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15-Nov-2025 12:38 PM
By First Bihar
Bihar Election Modi Factor : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की ऐतिहासिक जीत महज एक राजनीतिक सफलता नहीं, बल्कि रणनीति, नेतृत्व और जमीनी स्तर पर प्रभावी संदेश प्रबंधन का परिणाम रही. इस पूरे चुनाव अभियान का केंद्र बिंदु रहे—प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. चुनावी रणभूमि में मोदी की उपस्थिति ने न केवल माहौल बदला, बल्कि विपक्ष के स्थापित समीकरणों को भी ध्वस्त कर दिया. उनके द्वारा की गई रैलियों, रोड शो और आक्रामक भाषणों ने अंतिम चरण तक चुनावी हवा को एनडीए की तरफ मोड़ दिया.
मोदी फैक्टर—जिन्होंने हवा को आंधी बनाया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस चुनाव अभियान में 14 जिलों में जनसभाएं कीं और पटना में एक विशाल रोड शो भी आयोजित किया. उन्होंने जिन 111 उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया, उनमें से 81 विजयी हुए. यह आंकड़ा अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि बिहार चुनाव 2025 में मोदी फैक्टर निर्णायक रहा.
]मोदी की सभाओं में बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ी, और प्रत्येक सभा का प्रत्यक्ष प्रभाव संबंधित जिलों की सीटों पर देखा गया. जिन क्षेत्रों में उन्होंने रैली की, वहां बड़े पैमाने पर वोटिंग हुई और मतदाताओं की पसंद स्पष्ट रूप से एनडीए के पक्ष में झुकी दिखाई दी. वहीं, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी 30 रैलियां कीं और जिन उम्मीदवारों का उन्होंने समर्थन किया, उनमें से सिर्फ तीन ही पराजित हुए. शीर्ष नेतृत्व की यह संयुक्त ताकत बिहार के राजनीतिक समीकरण को एकतरफा बनाने वाली साबित हुई.
कर्पूरी ठाकुर की भूमि से शुरुआत—संदेश स्पष्ट था
मोदी ने 24 अक्टूबर को समस्तीपुर में जननायक कर्पूरी ठाकुर को श्रद्धांजलि देकर अभियान की शुरुआत की. यह कदम सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की राजनीति और पिछड़े वर्गों के बड़े वोट बैंक को साधने का प्रतीक था. यही वजह है कि समस्तीपुर और बेगूसराय की रैलियों का एनडीए को सीधा फायदा मिला. उजियारपुर और साहबपुर कमल जैसी कुछ सीटों पर मिली हार अपवाद भर साबित हुई, जबकि व्यापक जनाधार एनडीए के साथ खड़ा दिखाई दिया.
नवादा, आरा और पटना—जहां भी रैली हुई, लहर बनती गई
2 नवंबर को नवादा और भोजपुर के आरा में प्रधानमंत्री की रैलियों में उमड़ी भीड़ ने साफ संकेत दे दिए थे कि इस बार चुनाव का रुख बदल चुका है. दोनों जिलों की लगभग सभी सीटें अंततः एनडीए के खाते में गईं.शाम को पटना में हुआ रोड शो चुनाव अभियान का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. पटना की ज्यादातर सीटों पर एनडीए की जीत ने साबित कर दिया कि मोदी का रोड शो सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि जनमत को प्रभावित करने वाला ऐतिहासिक क्षण था.
कटिहार और सहरसा—सीमांचल में भी असर दिखाई दिया
सीमांचल क्षेत्र पर महागठबंधन की पकड़ पारंपरिक रूप से मजबूत रही है. लेकिन 3 नवंबर को कटिहार और सहरसा में मोदी की रैलियों ने इस समीकरण को भी झटका दिया. दोनों जिलों में एनडीए ने सिर्फ एक-एक सीट गंवाई. यह परिणाम बताता है कि प्रधानमंत्री का संदेश सीमांचल में भी गूंजा और मतदाताओं ने पहली बार व्यापक रूप से एनडीए पर भरोसा जताया.
