड़ों में यह संख्या कम थी। इस पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग को घेरते हुए पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
कांग्रेस का आरोप: संख्या में विसंगति क्यों?
कांग्रेस ने पोस्ट जारी कर कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 6 अक्टूबर को एक प्रेस नोट में बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या 7.42 करोड़ बताई थी। लेकिन मतदान खत्म होने के बाद आयोग की प्रेस रिलीज़ में 7.45 करोड़ मतदाताओं का आंकड़ा दिखाया गया।कांग्रेस ने पूछा “यह स्पष्ट किया जाए कि अंतिम वोटर लिस्ट में अचानक 3 लाख मतदाता कैसे बढ़ गए?”
चुनाव आयोग का जवाब: यह वृद्धि नियमों के तहत हुई
कांग्रेस के आरोपों के बाद चुनाव आयोग ने विस्तृत स्पष्टीकरण जारी किया और बताया कि संख्या में यह वृद्धि पूरी तरह नियमों और प्रक्रिया के तहत हुई है। आयोग ने कहा कि 6 अक्टूबर को जारी 7.42 करोड़ की मतदाता संख्या 30 सितंबर को प्रकाशित अंतिम मतदाता सूची पर आधारित थी। यह संख्या विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) के बाद तैयार की गई थी। लेकिन इसके बाद भी मतदाता सूची को पूरी तरह “फ्रीज़” नहीं कर दिया गया था।
नियमों के अनुसार
मतदाता सूची में नाम जोड़ने की प्रक्रिया चुनाव की घोषणा के बाद भी जारी रहती है। भारत निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया कि चुनाव की घोषणा के बाद, नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि से 10 दिन पहले तक,कोई भी पात्र नागरिक अपने नाम को मतदाता सूची में जुड़वाने का आवेदन कर सकता है। इस अवधि में प्राप्त सभी वैध फॉर्म-6 (नए वोटर जोड़ने हेतु) की जांच की जाती है और पात्र मतदाताओं को सूची में शामिल किया जाता है।
आयोग के अनुसार, 1 अक्टूबर से लेकर नामांकन की अंतिम तिथि से 10 दिन पहले तक, बड़ी संख्या में आवेदन मिले। इन आवेदनों की जांच कर सभी वैध नाम मतदाता सूची में जोड़े गए, ताकि कोई भी पात्र नागरिक अपने मताधिकार से वंचित न रहे। इसी प्रक्रिया के कारण, मतदाता संख्या में लगभग 3 लाख की वृद्धि हुई। यही संशोधित संख्या मतदान के बाद की प्रेस रिलीज़ में शामिल की गई।
आयोग ने कहा—यह कोई अनियमितता नहीं, बल्कि कानूनन प्रक्रिया है। चुनाव आयोग का तर्क है कि यह वृद्धि “अचानक” नहीं थी, बल्कि कानूनी प्रक्रिया के तहत किए गए नए जोड़ (Additions during Continuous Updation) का परिणाम है। आयोग का कहना है कि हर चुनाव में यह प्रक्रिया लागू रहती है, ताकि अंतिम क्षण तक भी जो पात्र युवा या नागरिक मतदाता सूची में शामिल होना चाहते हैं, उन्हें मौका मिल सके।
विपक्ष ने उठाई पारदर्शिता की मांग
हालांकि आयोग ने अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है, लेकिन विपक्षी दलों ने सवाल उठाया है कि नए जोड़े गए 3 लाख नामों की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? किन जिलों में सबसे अधिक वृद्धि हुई? क्या सभी आवेदनों के सत्यापन की प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से पूरी की गई? कांग्रेस का कहना है कि जब अंतिम वोटर लिस्ट पहले ही जारी हो चुकी थी, तब मतदान से ठीक पहले इतनी बड़ी संख्या में वृद्धि होने से संदेह पैदा होता है। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतदाता सूची में पारदर्शिता चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता से जुड़ा मसला है, इसलिए आयोग को अधिक विस्तृत डेटा उपलब्ध कराना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट भी निगरानी में
वोटर लिस्ट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही आयोग से विस्तृत रिपोर्ट मांग चुका है। अदालत ने बिहार में हटाए गए और जोड़े गए वोटरों का स्पष्ट डेटा देने को कहा है, ताकि पूरे मामले की सत्यता की जांच की जा सके। यह मामला अब न्यायिक समीक्षा के दायरे में है, इसलिए इसे लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और तेज हो सकते हैं।
बिहार की वोटर लिस्ट में 3 लाख नाम बढ़ने का विवाद अब बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। जहां कांग्रेस इसे “संख्या में विसंगति” बताकर सवाल उठा रही है, वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि यह वृद्धि पूरी तरह नियमों और प्रक्रिया के अनुसार हुई है। चूंकि मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है, आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि मतदाता सूची में इन परिवर्तनों की वास्तविक स्थिति क्या थी और क्या निर्वाचन प्रक्रिया में कोई कमी थी या नहीं।