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27-Nov-2025 05:30 PM
By Viveka Nand
Bihar Bhumi: पुश्तैनी जमीन की जमाबंदी आपके नाम पर नहीं है, ऐसे में आपके नाम पर रसीद नहीं कटती होगी. इस स्थिति में आप अपने बाप-दादा की पुश्तैनी जमीन की बिक्री-रजिस्ट्री कर सकते हैं या नहीं ? यह सवाल सबके मन में तैरता है. देश की सर्वोच्च अदालत ने इस सवाल को सदा के लिए खत्म कर दिया है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर अपना फैसला सुनाया है. कोर्ट का यह निर्णय लाखों लोगों को प्रभावित करेगा, खासकर उन्हें जिनकी संपत्ति का म्यूटेशन पुराने रिकॉर्ड या लंबी प्रशासनिक प्रक्रियाओं के चलते लंबित था.
क्या है सुप्रीम कोर्ट का नया निर्णय,जानें....
सुप्रीम कोर्ट ने जमीन की रजिस्ट्री में विक्रेता के नाम से जमाबंदी नियमावली पर पटना हाइकोर्ट के आदेश को पिछले दिनों ही खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस नये आदेश के बाद अब जमीन की रजिस्ट्री कराने के लिए विक्रेता के नाम पर जमाबंदी या होल्डिंग नंबर की बाध्यता समाप्त हो गयी है. यानि अगर जमीन पुश्तैनी है और आप बेचने के हकदार हैं, आपके नाम से रसीद नहीं कट रही है, फिर भी आप जमीन की रजिस्ट्री कर सकते हैं. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पंजीकरण अधिकारी (सब रजिस्ट्रार) को विक्रेता से स्वामित्व का प्रमाण मांगने का कोई अधिकार नहीं है, जिससे पूरी प्रक्रिया सरल और तेज हो गयी है. इस फैसले से पंजीकरण अधिकारी केवल जमाबंदी के अभाव में पंजीकरण को खारिज नहीं कर सकते.
10 अक्टूबर 2019 को लागू हुआ था नया नियम
बता दें, जमीन रजिस्ट्री में फर्जीवाड़े को रोकने के लिए बिहार सरकार ने 10 अक्टूबर 2019 को, जिसके नाम पर जमाबंदी है, वही जमीन की रजिस्ट्री कर सकता है, यह नया नियम लागू किया था. तब इसके खिलाफ कई याचिकाएं हाइकोर्ट में दायर की गयी थीं. कोर्ट ने 15 दिनों के भीतर ही 25 अक्टूबर को सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है. तब से चल रही मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने नौ फरवरी 2024 को सरकार के फैसले को सही करार देते हुए इसे लागू करने का आदेश दिया. इसके बाद सरकार ने 22 फरवरी 2024 को पत्र जारी कर जमीन बिक्री में जमाबंदी को लागू किया था.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश- जमीन की रजिस्ट्री के लिए विक्रेता के नाम पर जमाबंदी अनिवार्य नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए संपत्ति के लेन-देन को सरल और पारदर्शी बनाने की दिशा में बड़ी राहत दी है. कोर्ट का यह फैसला संपत्ति के लेन-देन को सरल बनाता है, खासकर उन मामलों में जहां म्यूटेशन की प्रक्रिया पुराने सर्वेक्षणों या प्रशासनिक देरी के कारण अटकी हुई थी. कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जमीन की रजिस्ट्री कराने के लिए विक्रेता के नाम पर जमाबंदी या होल्डिंग नंबर का होना अब अनिवार्य नहीं है.शीर्ष न्यायालय ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि बिहार निबंधन नियमावली, 2008 के नियम 19(17) और 19(18) में 2019 में किया गया संशोधन अवैध है, क्योंकि यह पंजीयन अधिनियम, 1908 की धारा 69 के तहत प्रदत्त अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जायमाल्या बागची की खंडपीठ ने समीउल्लाह की ओर से दायर एसएलपी (सिविल) पर सुनवाई के बाद 34 पन्नों में विस्तृत फैसला सुनाया।आवेदक की ओर से वरीय अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा और अधिवक्ता विश्वजीत कुमार मिश्रा ने दलील दी कि राज्य सरकार द्वारा 10 अक्टूबर 2019 को नियम 19 में किए गए संशोधन से यह शर्त जोड़ दी गई थी कि भूमि की बिक्री या दान केवल तभी संभव होगा, जब विक्रेता या दानदाता के नाम से संबंधित भूमि की जमाबंदी या होल्डिंग दर्ज हो।
इस संशोधन के बाद निबंधन पदाधिकारियों को यह सुनिश्चित करना आवश्यक कर दिया गया था कि संपत्ति का निबंधन तभी किया जाए, जब विक्रेता के नाम से जमाबंदी/होल्डिंग कायम हो। ऐसी स्थिति में जिनके नाम पर जमाबंदी नहीं थी, वे अपनी जमीन का विक्रय या दान नहीं कर सकते थे। पटना हाई कोर्ट ने अपने 21 पन्नों के आदेश में राज्य सरकार के संशोधन को वैध माना था। हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने पटना हाईकोर्ट के निर्णय और राज्य सरकार के संशोधन दोनों को निरस्त कर दिया। यह निर्णय लाखों लोगों को प्रभावित करेगा, खासकर उन्हें जिनकी संपत्ति का म्यूटेशन पुराने रिकॉर्ड या लंबी प्रशासनिक प्रक्रियाओं के चलते लंबित था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में विधि आयोग से अनुरोध किया है कि वह इस मुद्दे की व्यापक समीक्षा करे और केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, हितधारकों तथा सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों से परामर्श लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करे।उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने 13 मई 2024 को ही संशोधन पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा था कि संशोधन के बाद हुए जमीन के सभी निबंधन अंतिम फैसले के परिणाम पर निर्भर रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति का अचल संपत्ति रखने, खरीदने और बेचने का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित है। बिहार सरकार द्वारा लागू किया गया यह संशोधन उस अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लगाता है। कोर्ट ने कहा कि जब तक जमाबंदी और विशेष सर्वेक्षण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक इसे पंजीयन की पूर्वशर्त बनाना मनमाना और असंवैधानिक है।