Bihar Politics: ‘नीतीश थे, हैं और आगे भी मुख्यमंत्री रहेंगे’, सीएम से मुलाकात के बाद बोले RLM चीफ उपेंद्र कुशवाहा Bihar Politics: ‘नीतीश थे, हैं और आगे भी मुख्यमंत्री रहेंगे’, सीएम से मुलाकात के बाद बोले RLM चीफ उपेंद्र कुशवाहा Bihar News: भीषण आग से 10 लाख की संपत्ति जलकर राख, घंटों की मशक्कत के बाद आग पर पाया गया काबू Rohini Acharya Allegation : रोहिणी आचार्य के गंभीर आरोप से लालू परिवार में मचा भूचाल,कहा - गंदी गालियां, चप्पल से मारने की कोशिश और किडनी दान पर भी किया गया अपमान, तेजस्वी के 'हरियाणवी' दोस्त को लेकर भी उठाया सवाल Patna knife attack : पटना में दिनदहाड़े किशोर पर चाकू से हमला, जक्कनपुर इलाके में सनसनी; जांच में जुटी पुलिस Bihar Politics: NDA में हो गया तय, नीतीश ही लेंगे CM पद की शपथ; अमित शाह से मुलाकात के बाद करीबी मंत्री ने कर दिया खुलासा Bihar minister list : बिहार में नई NDA सरकार की तस्वीर साफ ! नीतीश सीएम, BJP के दो डिप्टी सीएम के साथ यह चीज़ भी संभव, जानें किस दल से कितने मंत्री Bihar Assembly Election 2025: जानिए 18वीं विधानसभा में कितने विधायकों पर हैं आपराधिक मुकदमे; इस मामले में सबसे आगे निकली ये पार्टी Bihar Politics : तेजस्वी यादव की बड़ी समीक्षा बैठक, RJD की करारी हार और अन्य कारणों पर होगा आत्ममंथन Bihar Politics: हम विधायक दल की बैठक आज, जीतन राम मांझी की अध्यक्षता में तय होंगे नेता
16-Nov-2025 10:10 AM
By First Bihar
बिहार विधानसभा के हर सत्र में कुछ चेहरों की आवाज सदन में गूंजती रहती थी। ऐसे नेता, जो हर मुद्दे पर अपनी बात रखने के लिए वेल में पहुंच जाते थे, शून्यकाल में लगातार सक्रिय रहते थे और विधानसभा की कार्यवाही में एक विशिष्ट प्रभाव छोड़ते थे। लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद कई ऐसे दिग्गज इस बार नवीन विधानसभा में नहीं दिखेंगे, जिससे सदन की गतिशीलता और बहस का स्वर बदल जाएगा।
सबसे पहले चर्चा का विषय हैं दरौली के भाकपा (माले) विधायक सत्यदेव राम। विधानसभा के सुबह के सत्र शुरू होते ही वह अपनी सीट पर खड़े होकर तेज आवाज में अपनी बात रखते थे। आसन उन्हें बार-बार समझाता कि अपनी बात रखने का मौका मिलेगा, लेकिन सत्यदेव राम अपनी बात कहने से नहीं चूकते थे। इस बार सत्यदेव राम चुनाव हार गए हैं और उनकी यह सक्रियता नई विधानसभा में नहीं रहेगी।
इसी श्रेणी में आते हैं भाकपा (माले) विधायक दल के नेता महबूब आलम, जो बात-बात पर वेल में पहुंच जाते थे और अपने क्षेत्र बलरामपुर की जनता के मुद्दों को जोर-शोर से उठाते थे। महबूब आलम भी इस बार चुनाव हार गए हैं। उनके साथ भाकपा विधायक दल के नेता सूर्यकांत पासवान भी विधानसभा में इस बार नहीं दिखाई देंगे।
भाजपा से सक्रिय रहने वाले नेता ढाका के पवन जायसवाल, जो शून्यकाल और अन्य सत्रों में नियमित रूप से उपस्थित रहते थे, भी इस बार हार गए हैं। उनका विधानसभा में अभाव विपक्ष और सदन के चर्चा के स्वर को प्रभावित करेगा।
राजद के कई वरिष्ठ नेता भी इस बार विधानसभा में नहीं होंगे। डॉ. रामानुज प्रसाद, जो ध्यानाकर्षण सूचनाओं के मामले में लगातार सक्रिय रहते थे, इस बार चुनाव हार गए हैं। मसौढ़ी की राजद विधायक रेखा देवी, जो विपक्ष के मुद्दों पर सबसे पहले वेल में जाती थीं और सदन में सक्रिय भूमिका निभाती थीं, भी अब नई विधानसभा में नहीं दिखेंगी।
तीन बड़े दिग्गज इस बार विधानसभा में नहीं होंगे, राजद के अवध बिहारी चौधरी, जो पहले विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं और नेता प्रतिपक्ष के बगल में बैठते थे; राजद के वरिष्ठ विधायक ललित यादव, जो शून्यकाल और ध्यानाकर्षण में नियमित रूप से सक्रिय थे; और कांग्रेस के अजित शर्मा। ये तीनों नेता विधानसभा की बहसों और कार्यवाही में लगातार अपनी सक्रियता के लिए जाने जाते थे।
इसके अलावा, कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान, जो अलग-अलग विषयों पर तथ्यों के साथ अपनी बात रखते थे, इस बार विधानसभा में नहीं दिखेंगे। लगातार अपने बयानों के लिए चर्चित रहने वाले हरिभूषण ठाकुर बचौल भी चुनाव हार चुके हैं।
राजद और कांग्रेस की अन्य सक्रिय शून्यकाल सदस्य भी इस बार नहीं हैं। इसमें राजद के अख्तरुल शाहीन, कांग्रेस की नीतू कुमारी और राजद की मंजू अग्रवाल शामिल हैं। ये सभी सदस्य शून्यकाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे और विभिन्न मुद्दों पर सदन को सूचित रखते थे।
इन नेताओं के विधानसभा में न होने से सदन की गतिशीलता और बहस का स्वर बदल सकता है। नए विधायक अब अपने कदम से यह तय करेंगे कि किस तरह से सक्रियता दिखाई जाए और मुद्दों पर बहस हो। इसके साथ ही यह भी देखा जाएगा कि नए चेहरों में से कौन-से नेता पुराने दिग्गजों की सक्रियता को बदल सकते हैं और सदन में अपनी पहचान बना सकते हैं।
इस बदलाव के साथ, 18वीं बिहार विधानसभा में पुराने दिग्गजों की अनुपस्थिति और नए चेहरों की भूमिका विधानसभा की कार्यवाही के स्वर और निर्णय प्रक्रिया को नई दिशा देने वाली है। विधान परिषद और विपक्ष दोनों को अब नए नेताओं के साथ तालमेल बैठाना होगा और नई कार्यशैली के अनुरूप कदम बढ़ाने होंगे।