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14-Dec-2025 10:42 AM
By First Bihar
Bihar Teacher News: “वेतन के लिए किरानी से नहीं, निगरानी से मिलिए”—यह वाक्य अब मज़ाक या तंज नहीं, बल्कि शिक्षकों की रोज़मर्रा की हकीकत बनता जा रहा है। प्रधान शिक्षक पद पर योगदान देने के बाद भी महीनों तक वेतन नहीं मिलने की पीड़ा जब शिक्षकों ने आपस में सोशल मीडिया के निजी व्हाट्सएप ग्रुप में साझा की, तो यही संवाद उनके लिए आफ़त बन गया। शिक्षा विभाग ने इसे अनुशासनहीनता मानते हुए स्पष्टीकरण मांगना शुरू कर दिया है। सिर्फ पटना जिले में ऐसे पांच मामले सामने आ चुके हैं, जिसने शिक्षा जगत में चिंता और भय का माहौल पैदा कर दिया है।
सूत्रों के मुताबिक, शिक्षा विभाग की नजर अब शिक्षकों द्वारा बनाए गए निजी व्हाट्सएप ग्रुप और उनकी गतिविधियों पर है। विभागीय अधिकारियों को यह आपत्तिजनक लग रहा है कि शिक्षक वेतन भुगतान में देरी, प्रशासनिक लापरवाही या विभागीय कार्यप्रणाली पर असंतोष जता रहे हैं। अधिकारियों का मानना है कि इस तरह की चर्चाएं विभाग की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं। इसी तर्क के आधार पर बीते एक महीने में पटना जिले में पांच शिक्षकों को शो-कॉज नोटिस जारी किए जा चुके हैं।
इन मामलों में खास बात यह है कि नोटिस सिर्फ इसलिए दिए गए क्योंकि शिक्षकों ने अपने निजी और आंतरिक ग्रुप में वेतन विलंब को लेकर संदेश लिखे थे। इन सभी मामलों में मैसेज भेजने वाले शिक्षकों को ही दोषी ठहराया गया। शिक्षकों के बीच की आपसी बातचीत के स्क्रीनशॉट किसी माध्यम से अधिकारियों तक पहुंच गए, जिसके बाद विभागीय कार्रवाई शुरू हो गई।
10 दिसंबर को बिक्रम प्रखंड के एक प्राथमिक विद्यालय के प्रधान शिक्षक को इसी आधार पर नोटिस जारी किया गया। शिक्षक ने अपने योगदान के बाद अब तक वेतन नहीं मिलने की बात व्हाट्सएप ग्रुप में लिखी थी। उसी संदेश के स्क्रीनशॉट को आधिकारिक नोटिस के साथ संलग्न कर दिया गया और उनसे जवाब तलब किया गया। शिक्षक का कहना है कि उन्होंने किसी सार्वजनिक मंच पर नहीं, बल्कि सिर्फ सहकर्मियों के निजी ग्रुप में अपनी समस्या साझा की थी, ताकि समाधान का कोई रास्ता निकल सके।
इससे पहले 12 नवंबर को खुसरूपुर प्रखंड के चौरा मध्य विद्यालय के एक शिक्षक को भी वेतन भुगतान की मांग करने पर शो-कॉज किया गया था। दोनों ही मामलों में डीपीओ स्थापना की ओर से कार्रवाई की गई है। विभागीय नोटिस में कहा गया है कि इस तरह के संदेश सोशल मीडिया पर डालना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है और इससे विभाग की छवि धूमिल होती है।
इन कार्रवाइयों के बाद शिक्षकों के बीच भय और असमंजस का माहौल बन गया है। एक ओर महीनों से वेतन नहीं मिलने जैसी गंभीर समस्या है, जिससे घर-परिवार की जिम्मेदारियां निभाना मुश्किल हो रहा है। दूसरी ओर उस समस्या पर आवाज उठाने या सहकर्मियों से चर्चा करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का खतरा सिर पर मंडरा रहा है। कई शिक्षक अब खुलकर बोलने से बच रहे हैं और सोशल मीडिया ग्रुप में भी चुप्पी साधने को मजबूर हैं।
शिक्षकों का सवाल है कि जब विभागीय कार्यालयों में बार-बार आवेदन देने, अधिकारियों से मिलने और लिखित अनुरोध करने के बावजूद समाधान नहीं निकलता, तो वे अपनी बात आखिर कहां रखें? निजी ग्रुप में साझा की गई पीड़ा भी अगर अपराध मानी जाएगी, तो संवाद का रास्ता पूरी तरह बंद हो जाएगा। कुछ शिक्षकों का कहना है कि स्क्रीनशॉट भेजकर कार्रवाई करवाने की प्रवृत्ति ने आपसी विश्वास को भी नुकसान पहुंचाया है।
शिक्षक संगठनों का मानना है कि यह मामला सिर्फ अनुशासन का नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनशीलता का भी है। वेतन किसी भी कर्मचारी का मौलिक अधिकार है और उसमें देरी होना गंभीर मुद्दा है। अगर शिक्षक इस समस्या पर चर्चा कर रहे हैं, तो उसे दबाने के बजाय समाधान निकालना चाहिए। संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि इस तरह की कार्रवाइयां जारी रहीं, तो असंतोष और बढ़ेगा।
कुल मिलाकर, यह पूरा मामला शिक्षा व्यवस्था में संवाद के संकट और प्रशासनिक सख्ती की तस्वीर पेश करता है। जहां सवाल पूछना जुर्म और खामोशी मजबूरी बनती जा रही है। शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षक अगर अपने ही अधिकारों के लिए डर के साये में जीने को मजबूर होंगे, तो इसका असर पूरी व्यवस्था पर पड़ेगा। अब देखना यह है कि विभाग इस स्थिति से सबक लेकर संवाद का रास्ता खोलेगा या सख्ती की नीति पर ही आगे बढ़ता रहेगा।