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sugar scam Bihar : चारा घोटाले की तर्ज पर बिहार चीनी घोटाला, 36 साल बाद 6 दोषी; इस दिन सुनाई जाएगी सजा

36 साल पुराने बिहार के चर्चित चीनी घोटाला मामले में विशेष निगरानी अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए छह अधिकारियों को दोषी करार दिया है। लौरिया चीनी मिल से फर्जीवाड़ा कर 997 बोरी चीनी बेचने का आरोप था।

sugar scam Bihar : चारा घोटाले की तर्ज पर बिहार चीनी घोटाला, 36 साल बाद 6 दोषी; इस दिन सुनाई जाएगी सजा

11-Dec-2025 11:27 AM

By First Bihar

sugar scam Bihar : बिहार में चारा घोटाले की तर्ज पर चर्चित चीनी घोटाला मामले में करीब 36 साल बाद बड़ा फैसला आया है। विशेष निगरानी अदालत ने बुधवार को इस भ्रष्टाचार प्रकरण में छह अभियुक्तों को दोषी करार दिया है। अदालत 18 दिसंबर को सभी दोषियों की सजा पर फैसला सुनाएगी। यह मामला पश्चिमी चंपारण जिले की लौरिया चीनी मिल से फर्जीवाड़ा कर 997 बोरी चीनी की बिक्री और राशि गबन से जुड़ा है।


इस घोटाले में बिहार स्टेट शुगर कॉरपोरेशन लिमिटेड (लौरिया इकाई) के तत्कालीन प्रशासन प्रमुख नंद कुमार सिंह, उपप्रबंधक उमेश प्रसाद सिंह, लिपिक सुशील कुमार श्रीवास्तव, शुगर केन लिपिक लालबाबू प्रसाद, चीनी बिक्री प्रभारी धीरेंद्र झा और लेखा पदाधिकारी अजय कुमार श्रीवास्तव को दोषी पाया गया है।


फर्जी फर्म और फर्जी गाड़ियों से दिखाई गई चीनी की ढुलाई

जांच में यह सामने आया कि सितंबर 1989 से लेकर सितंबर 1990 के बीच 8.88 लाख रुपये मूल्य की चीनी की बिक्री फर्जी फर्मों के नाम पर दिखाकर राशि का गबन किया गया। हैरानी की बात यह रही कि ढुलाई के लिए बाइक, स्कूटर और सरकारी ट्रक का नंबर दिखाया गया, जबकि वास्तविक ढुलाई कभी हुई ही नहीं। यह पूरा घोटाला मिल के अंदर बैठे अधिकारियों–कर्मचारियों की मिलीभगत से किया गया था।


विशेष निगरानी न्यायालय के न्यायाधीश दशरथ मिश्र ने मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद सभी छह अधिकारियों को दोषी ठहराया। अदालत ने कहा कि उपलब्ध दस्तावेज, गवाहों के बयान और निगरानी की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करते हैं कि आरोपितों ने फर्जीवाड़ा कर सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग किया और राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाया।


डीआईजी स्तर के अधिकारी ने दी गवाही

मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक निगरानी कृष्णदेव साह ने छह गवाहों को प्रस्तुत किया। इनमें उस समय निगरानी ब्यूरो के डीआईजी रहे कुमार एकले की गवाही भी शामिल थी। उन्होंने जांच के दौरान जुटाए गए प्रमाणों और अधिकारियों के भूमिकाओं पर अदालत के समक्ष विस्तृत जानकारी पेश की। अदालत ने इन साक्ष्यों को भरोसेमंद मानते हुए निर्णय दिया।


मुख्यमंत्री के आदेश पर शुरू हुई थी निगरानी जांच

इस पूरे मामले का खुलासा स्थानीय लोगों द्वारा लगातार की जा रही शिकायतों के बाद हुआ। सितंबर 1989 में शुरू हुए इस फर्जीवाड़े की शिकायत बिहार स्टेट शुगर कॉरपोरेशन पटना और अन्य अधिकारियों से की गई थी, लेकिन उस समय की जांच में सभी को क्लीनचिट दे दी गई। बाद में पीड़ित स्थानीय लोगों ने मामले की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री से की। मुख्यमंत्री ने आरोपों की गंभीरता को देखते हुए निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को जांच का आदेश दिया।


निगरानी विभाग की विस्तृत जांच में यह सिद्ध हुआ कि वर्ष 1989–90 के बीच चीनी की कालाबाजारी कर करोड़ों की संपत्ति का गबन किया गया। इसके बाद 28 फरवरी 2000 को मामले में 18 अधिकारियों और कर्मचारियों पर एफआईआर दर्ज की गई।


बंद हो चुकी लौरिया चीनी मिल और लंबी न्यायिक प्रक्रिया

इस दौरान वर्ष 1997 में लौरिया चीनी मिल बंद हो गई। मामले की जांच और अदालत में लंबी सुनवाई के कारण ट्रायल वर्षों तक चलता रहा। एफआईआर में नामित 18 में से तीन आरोपितों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। बाद में निगरानी की चार्जशीट के आधार पर 15 आरोपित अदालत में प्रस्तुत हुए, लेकिन उनमें से आठ अदालत में हाजिर नहीं हुए, जिसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी है। सेशन ट्रायल के दौरान तत्कालीन जीएम हरिवंश नारायण सिंह की भी मृत्यु हो गई।


अंततः शेष सात में से छह को दोषी करार दिया गया। यह मामला उन भ्रष्टाचार मामलों में शामिल हो गया है, जिनकी सुनवाई में दशकों लग गए। अब 18 दिसंबर को सजा सुनाए जाने के बाद इस घोटाले की कानूनी प्रक्रिया एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचेगी। अदालत का यह फैसला बिहार में लंबित भ्रष्टाचार मामलों की न्यायिक प्रक्रिया पर भी महत्वपूर्ण असर डालने वाला माना जा रहा है।