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11-Nov-2025 11:44 AM
By First Bihar
Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। मंगलवार, 11 नवंबर को राज्य में दूसरे चरण का मतदान जारी है। इस फेज में 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर वोटिंग हो रही है, जिसमें 3.70 करोड़ से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनमें 1,95,44,041 पुरुष, 1,74,68,572 महिला और 943 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं। मतदान सुबह से ही तेज़ रफ्तार में चल रहा है और उम्मीद जताई जा रही है कि यह चरण बिहार के इतिहास में सर्वाधिक मतदान का नया रिकॉर्ड बना सकता है।
पहले चरण में 65 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई थी, जिसने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। अब दूसरे चरण के शुरुआती आंकड़े भी इस ओर इशारा कर रहे हैं कि जनता का जोश और उत्साह कम नहीं हुआ है—बल्कि और बढ़ा है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, अब तक जितना प्रतिशत मतदान हुआ है, वह पहले चरण के समान समय के मुकाबले अधिक है।
युवा मतदाता बने बदलाव के वाहक
दूसरे चरण के मतदान में युवाओं की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है। इस चरण में कुल 84.84 लाख मतदाता 18-29 आयु वर्ग के हैं, जबकि 30 से 40 वर्ष आयु वर्ग के वोटरों की संख्या 1.04 करोड़ से अधिक है। इनमें से बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है जो पहली बार वोट डाल रहे हैं। चुनाव आयोग के अनुसार, 7,69,356 नए मतदाता (first-time voters) इस बार लोकतंत्र के इस महापर्व में हिस्सा ले रहे हैं।
बिहार में बेरोज़गारी, सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता, और रोजगार के अवसर जैसे मुद्दे युवाओं के दिलों से सीधे जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि युवा वोटर इस बार न केवल जागरूक हैं, बल्कि सक्रिय रूप से मतदान केंद्रों तक पहुंच रहे हैं। गया, जहानाबाद, नवादा, जैसे जिलों में सुबह से ही युवाओं की लंबी कतारें देखने को मिलीं। कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने ‘पहले मतदान, फिर जलपान’ अभियान चलाकर छात्रों को वोट डालने के लिए प्रेरित किया।
महिला मतदाता बन रही हैं ‘साइलेंट गेमचेंजर’
इस चुनाव में महिला मतदाताओं की सक्रियता अभूतपूर्व मानी जा रही है। बिहार की राजनीति में महिलाएं अब सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। दूसरे चरण में कुल 1.74 करोड़ से अधिक महिला मतदाता हैं और मतदान केंद्रों पर महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से कम नहीं दिख रही।
गांव-देहात से लेकर शहरों तक, महिलाएं अपने मुद्दों — जैसे महंगाई, सुरक्षा, शिक्षा, शराबबंदी और राशन व्यवस्था — को लेकर सजग हैं। कई बूथों पर महिला मतदाता पुरुषों से पहले कतार में दिखीं। यह संकेत है कि बिहार की आधी आबादी इस बार किसी भी राजनीतिक दल के लिए आसान चुनौती नहीं होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महिला वोटर इस बार “साइलेंट गेमचेंजर” साबित हो सकती हैं। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में एनडीए और महागठबंधन दोनों ही गठबंधन महिला वोट को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश में हैं।
प्रवासी मजदूर और लौटे एनआरआई की भूमिका
