Bihar Election 2025: स्ट्रांग रूम का वीडियो शेयर कर आरजेडी ने गड़बड़ी के लगाए आरोप, DM ने दिए जांच के आदेश Bihar Election 2025: स्ट्रांग रूम का वीडियो शेयर कर आरजेडी ने गड़बड़ी के लगाए आरोप, DM ने दिए जांच के आदेश Bihar News: अपने घर 'मगध' में ही फंसे मांझी...'अतरी' में दांव पड़ रहा उल्टा ! चहेते कैंडिडेट के खिलाफ NDA वोटर्स में भारी नाराजगी..सबक सिखाने की तैयारी Bihar election 2025 : पवन सिंह और खेसारी लाल यादव में कौन है ज्यादा अमीर? जानिए दोनों की संपत्ति और राजनीतिक जुड़ाव Train Accident: बिहार में मिलिट्री गुड्स ट्रेन के दो खाली डिब्बे पटरी से उतरे, रेस्क्यू ऑपरेशन जारी पटना में जिम के गेट पर झोले में मिली नवजात: मच्छरों से सूजा चेहरा देखकर जिम ऑनर ने गोद लिया, नाम रखा ‘एंजल’ Bihar Assembly Election : दूसरे चरण के मतदान के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम, 20 जिलों में तैनात 1650 कंपनियां और 4 लाख जवान UPSC IFS Mains 2025: IFS मेन्स परीक्षा 2025: UPSC ने एडमिट कार्ड जारी किया, पूरी जानकारी यहां Bihar election : बिहार चुनाव में अचानक घनबेरिया का पेड़ा बना चर्चा का स्वाद, अमित शाह ने भी की जमुई की मिठास की तारीफ; जानिए क्या है इसकी पूरी कहानी Success Story: जानिए कौन हैं एनकाउंटर स्पेशलिस्ट तदाशा मिश्रा? आखिर क्यों झारखंड में मिली इतनी बड़ी जिम्मेदारी
08-Nov-2025 10:36 AM
By First Bihar
Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण में कई विधानसभा क्षेत्र इस बार बेहद हाईवोल्टेज बने हुए हैं, लेकिन गया टाउन, सासाराम और चैनपुर तीन सीटें ऐसी हैं, जहां सियासी पारा सबसे ज्यादा गर्म है। इन सीटों पर कुल 22-22 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिससे मुकाबला न सिर्फ तगड़ा बल्कि अप्रत्याशित भी बन गया है। हर सीट पर कभी भाजपा, कभी राजद, तो कभी कांग्रेस का झंडा लहराता रहा है, लेकिन इस बार समीकरण बदल गए हैं। गठबंधनों के भीतर खींचतान और नए चेहरे चुनावी परिदृश्य को और उलझा रहे हैं।
सासाराम: जेल से लौटे राजद उम्मीदवार और हाईवोल्टेज सस्पेंस
सासाराम विधानसभा सीट इस बार सुर्खियों में है। राजद उम्मीदवार सत्येंद्र शाह, जिन्हें नामांकन के तुरंत बाद गिरफ्तार किया गया था, जेल से छूटने के बाद सक्रिय प्रचार में जुट गए हैं। यह मामला 21 साल पुराना है और उनकी गिरफ्तारी ने चुनावी माहौल में सस्पेंस बढ़ा दिया है।
2020 और 2015 में यह सीट राजद के खाते में रही थी, लेकिन इस बार मुकाबला कई गुना कठिन दिख रहा है। राजद ने अपने पुराने प्रत्याशी राजेश कुमार गुप्ता की जगह शाह को टिकट देकर चुनावी दांव खेला है। वहीं, बसपा ने अशोक कुशवाहा को मैदान में उतारा है, जो पहले जद(यू) और राजद से चुनाव जीत चुके हैं। इस बार सासाराम का रण महागठबंधन, एनडीए और तीसरे मोर्चे के प्रभाव का केंद्र बन गया है।
इस सीट पर जातीय समीकरण के साथ-साथ सहानुभूति फैक्टर भी अहम भूमिका निभा रहा है। शाह की गिरफ्तारी ने विरोधियों को निशाना बनाने का मौका दिया, जबकि राजद ने इसे “राजनीतिक उत्पीड़न” बताकर प्रचार में मुद्दा बनाया।
गया टाउन: बीजेपी का गढ़, लेकिन कांग्रेस चुनौती के साथ
गया टाउन को लंबे समय से भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और मंत्री प्रेम कुमार इस सीट से लगातार तीन बार जीत चुके हैं। 2010 में यह सीट भाजपा और सीपीआई के बीच मुकाबले की वजह से सुर्खियों में आई थी।
इस बार कांग्रेस ने अखौरी ओंकार नाथ को उम्मीदवार बनाकर प्रेम कुमार को कड़ी चुनौती दी है। गया की गलियों में इस चुनाव को ‘परिवर्तन बनाम परंपरा’ के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल है, जबकि कांग्रेस के लिए यह खोई हुई जमीन वापस पाने का अवसर है।
स्थानीय मुद्दे जैसे नगर निकाय की कमजोरियां, युवा बेरोजगारी और बोधगया पर्यटन क्षेत्र की उपेक्षा भी चुनावी बहस का केंद्र बन गए हैं। पिछले दशकों के रुझान बताते हैं कि भाजपा के मजबूत वोट बैंक के सामने कांग्रेस को इस बार निर्णायक रणनीति अपनानी होगी।
चैनपुर: बसपा, राजद और वीआईपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला
चैनपुर विधानसभा सीट पर मुकाबला थोड़े अलग स्वरूप का है। यहां भाजपा और कांग्रेस सीधे मैदान में नहीं हैं। मुकाबला बसपा, राजद और वीआईपी पार्टी के उम्मीदवारों के बीच है। बसपा ने धीरज सिंह को मैदान में उतारा है। राजद ने बृज किशोर और वीआईपी ने गोविंद बिंद को उम्मीदवार बनाया है।
चैनपुर की सियासी कहानी हर चुनाव में जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। इस बार बसपा ने नया प्रयोग किया है, जबकि राजद अपने पारंपरिक वोट बैंक को बनाए रखने की उम्मीद कर रही है। त्रिकोणीय मुकाबले की वजह से वोटों का बंटवारा निर्णायक होगा।
कम उम्मीदवार वाले इलाकों में भी मुकाबला उतना ही तीखा
जहां गया टाउन, सासाराम और चैनपुर में 22-22 उम्मीदवार हैं, वहीं दूसरे चरण में छह सीटें ऐसी हैं, जहां सिर्फ पांच-पांच प्रत्याशी मैदान में हैं। कम उम्मीदवारों के बावजूद मुकाबला रणनीतिक और तीखा बना हुआ है। पार्टियां इस बार गठबंधन प्रबंधन और बूथ लेवल रणनीति पर अधिक ध्यान दे रही हैं।
इस उच्च संख्या में उम्मीदवार होने से वोटों का बिखराव तय है, जिसका फायदा बड़े गठबंधनों को मिल सकता है। सासाराम और गया जैसी सीटों पर स्थानीय मुद्दे और उम्मीदवारों की छवि चुनावी गणित को निर्णायक रूप से प्रभावित करेंगे। इन तीन सीटों पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं कि आखिर इस सियासी दंगल में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा।