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16-Sep-2025 05:47 PM
By First Bihar
Bihar News: बिहार में रेल पटरियों पर मौतों का आंकड़ा चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है। बीते तीन महीनों (जून से अगस्त) में राज्य के विभिन्न रेल खंडों पर 100 से अधिक लोगों की ट्रेन की चपेट में आने से जान चली गई है। ये हादसे ज्यादातर ट्रेन से गिरने या ट्रैक पार करते समय हो रहे हैं, लेकिन कई मामलों में पहचान न होने से संदेह बढ़ गया है कि क्या ये आत्महत्या हैं, दुर्घटनाएं या फिर हत्या निपटाने का नया तरीका है। जीआरपी और स्थानीय थानों में ज्यादातर अज्ञात शवों के मामले दर्ज हो रहे हैं और जांच में परिवारों का कोई सुराग नहीं मिल रहा। बिहार पुलिस के एडीजी (रेलवे) बच्चू सिंह मीणा ने इसे स्वीकार करते हुए कहा कि आंकड़े चौंकाने वाले हैं, हालांकि स्पष्ट रूप से हत्या साबित नहीं हो सकी। ऐसे में प्रशासन अब लगातार जागरूकता अभियान चला रहा है।
रोहतास जिले के सासाराम स्टेशन निरीक्षक संजीव कुमार के अनुसार, अकेले रोहतास में ही 25 मौतें हुईं हैं। सबसे ज्यादा हादसे आरा-सासाराम रेलखंड पर दर्ज किए गए हैं, जहां करीब 40 लोगों की जान गई। दानापुर-डीडीयू खंड पर भी 40 से अधिक मामले सामने आए हैं, जिनमें से 6 शवों की पहचान नहीं हो सकी है। गया-डीडीयू रेलखंड पर 13 मौतें, वैशाली में 10, बेगूसराय में 17, और छपरा में 4 लोगों की जान गई है। रघुनाथपुर-चौसा खंड पर भी 18 हादसे हुए हैं। ये आंकड़े जून से सितंबर 2025 तक के हैं और ज्यादातर मामलों में शव ट्रैक पर मिले हैं, जिससे पोस्टमॉर्टम में भी स्पष्टता नहीं आई है।
पुलिस का मानना है कि लापरवाही ही इन हादसों की मुख्य वजह है। कई लोग ट्रेन रुकने से पहले उतरने की कोशिश में गिर जाते हैं, जबकि युवाओं में इयरफोन लगाकर ट्रैक पार करने की आदत घातक साबित हो रही है। रेल अधिकारी कहते हैं कि हत्या के मामले छिपते नहीं, क्योंकि ऐसे में परिवार के लोग ढूंढते हुए पहुँच ही जाते। लेकिन अनसुलझे केसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हाल ही में पटना के धनरुआ में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जहां शव की पहचान नहीं हो सकी। जीआरपी अब आउटर सिग्नल क्षेत्रों में गश्त बढ़ा रही है और स्थानीय थानों को विशेष निर्देश दिए गए हैं।