दूसरे चरण की वोटिंग में एक खास पहलू यह भी है कि इस बार बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों ने बिहार में रहकर वोट डालने का निर्णय लिया है। कोरोना महामारी के बाद से ही प्रवासियों की घर वापसी का सिलसिला बढ़ा था, और अब चुनावी मौसम में यह जनसंख्या समीकरणों को प्रभावित कर रही है।
बिहार के बाहर से लौटे मजदूरों और कुछ एनआरआई वोटरों की संख्या भले ही कम हो (43 एनआरआई), लेकिन इनका प्रभाव कुछ सीटों पर निर्णायक साबित हो सकता है। प्रवासी मतदाता आम तौर पर रोजगार, पलायन, बुनियादी सुविधाओं और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर मतदान करते हैं, जो इस बार चुनावी विमर्श के केंद्र में हैं।
वरिष्ठ नागरिक और दिव्यांग मतदाताओं की सहभागिता
इस चरण में 4,87,219 वरिष्ठ नागरिक (80+ आयु वर्ग) और 4,04,615 दिव्यांगजन वोट डालने के पात्र हैं। इनके अलावा, 6,255 सौ वर्ष से अधिक आयु के मतदाता और 63,373 सेवा मतदाता (जैसे सैनिक, सरकारी अधिकारी आदि) भी इस चरण में मतदान कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने इनके लिए विशेष सुविधाएं दी हैं — जैसे घर से मतदान, व्हीलचेयर, और मोबाइल वोटिंग टीम। लोकतंत्र के इस पर्व में इन वर्गों की भागीदारी यह दर्शाती है कि मतदान अब केवल राजनीतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि सामाजिक कर्तव्य का रूप ले चुका है।
मतदान प्रतिशत बढ़ने के पीछे के कारण
विश्लेषकों का मानना है कि इस बार वोटिंग प्रतिशत बढ़ने के पीछे कई सामाजिक और राजनीतिक कारण हैं: SIR (Social Influence Rate) — यानी समाज में राजनीतिक जागरूकता और मतदाता प्रभाव का दायरा पहले से कहीं अधिक बढ़ा है।
महिला मतदाताओं की सक्रियता — पिछले चुनावों के मुकाबले महिलाओं की मतदान दर लगातार बढ़ रही है।
प्रवासी मजदूरों का ठहराव — बाहर काम करने वाले मजदूर इस बार बिहार में हैं और मतदान कर रहे हैं।
बेरोज़गारी और सरकारी नौकरी का मुद्दा — युवाओं ने रोजगार को लेकर अपनी आवाज़ वोट के ज़रिए बुलंद करने का फैसला किया है।
पलायन और विकास का मुद्दा — गांवों से शहरों की ओर पलायन कम करने की मांग चुनावी एजेंडा बना हुआ है।
इन तमाम कारणों से मतदाता इस बार अपने अधिकार का उपयोग पहले से कहीं अधिक गंभीरता से कर रहे हैं।
चुनावी समीकरणों पर असर
बढ़ता मतदान हमेशा किसी एक पक्ष के लिए लाभदायक या हानिकारक नहीं होता। लेकिन बिहार की राजनीति में यह अक्सर “एंटी-इनकंबेंसी” यानी सत्ता-विरोधी लहर का संकेत माना जाता है। यदि मतदान प्रतिशत में वृद्धि होती है, तो यह संकेत होगा कि मतदाता बदलाव के मूड में हैं।
जेडीयू-बीजेपी गठबंधन और आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन दोनों ही बढ़े हुए मतदान को अपने पक्ष में बता रहे हैं। महागठबंधन इसे “जनता का बदलाव की ओर झुकाव” बता रहा है, वहीं एनडीए का दावा है कि “विकास के प्रति जनता का विश्वास” बढ़ा है।
लोकतंत्र का नया रिकॉर्ड बनते हुए
बिहार का दूसरा चरण न केवल राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राज्य की लोकतांत्रिक परिपक्वता का भी प्रमाण है। युवा, महिलाएं, दिव्यांगजन और वरिष्ठ नागरिक — सभी अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। यदि मतदान की गति इसी तरह जारी रही, तो यह चरण बिहार के इतिहास में अब तक का सबसे ज्यादा वोटिंग वाला फेज़ बन सकता है। आज का दिन बिहार के इतिहास में लोकतांत्रिक जागरूकता की नई मिसाल बनकर दर्ज हो सकता है।