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13-Nov-2025 01:46 PM
By First Bihar
Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति में कुछ विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जो हर चुनाव में नया इतिहास लिखती हैं। उन्हीं में से एक है मोहनिया विधानसभा सीट, जहां सत्ता का समीकरण कभी भी स्थायी नहीं रहा। हर चुनाव में यहां का जनादेश बदल जाता है, कोई पार्टी या चेहरा लगातार जनता का भरोसा नहीं जीत पाता। कभी कांग्रेस तो कभी राजद, भाजपा या बसपा... हर किसी को बारी-बारी से मौका मिला, लेकिन स्थायी विश्वास किसी को नहीं। आखिर क्यों बदल जाते हैं यहां हर बार विधायक? क्या है इस सीट का जातीय, राजनीतिक और सामाजिक गणित जानिए विस्तार से...
मोहनिया विधानसभा क्षेत्र का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प और अप्रत्याशित समीकरणों से भरा हुआ रहा। जिले की राजनीति में यह सीट हमेशा सुर्खियों में रहती है, क्योंकि यहां हर चुनाव में दल-बदल, जातीय समीकरण और सियासी जोड़-घटाव जनता के रुख को प्रभावित करते हैं। आज़ादी के बाद से अब तक कांग्रेस, जनता दल, बसपा, राजद और भाजपा जैसी बड़ी पार्टियों ने इस सीट पर अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश की है। अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित यह सीट अक्सर सत्ता परिवर्तन का संकेत भी देती रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की संगीता पासवान ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी।
इस बार भी मोहनिया में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है, जिससे पूरे क्षेत्र में राजनीतिक गर्मी बढ़ गई है। भाजपा की ओर से संगीता कुमारी मैदान में हैं, जिन्हें स्थानीय स्तर पर कुछ नाराज़गी का सामना जरूर करना पड़ा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर हुए वोटों के ध्रुवीकरण ने उनका समीकरण मजबूत कर दिया। भाजपा का कोर वोट बैंक और महिला मतदाता बड़ी संख्या में उनके साथ दिखाई दिए। वहीं जन सुराज पार्टी की प्रत्याशी गीता देवी ने मुकाबले को और रोमांचक बना दिया है। उन्हें हर वर्ग से थोड़ा-थोड़ा समर्थन मिला है और उन्होंने सभी पार्टियों के पारंपरिक वोटों में सेंध लगाई है। गीता देवी अपने समाजसेवी छवि और व्यक्तिगत संपर्कों के कारण “साइलेंट फैक्टर” के रूप में उभरती दिख रही हैं।
उधर, निर्दलीय उम्मीदवार और राजद समर्थित रविशंकर पासवान भी इस बार मैदान में मजबूती से डटे हुए हैं। रविशंकर पासवान पूर्व सांसद छेदी पासवान के पुत्र हैं, जिसका राजनीतिक फायदा उन्हें मिला है। अपने पारंपरिक पासवान वोटरों के साथ-साथ राजद के कोर वोट बैंक को उन्होंने साधे रखा है। वहीं बसपा प्रत्याशी ओमप्रकाश नारायण ने भी अपने पारंपरिक दलित वोटरों को जोड़ने की कोशिश की है, हालांकि इस बार उनके वोटों में कुछ बिखराव जरूर देखने को मिला है।
कुल मिलाकर, मोहनिया की लड़ाई इस बार दलगत समीकरणों और जातीय संतुलन के बीच फंसी हुई है। भाजपा की संगीता कुमारी संगठन और मोदी फैक्टर के सहारे आगे दिख रही हैं, जबकि रविशंकर पासवान जातीय एकता और पारिवारिक राजनीतिक विरासत के सहारे मैदान में टिके हैं। वहीं गीता देवी सभी दलों के वोट बैंक में सेंध लगाकर “किंगमेकर” की भूमिका में नज़र आ रही हैं।
गौरतलब है कि मोहनिया बाजार समिति परिसर स्थित स्ट्रॉन्ग रूम में जिले की चारों विधानसभा क्षेत्रों की ईवीएम मशीनें कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच सुरक्षित रखी गई हैं। मतगणना 14 नवंबर को होगी, जब मोहनिया के कुल 12 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला जनता के वोटों से होगा। जिले की नजरें अब इस हाई-प्रोफाइल सीट पर टिकी हुई हैं, जहां हर मत का असर सत्ता के समीकरण बदल सकता है।