भागलपुर और अररिया—दूसरे चरण से पहले बनाया माहौल
6 नवंबर को पहले चरण के मतदान के दिन प्रधानमंत्री ने भागलपुर और अररिया का दौरा किया. भागलपुर की सभी सीटें एनडीए ने जीतीं. अररिया में हार जरूर हुई, लेकिन दो सीटों तक सीमित रही इन रैलियों में मोदी ने महिलाओं, युवाओं और गरीबों के लिए केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त योजनाओं को बार-बार दोहराया. महागठबंधन के कथित भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और विकास में बाधा के मुद्दे को उन्होंने आक्रामक तरीके से उठाया. यही वह दौर था जब चुनावी नैरेटिव पूरी तरह एनडीए के पक्ष में शिफ्ट हो गया.
कैमूर, औरंगाबाद, बेतिया और सीतामढ़ी—पुराने किलों में सेंध
7 नवंबर को कैमूर और औरंगाबाद में मोदी की रैलियों ने यहां वर्षों पुराने समीकरणों को बदल दिया. 2020 और 2015 में जहां ये जिले एनडीए के लिए चुनौती बने थे, 2025 में मोदी की मौजूदगी ने पूरी स्थिति पलट दी.8 नवंबर की बेतिया और सीतामढ़ी रैलियों ने सीमा क्षेत्रों में भी एनडीए को निर्णायक बढ़त दिलाई.
मुजफ्फरपुर और छपरा—जहां भावनाएं वोटों में बदलीं
30 अक्टूबर की मुजफ्फरपुर और छपरा की सभाओं में प्रधानमंत्री का भाषण सबसे अधिक आक्रामक रहा. छठ पूजा, राम मंदिर, घुसपैठ, जनसंख्या नियंत्रण और तुष्टिकरण जैसे मुद्दों को उन्होंने बड़े जोर से उठाया. यहां मुजफ्फरपुर में 71.81% और छपरा में 63.86% मतदान दर्ज हुआ—दोनों जगह “मोदी फैक्टर” का सीधा असर दिखा.हालांकि पारू, कांटी और गरखा कुछ अपवाद रहे, लेकिन व्यापक समर्थन ने एनडीए को मजबूत बढ़त दिलाई.
विपक्ष पर प्रहार—भावनाओं ने मुद्दों को पीछे छोड़ा
इस चुनाव की खास बात थी कि प्रधानमंत्री के भाषणों में भावनात्मक अपील मुद्दों से अधिक प्रभावी साबित हुई. उन्होंने कांग्रेस–राजद गठबंधन पर छठी मैया का अपमान, अयोध्या मामले में राम मंदिर का विरोध, घुसपैठियों के संरक्षण और तुष्टिकरण की राजनीति जैसे आरोप बेहद तीखे अंदाज में लगाए.यह नैरेटिव सीधे तौर पर उन वर्गों को प्रभावित करता गया, जो सांस्कृतिक और धार्मिक खूबियों से जुड़ाव रखते हैं. इससे भाजपा को अभूतपूर्व भावनात्मक समर्थन मिला.
111 में से 81 सीटों पर जीत—मोदी इफेक्ट का सबसे मजबूत प्रमाण
अंततः यह स्पष्ट हो गया कि मोदी की लोकप्रियता अभी भी सीधी वोटों में तब्दील होती है. जिन 111 सीटों पर उन्होंने प्रचार किया, उनमें से 81 पर जीत दर्ज हुई.यह न सिर्फ बिहार चुनाव 2025 की सबसे बड़ी सफलता है, बल्कि यह भविष्य की राजनीतिक दिशा तय करने वाला बड़ा उदाहरण भी बन गया है.एनडीए की यह जीत बताती है कि जब नेतृत्व, संदेश और संगठनात्मक ताकत एक साथ मिलते हैं, तो चुनावी परिदृश्य पूरी तरह बदल सकता है—और इस पूरे बदलाव के केंद्र में थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.