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Bihar Election 2025 : दूसरे चरण में जातीय समीकरणों की जंग, 122 सीटों पर ‘जाति बनाम जाति’ का दिलचस्प मुकाबला

दूसरे चरण के मतदान से पहले सियासी जंग में जातीय समीकरण हावी हैं। 20 जिलों की 122 सीटों पर जाति बनाम जाति की टक्कर ने चुनावी मुकाबले को बेहद दिलचस्प बना दिया है।

Bihar Election 2025 : दूसरे चरण में जातीय समीकरणों की जंग, 122 सीटों पर ‘जाति बनाम जाति’ का दिलचस्प मुकाबला

09-Nov-2025 09:19 AM

By First Bihar

Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण को लेकर सियासी तापमान चरम पर पहुंच गया है। 11 नवंबर को होने वाले दूसरे और अंतिम चरण के मतदान से पहले आज शाम प्रचार थम जाएगा। इस चरण में 20 जिलों की कुल 122 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है, जहां 1302 उम्मीदवार मैदान में हैं। दूसरे चरण में नेताओं के भाषणों से लेकर रैलियों तक, हर कहीं जातीय समीकरणों का गुणा-भाग चलता दिखाई दे रहा है। इस बार मुद्दों से ज्यादा जातीय गणित ही चुनावी हवा को दिशा दे रहा है।


विश्लेषकों का मानना है कि दूसरे चरण का पूरा रण जातीय ध्रुवीकरण की ओर मुड़ गया है। दिलचस्प बात यह है कि 122 सीटों में से लगभग 32 सीटों पर मुकाबला एक ही जाति के प्रत्याशियों के बीच सिमट गया है। यानी, कई विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता को अपनी ही जाति के दो उम्मीदवारों में से एक को चुनना होगा।


उदाहरण के तौर पर नरपतगंज, बेलहर, नवादा और बेलागंज की चार सीटों पर यादव उम्मीदवार आमने-सामने हैं—एक ओर एनडीए के तो दूसरी ओर महागठबंधन के प्रत्याशी। इसी तरह अररिया, जोकीहाट, बहादुरगंज और अमौर की सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। इसका असर यह होगा कि इन सीटों पर जातीय एकजुटता से ज्यादा स्थानीय नेतृत्व और व्यक्तिगत छवि निर्णायक भूमिका निभा सकती है।


वहीं, तीन-तीन विधानसभा क्षेत्रों में धानुक, पासवान, राजपूत और मुसहर समुदायों के बीच भी आंतरिक मुकाबला देखने को मिल रहा है।


धानुक जाति: फुलपरास, सिकटी, रुपौली


पासवान जाति: कोढ़ा, पीरपैंती, बोधगया


राजपूत जाति: रामगढ़, औरंगाबाद, वजीरगंज


मुसहर जाति: बाराचट्टी, सिकंदरा, रानीगंज


इसके अलावा दो-दो सीटों पर ब्राह्मण, वैश्य और रविदास समुदायों के उम्मीदवार आमने-सामने हैं। वहीं, एक-एक सीट पर पातर, खरवार, संताल, कुशवाहा और भूमिहार जाति के प्रत्याशी भी अपनी ही जाति के प्रतिद्वंद्वियों को हराने की पूरी कोशिश में जुटे हैं।


राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार जातीय समीकरण पहले से कहीं ज्यादा जटिल हैं। आरजेडी का पारंपरिक “एमवाई समीकरण” (मुस्लिम-यादव गठजोड़) भी कई सीटों पर एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ा नजर आ रहा है।


सुरसंड विधानसभा सीट पर जदयू के नागेंद्र राउत (यादव) का मुकाबला राजद प्रत्याशी अबु दोजाना (मुस्लिम) से है।


सुपौल सीट पर जदयू के विजेंद्र यादव के सामने कांग्रेस के मिन्नत रहमानी (मुस्लिम) हैं।


बायसी सीट पर भाजपा के विनोद यादव का सामना राजद के अब्दुस सुभान से है।


नाथनगर सीट पर लोजपा (रामविलास) के मिथुन कुमार (यादव) का मुकाबला राजद के जियाउल हसन (मुस्लिम) से है।


इन चारों सीटों पर “एमवाई समीकरण” के दोनों घटक एक-दूसरे के खिलाफ हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस बार सामाजिक समीकरणों की सीमाएं भी राजनीति के व्यावहारिक धरातल पर टूटती नजर आ रही हैं।राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, दोनों प्रमुख गठबंधनों—एनडीए और महागठबंधन—ने उम्मीदवारों के चयन में जातीय पहचान के साथ-साथ स्थानीय प्रभाव और जीत की संभावना को भी ध्यान में रखा है। पहले जहां दल अपने पारंपरिक जातीय आधार पर ही टिकट वितरण करते थे, वहीं इस बार उम्मीदवार चयन में क्षेत्रीय समीकरण, विपक्षी उम्मीदवार की ताकत और मतदाता वर्ग की मनोवृत्ति को भी अहमियत दी गई है।


दरअसल, बिहार की सामाजिक संरचना लगातार बदल रही है। नई पीढ़ी के मतदाता जातीय पहचान के साथ-साथ स्थानीय विकास, शिक्षा, रोजगार और नेतृत्व की विश्वसनीयता जैसे मुद्दों पर भी ध्यान दे रहे हैं। हालांकि जाति अब भी निर्णायक भूमिका निभा रही है, लेकिन उसकी प्रकृति पहले जैसी स्थिर नहीं रही। यही कारण है कि दलों ने एक ही जाति के कई उम्मीदवारों को टिकट देकर जोखिम उठाया है, ताकि किसी समुदाय की नाराजगी न झेलनी पड़े।


राजनीतिक पंडितों का मानना है कि “इस बार भले ही कई उम्मीदवार हार जाएं, लेकिन हर क्षेत्र में जाति की जीत होगी।” यानी, जहां प्रत्याशी बदल जाएंगे, वहां भी जातीय पहचान और वफादारी कायम रहेगी। बिहार की राजनीति में यह जातीय मोज़ेक न सिर्फ दलों के लिए रणनीति तय करने में चुनौती है, बल्कि मतदाताओं के लिए भी यह तय करना कठिन है कि वे जाति चुनें या विकास।


दूसरे चरण का यह चुनाव न केवल सत्ता के समीकरण तय करेगा, बल्कि यह भी दिखाएगा कि क्या बिहार की राजनीति अब भी पूरी तरह जातियों में बंटी हुई है, या फिर मतदाता अब जाति की सीमाओं से आगे बढ़कर किसी नए राजनीतिक समीकरण की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।