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Bihar Election 2025 : इस बार चुनावी मंचों पर झलकी बिहार की परंपरा, संस्कृति और कला — चुनावी माहौल में दिखा लोक गौरव का संगम

बिहार चुनाव 2025 में इस बार मंचों पर मिथिला की संस्कृति, परंपरा और लोककला की झलक दिखी। नेताओं ने पाग-दोपटा, मखाने की माला और मिथिला पेंटिंग के जरिए बिहार की पहचान को सम्मान दिया।

 Bihar Election 2025 : इस बार चुनावी मंचों पर झलकी बिहार की परंपरा, संस्कृति और कला — चुनावी माहौल में दिखा लोक गौरव का संगम

10-Nov-2025 11:14 AM

By First Bihar

Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 इस बार सिर्फ राजनीतिक नारों, वादों और आरोप-प्रत्यारोपों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने बिहार की समृद्ध परंपरा, लोक संस्कृति और प्रतीक चिह्नों को भी चुनावी मंचों पर जीवंत कर दिया। राजनीतिक दलों ने अपने मंचों को बिहार की पहचान, लोककला और संस्कृति से सजाकर मतदाताओं को अपनी जड़ों से जोड़ने की एक सुंदर कोशिश की।


इस बार के प्रचार अभियान में मिथिला, मगध, भोजपुर और सीमांचल की सांस्कृतिक झलक मंचों से लेकर प्रचार सामग्री तक में दिखाई दी। परंपरा और आधुनिकता के इस अद्भुत संगम ने चुनावी माहौल को न सिर्फ जीवंत बनाया, बल्कि मतदाताओं के दिलों में एक अलग उत्साह भी भर दिया।


लोककला बनी चुनाव प्रचार की पहचान

बिहार के चुनावी मंचों पर मिथिला पेंटिंग, सुजनी कला, गोदना पेंटिंग और मखाने की माला जैसे प्रतीक इस बार चर्चा में रहे। नेताओं के स्वागत में मिथिला की पारंपरिक पाग-दोपटा, शाल और लोककला से सजे उपहारों का खूब उपयोग हुआ। यह नजारा यह दिखा रहा था कि राजनीतिक भाषणों और नारों के बीच भी बिहार की सांस्कृतिक विरासत को सम्मान मिल रहा है।


सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर और बेगूसराय के चुनावी मंचों पर मिथिला पेंटिंग से सजे बैनर और झंडे दिखाई दिए। कई मंचों पर मां जानकी, राजा जनक और भगवान सूर्य की पेंटिंग लगाई गईं, जो बिहार की आस्था और परंपरा के प्रतीक हैं।


प्रधानमंत्री मोदी बने मिथिला संस्कृति के संदेशवाहक

आठ नवंबर को सीतामढ़ी में चुनावी सभा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वे स्वयं मिथिला पेंटिंग के ब्रांड एंबेसेडर हैं। उन्होंने बताया कि जब भी वे विदेश दौरे पर जाते हैं, तो वहां के राष्ट्राध्यक्षों को मिथिला की पारंपरिक पेंटिंग भेंट करते हैं ताकि दुनिया को बिहार की कला और महिलाओं के हुनर की पहचान मिले।


मोदी ने मंच से मां जानकी, बाबा हलेश्वर स्थान और पंथपाकड़ भगवती स्थान की चर्चा कर मिथिला की धार्मिक विरासत को भी सम्मान दिया। सभा के दौरान उन्हें राजा जनक की हल चलाते हुए प्रतिमा भेंट की गई, जो कृषि और संस्कृति के समन्वय का प्रतीक है।


इससे पहले, 24 अक्टूबर को समस्तीपुर से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने मिथिला के पारंपरिक पाग और चादर के साथ किया था। उन्हें भगवान सूर्य की मूर्ति भी भेंट की गई, जो बिहार की लोक आस्था का प्रतीक मानी जाती है।


उसी मंच पर स्थानीय सांसद शांभवी चौधरी ने प्रधानमंत्री को छठ पूजा की सूप भेंट की, जो मिथिला पेंटिंग से सुसज्जित थी। यह उपहार न केवल लोककला का सम्मान था बल्कि बिहार की बहनों-बेटियों की कला का प्रचार भी। इस दौरान मखाने की माला भी भेंट की गई, जो मिथिलांचल की पहचान है। कर्पूरीग्राम के जीकेपीडी कॉलेज परिसर में छात्राओं ने लोकनृत्य सामा चकेवा प्रस्तुत कर प्रधानमंत्री का स्वागत किया, जिसने चुनावी माहौल को सांस्कृतिक उत्सव में बदल दिया।


नेताओं में दिखी परंपरा की झलक

मिथिला पेंटिंग और पारंपरिक पोशाकों का आकर्षण सिर्फ प्रधानमंत्री तक सीमित नहीं रहा। शनिवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने मधुबनी जिले के बेनीपट्टी में रोड शो के दौरान मिथिला पेंटिंग वाला पाग और शाल धारण किया। उनके इस पारंपरिक अंदाज ने स्थानीय लोगों को खूब प्रभावित किया।


गोरखपुर के सांसद और भोजपुरी अभिनेता रवि किशन भी खजौली में चुनावी सभा के दौरान पाग-दोपटा और मखाने की माला में नजर आए। वहीं, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अन्य नेताओं ने भी चुनाव प्रचार के दौरान मिथिला पेंटिंग से सजे दोपटे और शाल ओढ़े। कई मंचों पर नेताओं को भेंट स्वरूप मिथिला पेंटिंग दी गई, जिससे बिहार की कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।


संस्कृति के साथ आत्मगौरव की अनुभूति

इस बार के चुनाव प्रचार ने यह साबित कर दिया कि राजनीति सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति के प्रति जुड़ाव की भावना का भी प्रतीक हो सकती है। मंचों पर बिहार की लोककला का प्रदर्शन और नेताओं द्वारा उसकी सराहना ने कलाकारों को भी नई ऊर्जा दी है।


मधुबनी, सीतामढ़ी और दरभंगा के कारीगरों ने बताया कि इस बार चुनाव के कारण उनकी कलाकृतियों की मांग बढ़ी है। पेंटिंग, शाल, मखाने की माला और पारंपरिक उपहारों के ऑर्डर पहले से अधिक मिले। इससे न सिर्फ आर्थिक लाभ हुआ, बल्कि उन्हें अपनी कला के सम्मान का भी एहसास हुआ।


बिहार चुनाव 2025 ने यह संदेश दिया कि जब राजनीति परंपरा से जुड़ती है तो लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत होती हैं। इस बार चुनावी मंच केवल वादों और भाषणों के मंच नहीं रहे, बल्कि उन्होंने बिहार की आत्मा — उसकी संस्कृति, कला और लोक परंपरा — को भी आवाज दी। यही बिहार की असली पहचान है, जो हर चुनाव में और अधिक प्रखर होकर सामने आती है।