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18-Oct-2025 11:00 AM
By First Bihar
Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव (2025) के पहले चरण में महागठबंधन के अंदर अजब और अनोखा खेल देखने को मिल रहा है। आलमनगर विधानसभा सीट से जुड़े इस मामले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। दरअसल, महागठबंधन के भीतर शामिल विकासशील इंसान पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की टिकट पर एक ही उम्मीदवार ने अपना नामांकन दाखिल किया, जिससे चुनावी रणनीतियों और नेताओं के इरादों पर सवाल उठने लगे हैं।
जानकारी के अनुसार, आलमनगर सीट से नवीन कुमार ने सबसे पहले विकासशील इंसान पार्टी के सिंबल पर अपना नामांकन दाखिल किया। यह पार्टी पहले से ही महागठबंधन का हिस्सा है और इसके अध्यक्ष मुकेश साहनी ने स्पष्ट कर दिया है कि वे खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसके बावजूद पार्टी पहले चरण में छह सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतार रही है, जिसमें आलमनगर सीट पर नवीन कुमार का नाम भी शामिल है।
लेकिन कुछ समय बाद ही नवीन कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सिंबल पर भी अपने नामांकन की प्रक्रिया पूरी कर दी। इस दौरान चुनाव आयोग में जो हलफनामा दाखिल किया गया, उसमें केवल पार्टी का नाम बदला गया, बाकी सारी जानकारी वैसी की वैसी रही।
इस कदम ने इलाके में और राजनीतिक गलियारों में अलग ही चर्चा शुरू कर दी है। लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या नवीन कुमार ने पाला बदला, या फिर उन्होंने यह दांव इसलिए खेला क्योंकि उन्हें डर था कि महागठबंधन के अंदर उनकी सीट पर किसी और उम्मीदवार से टक्कर हो सकती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला बिहार की चुनावी राजनीति में महागठबंधन की अंदरूनी रणनीतियों और उम्मीदवारों की अनिश्चितताओं को उजागर करता है। ऐसे हालात में यह स्पष्ट नहीं है कि नवीन कुमार का असली इरादा क्या था – क्या यह महागठबंधन के अंदर टिकट पक्की करवाने की रणनीति थी, या फिर किसी प्रकार की “फ्रेंडली फाइट” से बचने की चतुराई।
स्थानीय लोगों और राजनीतिक पत्रकारों का मानना है कि एक ही सीट पर दो अलग-अलग पार्टियों के सिंबल पर नामांकन दाखिल करना सामान्य नहीं है। इससे न सिर्फ चुनावी प्रक्रिया में उलझन बढ़ती है, बल्कि मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति भी पैदा होती है। आलमनगर की यह घटना बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उम्मीदवारों और दलों की चालाकियों का एक रोचक उदाहरण बन गई है।
हालांकि, नवीन कुमार की इस रणनीति पर दोनों पार्टियों की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी तक सामने नहीं आई है। चुनाव आयोग ने इस मामले को ध्यान में रखते हुए केवल तकनीकी पहलुओं की पुष्टि की है और फिलहाल मामले की जांच की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे कदम चुनावी राजनीति में अक्सर देखे जाते हैं, लेकिन महागठबंधन जैसी गठबंधन राजनीति में यह कदम विशेष रूप से विवादित हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग इस स्थिति को किस तरह नियंत्रित करता है और आलमनगर सीट पर महागठबंधन की रणनीति में क्या बदलाव आते हैं।
आखिरकार, आलमनगर सीट का यह मामला यह दर्शाता है कि बिहार की राजनीति में उम्मीदवार अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए किसी भी दांव-पेंच से पीछे नहीं हटते। यह घटना न सिर्फ राजनीतिक रणनीतियों पर सवाल उठाती है, बल्कि मतदाताओं के लिए भी चुनावी प्रक्रिया को रोचक और संवेदनशील बनाती है।
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में आलमनगर सीट से जुड़े इस अनोखे और विवादित नामांकन की खबर अब हर राजनीतिक हलके और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चर्चा का विषय बन गई है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि महागठबंधन और राष्ट्रीय जनता दल इस मामले पर क्या फैसला लेते हैं और आलमनगर सीट का असली उम्मीदवार कौन साबित होता है।